BBC से साभार
- 23 दिसंबर 2014
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाक़े में किसान आत्महत्याओं का मुद्दा गंभीर हो चुका है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यहां औसतन रोज़ तीन किसान आत्महत्या कर रहे हैं. इस साल नवंबर तक 450 किसान ख़ुदकुशी कर चुके थे.
स्थानीय लोगों का कहना है कि किसान सूखे के कारण मर रहे हैं और सूखे को और गंभीर बना रही हैं शक्कर मिलें.
तीन साल से लगातार सूखा झेल रहे लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं. बेटियों का ब्याह नहीं हो पा रहा है, क्योंकि कर्जे से दबे किसान कंगाल हो चुके हैं.
पूरी रिपोर्ट
महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले का दाभरूल गांव लगभग आधा रह गया है, जिनमें ज़्यादातर औरतें और बूढ़े हैं.
गिने-चुने लोगों में एक गौतम वावले बताते हैं, "हमारे लगभग 40 प्रतिशत लोग पानी न होने के कारण गांव छोड़कर चले गए हैं. अब जो भी काम मिलेगा, हम करने को तैयार हैं."
दाभरूल औरंगाबाद मराठवाड़ा के उन हज़ारों से अधिक गांवों में एक है, जो पानी की भारी किल्लत से परेशान हैं.
लगातार तीन साल तक बारिश न होने और खेतों में पैदावार न के बराबर होने से कई लोग घर छोड़कर चले गए हैं.
पैठण तहसील के हर्षी गांव के किसान अंकुश घायाल ने लगभग एक महीना पहले आत्महत्या की थी.
उनके 12वीं पास बेटे गणेश को इस कारण अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
पलायन
गणेश बताते हैं, "हमारी पांच एकड़ जमीन है, जिसमें अनार और ज्वार होते थे. लेकिन कुओं में भी पानी नहीं है. कर्ज़े में डूबे होने के कारण मेरे पिता ने आत्महत्या की. अब उनके बाद मुझे ही यह संभालना पड़ रहा है क्योंकि मेरा भाई अभी दसवीं में पढ़ रहा है."
मराठवाड़ा के विभागीय आयुक्त कार्यालय के अनुसार, नवंबर के आखिर तक इलाक़े के 422 किसानों ने आत्महत्या की थी, जिनमें सबसे ज़्यादा 122 बीड़ में हुईं. हर दिन कम से कम तीन आत्महत्याएं दर्ज हो रही हैं.
अब तक यह आंकड़ा 450 को पार कर चुका है. पिछले एक सप्ताह में यहां के 100 से अधिक किसान अपना जीवन समाप्त कर चुके हैं.
ग्रामीणों के मुताबिक़ यहां के लगभग 100 किसान परिवार गन्ने की कटाई के लिए मज़दूरों के रूप में काम करने चले गए हैं.
नतीजा ये कि गांवों में घर-घर ताले लगे हैं. इस क्षेत्र के बाक़ी ज़िलों नांदेड़, बीड़, उस्मानाबाद, परभणी, जालना, लातूर और हिंगोली में भी कमोबेश ऐसे ही हालात हैं.
राजनीति
नांदेड़ के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने किसानों की आत्महत्या का मामला लोकसभा में उठाया, पर केंद्रीय कृषी मंत्री राधा मोहन सिंह ने जवाब दिया कि इस समस्या के लिए पूर्व की सरकारें ज़िम्मेदार हैं.
मराठवाड़ा के इन भयानक हालात का मुद्दा विधानसभा के नागपुर सत्र में भी उठा. हंगामे के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने 7,000 करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया.
यह पैकेज किसानों के कर्ज़ की माफ़ी को लेकर था, लेकिन मराठवाड़ा की पानी की समस्या की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया.
ऐसा पैकेज पहले विदर्भ को भी दिया जा चुका है, लेकिन वो कहां ख़र्च हुआ और उसका क्या असर हुआ, इसके बारे में ज़्यादा जानकारी किसी को नहीं.
शक्कर मिलें
जायकवाडी पानी नियोजन एवं संघर्ष समिति के नेता जयाजीराव सूर्यवंशी के मुताबिक़, "जो पानी जायकवाडी बांध में आना है, उसी से अहमदनगर ज़िले के 100 गांव और पांच शक्कर कारखाने चलते हैं."
वह कहते हैं, "नाम तो शक्कर का है, लेकिन असल में ये कारखाने शराब बनाते हैं और सारा किया-धरा उसी के लिए है. मराठवाड़ा में किसानों की बढ़ती आत्महत्याएं इसी नीति का परिणाम हैं. ये आत्महत्याएं नहीं हैं, ये सरकार की ग़लत नीतियों का परिणाम हैं. इसके लिए शक्कर सम्राटों की राजनीति ज़िम्मेवार है."
रेगिस्तान हो चुके गांवों की समस्या अब सामाजिक हो चली है. कई गांवों में तीन-तीन वर्षों से लड़कियों की शादी नहीं हुई, क्योंकि किसानों के पास उनकी शादी के लिए पैसा ही नहीं है.
गांवों में कोई लड़की ब्याहने को तैयार नहीं, क्योंकि पानी एक बड़ी समस्या है.
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