Friday, June 20, 2014

भावनाओं से भरी 25 साल पहले के बच्पन को याद दिलाती ये हरियाणवी कविता जरूर पढ़ें........

हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका "हरिगंधा"में प्रकाशित पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के डॉ दर्शन सिंह आश्ट की कविता "अम्मा चिड़िया कहाँ गई" का हरियाणवी अनुवाद।
अनुवादक-- श्रीमती कमलेश चौधरी (मेरी माँ)
माँ री चिड़िया कड़े गई
कुछ ना बेर पाट्या माँ री चिड़िया कड़े गई
एक बी कोन्या दिक्खी
माँ री चिड़िया कड़े गई
घर आँगण महकाया करती
दाणा दुण्का खाया करती
फुदक फुदक इतराया करती
के काली कोसां उड्गी
माँ री चिड़िया कड़े गई
ची ची कर कै गीत सुनाती
रौला कर के तड़के जगाती
घर मह रौनक खूब जगाती
इब सब कुछ सुना हो ग्या
माँ री चिड़िया कड़े गई
तिणका तिणका ल्याया करती
छात में घर बसाया करती
घर ने सुरग बनाया करती
किस की नज़र लाग गी
माँ री चिड़िया कड़े गई
चिक्ल्या कि गेल्या गाया करती
उड़ना उन्हें सिखाया करती
रेते में उनहें न्हावया करती
होगी सारी परायी
माँ री चिड़िया कड़े गई
के मामा के घर ते ना आई
के बिल्ली कुत्ते नै खाई
क़े कौव्वे गेल्या हुई लड़ाई
तनें खिचड़ी भी ना रांधी
माँ री चिड़िया कड़े गई
उन्हे बता दे माँ मोरी
पाणी की भरी धरी कटोरी
आ कै पी ज्या चोरी चोरी
चुरा बी ना खाई माँ री
चिड़िया कड़े गई
कुदरत की तै शान थी चिड़िया
छोटी सी एक ज्यान थी चिड़िया
म्हारे देश का गौरव निशान थी चिड़िया
कित खू गी म्हारी शान
माँ री चिड़िया कड़े गई
एक बी कोन्या दिक्खी
माँ री चिड़िया कड़े गई
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