अहमदाबाद: गुजरात के राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) ने घर में शौचालय न होने के कारण राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में किस्मत आजमा रहे एक कांग्रेस उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द कर दी। नए कानून के तहत यह जरूरी है कि स्थानीय निकाय चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के घरों में शौचालय की सुविधा हो।
नवसारी जिले की गणदेवी तहसील पंचायत से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस उम्मीदवार अशोक तालविया का नामांकन उस वक्त खारिज कर दिया गया जब स्थानीय चुनाव अधिकारियों ने शनिवार को उनके घर का निरीक्षण किया।
बीजेपी उम्मीदवार की मांग चुनाव अधिकारियों ने अजरई सीट से भाजपा उम्मीदवार राकेश पटेल की मांग के बाद तलाविया के घर का निरीक्षण किया था। पटेल ने मांग की थी कि तलाविया की उम्मीदवारी रद्द कर दी जाए क्योंकि उनके घर में शौचालय नहीं है।
गुजरात स्थानीय प्राधिकरण (संशोधन) कानून, 2014 के तहत स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों के लिए यह जरूरी है कि उनके घर में शौचालय की सुविधा हो। यह कानून पिछले साल पारित हुआ था।
भाजपा उम्मीदवार राकेश पटेल जीते गणदेवी तहसील के चुनाव अधिकारी एस जे चौहान ने कहा, ‘‘नए कानून के मुताबिक, चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के घर में शौचालय की सुविधा होना जरूरी है। चूंकि तलाविया के घर में शौचालय नहीं था, तो हमने उनका नामांकन खारिज कर दिया।’’ तलाविया का नामांकन रद्द होने का परिणाम यह हुआ कि पटेल इस सीट पर बगैर चुनाव लड़े ही जीत चुके हैं। अजरई सीट पर सिर्फ दो उम्मीदवारों ने ही नामांकन दाखिल किया था।
आर जे डी बनी सबसे बड़ी पार्टी, भाजपा तीसरे स्थान पर
पवन सोंटी (कुरुक्षेत्र)
बिहार के विधान सभा चुनाव ने देश को एक नई दिशा दे दी है| धुआंधार चुनाव प्रचार करके भी भाजपा के स्टार प्रचारक पार्टी को सत्ता की देहलीज तक पहुँचाने में कामयाब नही हो सके| हालांकि भाजपा में प्रशित के हिसाब से पहले स्थान पर है, लेकिन आर जे डी तथा जे डी यु और कांग्रेस गठबंधन मिलाकर बहुमत के साथ सरकार बनाने अब पूरी तरह तैयार है| इसके बावजूद नितीश कुमार के लिए अगले पांच साल पिछले दस साल के मुकाबले अधिक चुनौती पूरन रहेंगे, इसमें कोई दोराय नही है| अगर मत विभाजन पर नजर डालें तो लालू प्रसाद की आर जे डी को अकेले 80 सीटें मिली हैं जबकि नितीश कुमार की जे डी यु को 71 सीटें मिली हैं| भाजपा को 53 सीट पर संतोष करना पड़ा तो राहुल गाँधी के नेत्रित्व में कांगेस को 27 सीटें ही मिली हैं| केन्द्रीय मंत्री रामविलाश पासवान के लोक् जन शक्ति पार्टी को केवल 2 व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राव मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा पार्टी को केवल एक सीट ही मिल पाई|
दल का नाम
विजयी
आगे
कुल
इंडियन नेशनल कांग्रेस
27
0
27
भारतीय जनता पार्टी
53
0
53
जनता दल (यूनाइटेड)
71
0
71
राष्ट्रीय जनता दल
80
0
80
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
2
0
2
लोक जन शक्ति पार्टी
2
0
2
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट-लेनिनिस्ट)(लिबरेशन)
1966 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि हरियाणा में पंचायती चुनाव खेल सा बनकर रह गया है। पूरे 3 महीने से हजारों गांव पंचायत शून्य होकर रह गए हैं। गत 24 जुलाई से सरपंचों की शक्तियां खत्म करते हुए उनके बस्ते ग्राम सचिवों व खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों के पास जमा हैं और अभी तक अगली पंचायतों का गठन नहीं हो पाया है। बुधवार का दिन ग्रामीणों के लिये तनाव पूर्ण था कि इस दिन सर्वोच्च न्यायालम क्या फैसला देगा, लेकिन इस दिन भी वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया गया। अब यह भविष्य के गर्भ में है कि अदालत कब और क्या फैसला सुनाती है। विदित रहे कि मौजूदा सरकार ने आनन फानन में हरियाणा पंचायती राज कानून 1994 में नया संशोधन (हरियाणा पंचायती राज संशोधन कानून-2015) के नाम से करते हुए चुनाव प्रक्रिया जारी की थी, लेकिन नए संशोधन के कायदे कुछ लोगों को रास नहीं आए और यह कानून ही अदलातों की दहलीज के भीतर जा पहुंचा। नौबत यहां तक आई कि कानून को स्टे कर दिया गया जिस पर लम्बी बहस के बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। लेकिन इस फैसले से भी किसी को कोई लाभ नहीं हुआ है क्योंकि अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए दोनों पक्षों को कहा है कि यदि अपनी बात रखना चाहें तो एक सप्ताह के भीतर वे लिखित रूप में अपनी बात कोर्ट में रख सकते हैं। इसके बाद ही फैसला सुनाया जाएगा। अभी यह निश्चित नहीं है कि एक सप्ताह बाद भी फैसला सुना दिया जाएगा अथवा चौटाला बंधुओं की सजा के फैसले की तरह वह महीनों तक दफन रहेगा।
क्या रही दलीलें?
27 अक्तूबर की सुनवाई में दलीलों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कई सवाल उठाए। सरकार ने अपने हल्फनामें में कहा कि नई शर्तों के लागू होने के बाद 43 फीसदी लोग चुनाव से वंचित रह जाएंगे। इस पर अदालत ने सवाल किया कि क्या आप मान रहे हो कि यह आंकड़ा छोटा है। उधर याचिका कर्ता के वकील ने इस आंकड़े को भी गलत बताया और कहा कि 64 प्रतिशत लोग चुनाव से वंचित हो जाएंगे। सरकार के आंकड़ों को चुनौती दी जा रही है। अदालत के प्रश्र के उत्तर में सरकार की ओर से बताया गया कि हरियाणा में चार सांसद निरक्षर हैं। इस पर अदालत ने कहा कि सामान्य तरीके से भी पढ़े लिखे लोग आगे आ रहे हैं। स्कूलों की स्थिति बताते हुए बताया गया कि प्रदेश में 20 हजार स्कूल हैं। इसमें प्राइमरी, मिडिल और हाई स्कूल शामिल हैं। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने प्रश्र किया कि आप सरकारी स्कूल बताएं। 20 हजार की संख्या तो निजी स्कूलों को मिलाकर है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 1829 स्कूल सीनियर सेकंडरी हैं। 3200 स्कूल मैट्रिक तक। वह भी शहरी क्षेत्र के स्कूल मिलाकर।
अब क्या होगा?
चुनाव आयोग द्वारा चुनावी कार्यक्रम घोषित होने के बाद लगभग सभी संभावित उम्मीद्वारों ने अपना चुनाव प्रचार आरम्भ कर दिया था। अधिकतर लोगों ने वक्त से समझौता करते हुए अपने घर से पढे लिखे बेटों अथवा बहुओं को आगे कर दिया था और उनके नाम से सभी कागजी कार्यवाही पूरी कर ली थी, लेकिन अचानक 17 सितंबर को अदालत के स्टे आदेश के बाद स्थिति उलझन की बन गई। नहीं तो नए कानून को भी मन मसोकर लोग आत्मार्पित कर रहे थे। अब स्थिति यह बन गई है कि न तो चुनाव प्रचार कर पा रहे हैं और न पूरी तरह से प्रचार स्थगित कर पा रहे हैं। लोगों में आशंका यह भी बनी हुई है कि सरकार जान बूझकर चुनाव लम्बे समय तक लटकाना चाहती है ताकि पंचायती व्यवस्था को अपने हाथों में रखा जा सके। उधर विपक्षी दलों को भी इस मुद्दे पर सरकार को कोसने का पूरा मौका मिल रहा है।
आखिर क्या है विवाद की जड़?
विधानसभा सत्र के अंतिम दिन 7 सितंबर 2015 को सरकार ने पंचायती राज संशोधन विधेयक-2015 विधानसभा में पारित किया था जिसमें चुनाव लडऩे के लिये कुछ शर्तों को जोड़ा गया था। इनमें शिक्षा को शामिल करते हुए सामान्य व पिछड़ा वर्ग के लिये पंच, सरपंच, ब्लाक समिति सदस्य एवं जिला परिषद सदस्य के लिये 10वीं पास और महिलाएं व अनुसूचित जाति के पुरुषों के लिए 8वीं पास होना जरुरी किया गया था तथा पंच पद के लिए अनुसूचित जाति महिला की शैक्षणिक योग्यता 5वीं पास रखी गई थी। बिजली विभाग व प्रदेश के सरकारी तथा सहकारी बैंकों का अतिदेय न होने के प्रमाण पत्र होना जरूरी किया गया। घर में शौचालय होने का व किसी जघन्य अपराध में चार्जशीट न होने का हल्फनामा देना भी अनिवार्य किया गया था। इसमें मुख्य रूप से शिक्षा व बिजली तथा बैंकों का कर्ज चुकता करने की शर्त को लेकर लोगों में रोष था।
चुनावी घटनाक्रम क्रमवार:
मार्च 2015 के अंत तक चुनावी प्रक्रिया को लेकर विभाग ने अधिकतर ग्राम पंचायतों, ब्लाक समितियों व जिला परिषदों की वार्ड बंदी जारी कर दी थी। जिसके बाद लोगों ने संभावित उम्मीद्वारी की घोषणाऐं करनी आरम्भ कर दी थी।
12 जून 2015 तक लग भग सभी जिला परिषदों तक की आरक्षण सूचियों के ड्रा भी हो चुके थे जिसके बाद कई संभावित उम्मीद्वारों को अपने वार्ड महिला आरक्षित होने के कारण माताओं अथवा पत्नियों को मैदान में उतारना पड़ा।
24 जुलाई 2015 के बाद पंाचयतों का कार्यकाल खत्म होना था सो इसी दिन सरपंचों से चार्ज ले लिया गया और गावों की बागडोर सीधे पंचायती विभाग के हाथों में आ गई।
इसके पश्चात सरकार ने काफी सोच विचार के बाद मंत्री मंडल की बैठक में पास करके पंचायती राज कानून में संशोधन संबंधी अध्यादेश जारी कर दिया जिसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
आनन फानन में प्रदेश सरकार ने विधानसभा सत्र के अंतिम दिन 7 सितम्बर को मामूली संसोधन करते हुए इस अध्यादेश को वापिस लेकर नया संशोधन विधेयक पारित कर दिया। इस कानून के देर सांय तक प्रकाश में आने के बाद अगले दिन यानि 8 सितंबर को राज्य चुनाव आयोग ने दोपहर से पहले ही पंचायती चुनाव घोषित कर दिये।
4,11 व 18 अक्टूबर को 3 चरणों में चुनाव घोषित किए गए।
10 सितंबर को इस नए कानून को चुनौती देते हुए हिसार की वेदवंती ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में शैक्षणिक योग्यता पर याचिका दाखिल कर दी।
14 सितंबर को उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पंचायत प्रक्रिया पर रोक लगाने से
इनकार कर दिया।
15 सितंबर से पहले चरण तथा सभी जिला परिषदों के लिये नामांकरन प्रक्रिया जारी हो गई।
17 सितंबर को जगमती सांगवान व अन्य की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने नए संशोधन कानून पर रोक लगाते हुए सरकार के सामने विकल्प रखा कि पुराने कानून के तहत चुनाव करवाना चाहे तो करवा सकती है।
सरकार ने भी आनन फानन में 18 सितंबर से पुराने नियमों के अनुसार भी नामांकर स्वीकारने का काम शुरु करवा दिया और शर्त रख दी की सर्र्वोच्च न्यायालय का जो फैसला होगा वो इन पर लागू होगा।
उधर सरकार ने अदालत से जल्दी सुनवाई का वक्त मांगा और 22 तारीख तक अपना पक्ष रखने की बात कही। इस कारण 21 तारीख को नामांकनों की छंटनी का घोषित कार्यक्रम भी बदलना पड़ा और इसे 22 सितंबर को कर दिया गया।
22 सितंबर को अदालन ने सरकार की एक नहीं सुनी और 7 अक्टूबर की तारीख दे डाली जिस कारण चुनाव प्रक्रिया वहीं रोक दी गई।
फिर 7 अक्टूबर को दिनभर की बहस के बाद अगले दिन के लिए सुनवाई की तारीख तय कर दी गई।
8 अक्टूबर को सारा दिन की बहस के बाद अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 13 अक्तूबर रख दी।
13 अक्टूबर से लगातार तीन दिन तक सुनवाई चली और अंतत: अदालत ने 27 अक्टूबर की अगली तारीख सुनवाई के लिए तय कर दी।
गत दिवस 27 अक्टूबर को दिनभर सुनवाई चली और सरकार ने अपना पक्ष रखा तथा बकाया दलीलों पर 28 अक्टूबर को फिर से सुनवाई हुई। आज अदालत ने सुनवाई के उपरांत फैसला सुरक्षित रख लिया।