Saturday, October 15, 2011

मेरा रचना संसार ..2.............

मेरी यह पहली प्रकाशित काव्य रचना जो जनसंदेश में जून 1993 में प्रकाशित हुई ..........

Tuesday, October 11, 2011

यादों के झरोखे से .."गजल सम्राट जगजीत सिंह के साथ यादों को ताजा कर रहे हैं अनूप लाठर "



कुवि के होनहार छात्रों में से एक थे जगजीत सिंह
छात्रावासों के बीच पुलिया पर बैठ कर सुनाते थे गजलें
दुनिया के महान गज़ल गायक जगजीत सिंह आज हमारे बीच नहीं रहे, यह बहुत ही दुखद घड़ी है। विशेष तौर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के लिये जहां के वह होनहार छात्र रहे। वह एक महान गजल गायक होने के साथ ऐसी हस्ती थे जिन्होंने सीधे तौर पर हिंदूस्तान की युवा पीढ़ी को गज़ल के साथ जोड़ा। वह एक निहायत सीधे-साधे व भावात्मक इंसान थे। मुझे इस बात का गर्व है कि वह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के होनहार छात्र रहे। उन्होंने 1963-64 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में दाखिला लिया था। इस दौरान वह विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, विशेषकर छात्राओं में स्वार्धिक लोकप्रिय रहे। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के युवा महोत्सवों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया व विश्वविद्यालय के लिये खूब सारे इनाम भी अर्जित किये। उस समय इनके साथ तबले पर इकबाल ङ्क्षसह इनकी संगत देते थे, जो बाद में पंजाब से सांसद भी रहे। मुम्बई जाने के बाद जगजीत सिंह जी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। यहां तक की वो कभी लौट कर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय भी नहीं आए। 
उसके बाद हमने उनको वापिस कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बुलाने का मन बनाया और कुछ मित्रों के माध्यम से बात चलाई। मैं खुद दो मित्रों को माध्यम बनाकर उनसे मिलने उनके एक कार्यक्रम में गया। हमें मालूम था कि विश्वविद्यालय के पास सीमित आर्थिक साधन हैं और उनको उचित मानदेय नहीं दिया जा सकता। हमने यह सब सोच कर कुछ इस प्रकार उनके  साथ बात चलाइ कि हम आपको आपके विश्वविद्यालय में बुलाना चाहते हैं और आपके पुराने मित्रों से मिलाना चाहते हैं। हमने कहा कि कार्यक्रम तो औपचारिक रूप से सरकारी होगा, लेकिन वास्तविक तौर पर तो यह मित्र मिलन ही होगा। उन्होंने हंसते हुए सहज ही हमारा निमंत्रण स्वीकार कर लिया। 1994 में जगजीत सिंह को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय युवा समारोह के लिये सम्मानीय अतिथि के तौर पर बुलाया गया। इस दौरान पूर्व सांसद डा. कर्ण सिंह जोकि आजकल आईसीसीआर के चेयरमैन भी हैं, को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया। 
इस समारोह के आयोजन से पूर्व हमने जगजीत सिंह जी के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शिक्षार्जन के दौरान 1963-64 के ग्रुप फोटो से उनका पोर्टरेट भी बनवाया। आर.एस. पठानिया द्वारा बनाया गया यह पोर्टरेट  पगड़ी वाला था, क्योंकि यहां पढ़ते वक्त जगजीत सिंह जी केशधारी थे और पगड़ी बांधा करते थे। यह पोर्टरेट उनको समारोह के दौरान मंच पर भेंट किया गया जिसे देख कर वह अत्यंत खुश हुए। उस शाम उन्होंने अपनी रंगारंग प्रस्तुति दी व रात्रि को शहर में एक मित्र के घर मित्र मंडली के साथ रात्रि भोज का आयोजन किया गया।  देर रात उन्होंने विश्वविद्यालय में घूमने की इच्छा जताइ और हम घूमने निकले। भीम भवन के सामने नरहरी भवन के पास की पुलिया पर जाकर उन्होंने मुझे अपने साथ बिठा लिया और अपने अतीत में खो गए। उन्होंने अपने कालेज जीवन के किस्से सुनाने आरम्भ किये और बताया कि किस प्रकार वह यहां बैठते थे। तब सामने के गल्र्ज हास्टल (भीम भवन) में लड़कियां उनसे दूर से ही गज़ल सुनाने का आग्रह करती थी। उनके आग्रह पर वह इसी पुलिया से बैठे बैठे गज़लें सुनाया करते थे। इसके साथ ही उन्होंने बहुत सी छात्र जीवन की बातें हमारे साथ सांझा की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में फिर से आकर वह इतने भावुक हुए कि नि:शुल्क प्रस्तुतियां दी। 
इसके पश्चात वह तो लौट गए लेकिन हमने मित्रों के साथ मिल कर प्रस्ताव चलाया कि क्यों न कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अपने इस होनहार छात्र को मानद उपाधि दे। 1995 में उनको कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की ओर से डीलिट की मानद उपाधि दी गई। यही नहीं 1996 में जब कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अपनी 40वीं वर्षगांठ मना रहा था तो जगजीत सिंह जी को फिर से निमंत्रण दिया गया। वह एक बुलावे पर ही चले आए और उस शाम की प्रस्तुति इतनी लोक प्रिय रही की श्रोताओं की भीड़ को काबू करना कठिन हो गया। यहां तक कि पुलिस को स्थिति निंयण में लाने के लिये हल्का लाठी चार्ज भी करना पड़ा। उनकी यह प्रस्तुति अविसम्रणीय रही। 
उसके बाद वह कुरुक्षेत्र तो नहीं आ सके, लेकिन उनका संबंध फिर से ऐसा जुड़ा कि लगातार फोन पर मेरे संपर्क में रहने लगे। अक्सर वह यहां के अपने छात्र जीवन को याद करते व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की तारीफें करते रहते। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा उनको दिये गए सम्मान को कभी नहीं भुलाया और सदा इसकी चर्चा करते रहे। अंतिम बार दिसम्बर 2010 में उन्होंने मुझ से बात की थी। तब भी अनौपचारिक रूप से वही छात्र जीवन की यादें और विश्वविद्यालय से प्रेम उनके लफ्ज़ों में भरा था। आज वो हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से जुड़ी उनकी यादें सदा जीवित रहेंगी और हमारे दिल में सदा ताजा रहेंगी। मैं अपने आप को शौभाग्य शाली मानता हूँ कि मैं उस विभाग का निदेशक  हूँ जिसके मंच से उन्होंने अनेक युवा समारोहों में भाग लिया व इस विभाग के कार्यक्रम में ही शिरकत करने के  बाद वह पुन: कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से जुड़े थे। 
अनूप लाठर: 
निदेशक युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग, 
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र।