Monday, November 26, 2012

गुरु नानक देव जयंती पर विशेष




ब्रह्मांड की इलाही आरती के रचयिता श्रीगुरुनानक देव

सुरेंद्र पाल वधावन/शाहाबाद मारकंडा
-गगन में थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोति॥धूपु  मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत होती॥ २॥ कैसी आरती होइ॥ भव खंडना तेरी आरती॥ यह इलाही आरती की पंक्तियां हैं जिनमें प्रथम गुरु नानक देव जी के विराट दृष्टिकोण और उनके आलौकिक व्यकितत्व की झलक मिलती है। सिख धर्म के प्रवत्र्तक गुरु नानक देव जी का जन्म 20 अक्तूबर1469 में राय भोये की तलवंडी $िजला शेखुपुरा में मेहता कल्याण दास के यहां हुआ था। आपकी माताजी का नाम तृप्ता देवी था और बहन का नाम नानकी देवी थाोि आप से छह साल बड़ी थीं। गुरु नानक देव जी के जन्म समय उनकी धाए-मां माई दौलतां बालक के चेहरे पर इलाही नूर देख कर हतप्रभ रह गई और बाद में आपकी जन्म कुंडली बनाने वाले पंडित हरदयाल ने भविष्यफल बताते यह घोषणा की कि यह बालक बादशाहों का बादशाह होगा और हिंदु और मुस्लमान दोनों   के लिये आराध्य होगा। पंडित हरिदयाल की भविष्यवाणी सत्य सिद्घ हुयी और वह हिंदुओं के गुरु और मुस्लमानों के पीर कहलवाये ।गुरु नानक देव को मुसलमान नानकपीर पुकारते थे। 
बाल्यकाल से ही प्रभुभक्ति और चिंतन में लीन रहने वाले गुरु नानक देव ने पंजाबी,हिंदी और संस्कृत भाषा की शिक्षा पंडित गोपाल दास  से ग्रहण की और बाद में मौलवी कुतबुद्ïीन से फारसी का ज्ञान लिया।
आपके बाल्यकाल से जुड़ी अनेक साखियां हैं जिनमें एक कोबरा सांप द्वारा धूप से बचाव के लिये फन से आपके सिर पर छाया करना,पिता द्वारा व्यापार के लिये दिये गये 20चांदी के सिक्कों को भूखे साधुओं पर खर्च करना और इसे सच्चा सौदा बताना और दौलत खां लोधी के अनाज को मु$फत ही लोगों में बांट देना आदि। 18 वर्ष की आयु में गुरुनानक देव की शादी माता सुलखणी से हुई और 1494 में उनके बड़े पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ और बाद में 1496 में दूसरे पुत्र लक्ष्मी चंद ने जन्म लिया। गुरु नानक देवजी जिस नदी में स्नान कर बाद में वहीं पर ध्यानमग्न हो जाते थे उसे बेई नदी कहा जाता था। इसी बेई के तट पर आपने विख्यात श्री जपुजी साहिब की रचना की थी और रुहानियत का संदेश हासिल किया था। इसे बाद में बाबा नानक की नदी कहा जाने लगा। आजकल इसे काली बेई कहाजाता है। इसे प्रदूषण मुक्त करने का बीड़ा संत बलबीर सिंह सींचेवाल ने उठाया है।
 गुरु नानकदेव जी ने एक ईश्वरवाद के सिद्घांत का प्रचार करने के लिये चार बड़ी उदासियां कीं । उन्होंने हिंदु धर्म में पनप चुके अंधविश्वासों और आडंबरों का तर्क व युक्ति से विरोध किया। जगन्नाथ के प्रसिद्घ मंदिर में गुरु पूर्णिमां के पावन अवसर पर जब पुजारी एक छोटी सी थाली में दीपक जला कर आरती उतार रहे थे तो उन्होंने सहसा कंठ से वहीं संपूर्ण ब्रहमांड  की आरती का उच्चारण किया -गगन में थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोति॥धूपु  मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत होती॥ २॥ कैसी आरती होइ॥ भव खंडना तेरी आरती॥ जिससे तात्पर्य है कि सारा ब्रहमांड मानो एक थाल है,सूर्य और चंद्र इस थाल में दियों की भांति  प्रज्जवलित हैं,तारों के समूह मोतियों की भांति जड़े हैं। मलय पर्वत की और से आने वाली सुगंधमय पवन मानों धूप है,हवाएं चवर झुला रही हैं,समस्त वनस्पतियां ज्योति स्वरुप प्रभु की आरती में फूल अर्पित कर रही हैं। । हे जीवों के जन्म-मरण का नाश करने वाले। तुम्हारी कैसी सुंदर आरती हो रही है।
गुरुनानक देव जी ने मूलमंत्र दिया कि- एक ईश्वर है,औंकार स्वरुप है,सतनाम है ,कर्ता पुरुष है,भय से रहित है ,वैर से रहित है ,कालातीत मूर्ति है,स्वंयभू है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
गुरु नानक देव जी 1539में करतारपुर में ज्योति जोत समा गये।

सुरेंद्र पाल वधावन----------153 हुडा सेक्टर 1 शाहाबाद मारकंडा जि़ला कुरुक्षेत्र 094168-72577

1 comment: