Tuesday, June 30, 2015

आखिर क्या है सरस्वती नदी का राज? Pawan Sonti

आखिर क्या है सरस्वती नदी का राज?
अरब सागर में या फिर बंगाल की खाड़ी में आखिर कहाँ मिलती है इसकी जल धारा?
कुरुक्षेत्र (पवन सोंटी)
सरस्वती नदी आदि काल से भारत के जनमानस की चेतना में बसती आई है| आस्था का केंद्र बिंदु रही यह नदी अपने आप में कई तरह के रह्श्य भी समेटे है| आज इस विषय पर चिंतन करने का कारन है केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती द्वारा दिया गया बयान| उनके अनुसार सरस्वती इलाहाबाद के संगम तट पर बहती थी| जबकि आश्चर्यजनक बात ये है की हरियाणा में शिवालिक पहाड़ियों की तलहट्टी में यमुनानगर जिला के आदि बदरी नामक स्थान पर सरस्वती के उद्गम स्थाल पर जो जानकारी लिखी है उसके अनुसार यह सरस्वती वैदिक सरस्वती है जोकि राजस्थान से होते हुए अरब सागर में जाकर मिलती है| रोचक बात ये है कि आदि काल से चली आ रही कथाओं के अनुसार सरस्वती इलाहाबाद में गंगा और यमुना के साथ संगम बनती है| इसको लेकर फिल्मों में गाने तक भी गाये गए| अब आम आदमी के लिए यह एक उलझन वाला सवाल है की आखिर क्या है इस सरस्वती का राज?


विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार:-
उद्गम स्थल तथा विलुप्त होने के कारण
महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। किन्तु आज आदिबद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती कह देते हैं। वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय हैं। जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं और ये तालाब और झीलें अर्ध्दचन्द्राकार शक्ल में पायी जाती हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर यापेहवा में इस प्रकार के अर्ध्दचन्द्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। लेकिन ये सरोवर प्रमाण हैं कि उस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती रही थी और उसके सूखने के बाद वहां विशाल झीलें बन गयीं। भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद (ग्लेशियर) से होता था। रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदिबद्री तक सरस्वती बहकर आती थी और आगे चली जाती थी।
वैज्ञानिक और भूगर्भीय खोजों से पता चला है कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकम्प आए, जिसके कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से हो कर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकम्प आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। दृषद्वती नदी, जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी, उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी। इसी दृषद्वती को अब यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। यमुना पहले चम्बल की सहायक नदी थी। बहुत बाद में यह इलाहाबाद में गंगा से जाकर मिली। यही वह काल था जब सरस्वती का जल भी यमुना में मिल गया। ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी। जैसा ऊपर भी कहा जा चुका है, प्रयाग में सरस्वती कभी नहीं पहुंची। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि भूगर्भीय यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची।

उमा भारती कहती हैं:- इसरो ने दिए संकेत, संगम पर बहती थी सरस्वती
 इलाहाबाद के संगम तट पर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने सरस्वती नदी बहने के संकेत दिए हैं। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा कायाकल्प मंत्री उमा भारती के मुताबिक राजस्थान और हरियाणा में इस बात के पहले ही साक्ष्य मिल चुके हैं। अब इलाहाबाद की बारी है। हालांकि इसके लिए अभी छह महीने का इंतजार करना पड़ेगा। अभी कुछ और साक्ष्यों की जरूरत है। इसके बाद ही इसकी आधिकारिक घोषणा की जाएगी। इलाहाबाद के सर्किट हाउस में नमामि गंगेप्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन देने आईं केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने संवाददाताओं को बताया कि इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। लंबे समय से इस सरस्वती नदी को खोजने का काम चल रहा था। वर्ष 2002 में इसके लिए प्रोजेक्ट सरस्वतीबना। ग्रांउड वाटर बोर्ड और इसरो इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। संयोग से ग्रांउड वाटर बोर्ड का मंत्रालय मेरे ही पास है। मंत्री बनने के बाद मैने इस दिशा में सरस्वती नदी की खोज के काम में तेजी लाने को कहा। इस दौरान इसरो की मदद से इलाहाबाद किले में जो सरस्वती कूप है कि उसमें सरस्वती नदी की धारा की वास्तविकता जानने के लिए काम करने को कहा गया। इसरो ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि कूप में सरस्वती की धारा हो सकती है। अब स्पेस टेक्नोलॉजी की मदद से अगर जल की धारा मिल जाती है तो यह देखा जाएगा कि वह धरती के कितने नीचे है।

क्या सच में मिली सरस्वती की जलधारा?
 धरती के नीचे सरस्वती के बहने की कथा हम भी बचपन से सुनते आ रहे हैं, लेकिन इसके प्रमाण अभी पुख्ता नहीं हुए हैं| इसके बावजूद सरस्वती नदी की खुदाई के दौरान गत दिनों यमुनानगर जिला के गाँव मुगलवाली में जमीन के गर्भ में छुपा पानी क्या मिल गया कि हमने सरस्वती की जलधारा के मिलने का ढिंढोरा ही पीट डाला, ठीक उसी तरह जैसे कि गत वर्ष उत्तर प्रदेश में राजा का दबा खजाना मिलने का ढिंढोरा दुनिया में पिटा था और वहां खुदाई तक कर डाली गई थी| सरस्वती की खुदाई के दौरान पानी मिलने की घटना को कुछ ऐसे प्रचारित किया गया मानो जमीन से धार फूट पड़ी हो फूटी सरस्वती की जलधारा| जहाँ तक मेरे याद आता है की बिलासपुर- सढोरा के क्षेत्र में जमीन में कई जगह 7-8 फूट पर पहला जलस्तर आ जाता है जिसे हम ग्रामीण भाषा में चोवा कहते हैं| यह उतना ज्यादा तो नहीं होता की इससे नलकूप लगाकर खेतों की सिंचाई की जा सके, लेकिन खड्डा खोदने पर उसमे पानी एकत्रित हो जाता| मेरे याद है की करीब बीस साल पहले सढोरा के निकटवर्ती गाँव सरांवी में मेरे भांजे रंधीर सिंह ने खेत में समतल करते हुए जब ट्रैक्टर से 5-6 फूट तक मिटटी खींच डाली थी तो जमीन से पानी निकल आया था| यही कारन रहा है की इस क्षेत्र में नलकूप के कुंए कभी कामयाब नहीं रहे| पहले चोवे का पानी कुँए से रिस रिसकर उसमे भर जाता था जिस कारण नीचे मोटरें डूब जाती थी| जब सबमर्सिबल तकनीक नहीं आई थी तो लोग इस क्षेत्र में टर्बाइन से पानी निकालते थे| हालांकि मैं सरस्वती के मौजूदगी को नहीं नकार रहा, लेकिन मुझे लगता है की बहुकोणीय जांच होनी चाहिए| आखिर यह हिन्दुओं की आस्था से साथ देश की पौराणिक संसिकृति से जुडा मुद्दा है|