Wednesday, April 17, 2013

ग्रीन हाउस लगाकर प्रगति की राह पकड़ चूका है धर्म बीर मिर्जापुर|



छोटी जोत के किसानों में बढ़ रहा है अधिक आय लेने का रूझान।
जागरुक किसान बाजार भाव और लोगों की मांग को ध्यान में रखकर कर रहे हैं सब्जियों की खेती।
ग्रीन हाउस लगाकर प्रगति की राह पकड़ चूका है धर्म बीर मिर्जापुर|
कुरुक्षेत्र/ पवन सोंटी
देहात में एक कहावत प्रचलित हैं कि यदि पेट को ठीक रखना हैं तो खेत को ठीक रखना होगा। अतीत में कही गई यह कहावत आज भी पूरी तरह से तर्कसंगत हैं। पुराने जमाने में किसान रासायनिक खादों का बहुत कम यानि ना के बराबर प्रयोग करते थे। 
जैसे-जैसे समय बीतता गया बड़ी-बड़ी क पनियों ने किसानों को लुभावने नारे देकर उनका रुझान बेशक प्रति एकड़ उत्पादन में बढ़ोतरी की ओर कर दिया। किसानो ने अपनी मेहनत के चलते प्रति एकड़ खाद्यान उत्पादन में वृद्धि तो अवश्य की लेकिन असंतुलित रासायनिक खादों के प्रयोग के चलते जमीन की उर्वरा ताकत प्रभावित हुई, जिसका लोगों के यहां तक की पशुओं के स्वास्थ्य पर भी विपरित असर पर पड़ा।
                   सरकार के संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों ने इस संदर्भ में चिंता जाहिर करते हुए किसानों का रूख जैविक यानि ऑर्गेनिक खेती की ओर मोडऩा शुरु कर दिया। इसी बीच जनसं या बढऩे और जमीन के बंटवारें के चलते छोटी जोत के किसानों ने फसलों के विविधिकरण में भलाई की बात समझकर जैविक तरीके से खेती करना शुरु कर दिया। ऐसे किसानों, विशेषकर युवा किसानों में कम जमीन में अधिक उत्पादन लेने की बजाए अधिक आय लेने की ललक दिखने लगी। पिछले कुछ वर्षो में यदि देखा जाए तो सरकार की किसान हितैषी नीतियों कृषि और बागवानी मिशन के चलते प्रदेश के किसानों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई हैं। ऐसे ही किसानों में जिला  कुरुक्षेत्र के गांव मिर्जापुर के किसान धर्मवीर सिंह का नाम भी गर्व के साथ लिया जा सकता हैं। एम.ए. पास पढ़े-लिखे किसान ने बेरोजगारी से जुझते हुए अपने ही खेत में कुछ अलग करने की ठानी और प्रदेश का बागवानी मिशन किसान के कार्य में मार्गदर्शक बना। 

                   किसान ने बागवानी विभाग की सहायता से जुलाई वर्ष 2012 में अपने खेत में 560 स्केयर मीटर में पॉली हाउस बनवाकर चार पती यानि लगभग 6 इंच ल बी ब बी और ओरविला नामक शिमला मिर्च की किस्मों की पौध लगाकर खेती शुरु की और लगभग 70 दिन बाद फसल में फल लगना शुरु हो गया। लगभग 90 दिन बाद फसल रंग लेने लगी। पोली हाऊस बनवाने मेेंं कुल खर्चा 4 लाख 75 हजार रुपए खर्चा हुआ। किसान को 50 प्रतिशत अनुदान मिला। किसान ने  2 लाख 37 हजार 500 रुपए  किसान भागीदारी के रुप में दिए। फसल में जैविक खाद का प्रयोग किया गया। 560 स्केयर मीटर में क्षेत्र में लगभग 40 क्ंिवटल मिर्च की पैदावार हुई, जो 45 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकी। इस प्रकार लगभग एक लाख 60 हजार रुपये की फसल बिकी, जिसमे खर्चा निकाल कर किसान को लगभग 70 से 80 हजार रुपये का शुद्ध लाभ हुआ।
                   किसान बताता है कि अच्छी फसल लेने के लिए पौधे से पौधे की दूरी 40 सैंटीमीटर तक होनी चाहिए तथा फसल में पानी की मात्रा और समय का भी ध्यान र ाने की जरूरत हैं। जुलाई में पौध लगाने उपरान्त सित बर के अंत तक फसल तैयार होने लगती है और अप्रैल के अंत या फिर मई के शुरू तक मिर्चों की फसल का उत्पादन मिलता रहता है। इस प्रकार शिमला मिर्च का सीज़न लगभग साढे 8 महीने तक चलता है। जहां तक फसल में पानी देने की बात है, किसान बताता है कि 560 स्केयर मीटर में लगाई गई शिमला मिर्च की खेती के लिए सर्दियों में दूसरे या फिर तीसरे दिन एक हजार लीटर पानी देना पड़ता है और यदि मौसम गर्मी का हो, तो इतना ही पानी प्रतिदिन देने की आवश्यकता है। वैसे एक एकड़ की शिमला मिर्च की फसल में सर्दियों में लगभग 6 हजार लीटर पानी दूसरे या तीसरे दिन देने की आवश्यकता है, जबकि गर्मियों में प्रतिदिन लगभग 6 हजार लीटर पानी देना पड़ता है। किसान ने 560 स्केयर मीटर में शिमला मिर्च की पौध के 1500 पौधे लगाए और यदि एक एकड़ में पौली हाऊस बनाकर शिमला मिर्च की खेती की जाए, तो लगभग 12 हजार पौधे लगाने की आवश्यकता पड़ती है। 

                   घरौंडा के सब्जी इंडो-इजराईल उत्कृष्ठा केन्द्र में आयोजित मेले में किसान धर्मवीर को प्रदेश के कृषि मंत्री परमवीर सिंह और बागवानी विभाग के निदेशक सत्यवीर सिंह ने फरवरी 2013 में राज्य स्तरीय पुरस्कार से स मानित किया। यह स मान पाने के उपरान्त किसान ने 4 हजार स्केयर मीटर में शिमला मिर्चों की खेती का मन बना लिया हैं। किसान शीघ्र ही अपने खेत में  पॉली हाउस बनवाकर विभिन्न किस्मों की मिर्चों की खेती के साथ-साथ टमाटर और बिना बीज के खीरे की खेती भी शुरु करने जा रहा है। चार हजार स्केयर मीटर में पोली हाऊस बनवाने में  लगभग 36 लाख रुपए की धनराशि खर्च होगी। इसमें से 65 प्रतिशत अनुदान के चलते किसान को लगभग 13 लाख रुपए हिस्सेदारी के रुप में देने होंगें।
                   इस संदर्भ मेंं जब किसान के खेत में बने पॉली हाउस में उससे बात की गई, तो उन्होनें पॉली हाउस में उगाई गई शिमला मिर्च की फसल दि ााते हुए बताया कि खुले में उगाई गई फसल की पैदावार पॉली हाउस में उगाई गई फसल की अपेक्षा कम होती हैं। पॉली हाउस में फसल का उत्पादन 4 से 5 गुणा अधिक बढ़ जाता हैं। बातचीत के दौरान किसान ने बताया कि यदि फसल अच्छी लग जाएं और बाजार में मांग बढ़ जाए, तो शिमला मिर्च 100 रुपए किलो तक बिक जाती हैं। खेत में पीले और लाल रंग की मिर्च दिखाते हुए किसान बताता हैं कि इस प्रकार की मिर्च अकसर बड़े-बड़े होटलों में सलाद के तौर पर खाई जाती हैं। आम बाजार में इनका भाव 40 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम रहता हैं। मिर्च का वजन 50 से 200 ग्राम तक हो जाता हैं।
                   जिला में फसलो के विविधिकरण के चलते गांव ठोल के किसान मंदीप ने भी अपने खेत में नेटाजेट मशीन स्थापित करके लगभग 2 एकड़ में शिमला मिर्च की फसल लेने के लिए पौध की रुपाई की हैं। मशीन के प्रयोग से ड्रिप के माध्यम से 90 प्रतिशत पानी की बचत रहती हैं। किसान मंदीप बताता हैं कि उसने एक एकड़ में बैड बनाकर लगभग 13000 पौधे लगाए हैं। किसान का फसलों के विविधिकरण को बढ़ाते हुए बेमौसमी सब्जियां लगाने के लिए नैट लगाने का कार्यक्रम हैं। किसान के अनुसार वह बैंगन और करेले की फसल की खेती भी करता है। बदलते परिवेश में जैविक पद्धति से तैयार फसलों की मांग बढऩे लगी हैं। इसलिए फसलों के विविधिकरण में किसानों का रूझान भी अधिक आय लेने की ललक में करवटें बदलने लगा। बागवानी के क्षेत्र में हरियाणा सरकार का बागवानी मिशन किसानों, विशेषकर छोटी जोत के किसानों के लिए आर्थिक क्षेत्र में नये अध्यायों का सूत्रपात करने वाला सिद्ध हो रहा है।
                   उपायुक्त मंदीप बराड़ का कहना है कि कुरुक्षेत्र में जमीन की तासीर फसलों को बेहतर गुणवत्ता देने के साथ-साथ सब्जी उत्पादन के लिए भी बेहतर मानी जाती है। यही कारण है कि जो किसान गेहूं व धान की खेती करते हैं, वे सब्जियों, फलों, फूलों, यहां तक की खूंबी इत्यादि की खेती भी करते हैं। जिला के कई किसानों ने सब्जी उत्पादन के क्षेत्र के साथ-साथ फसलों के विविधिकरण में अच्छा नाम कमाया है। कई किसानों ने न केवन प्रदेश में, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। इस क्षेत्र में सरकार की कृषि और किसान हितैषी स्कीमें और योजनाएं भी किसानों का मार्गदर्शन बनकर उमड़ी है। कहना न होगा कि बदलते परिवेश में निकट भविष्य में यहां के किसान फसलों के विविधिकरण में और बेहतर नाम कमाएंगे।

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