Tuesday, June 4, 2013

बचपन की वे चुडैलें ...Ranjana Jaiswal

                                                                                                                           रंजना जैसवाल

बचपन के गाँव में अक्सर औरतों को चुड़ैल पकड लेती थी |वह भी अक्सर तब जब वे शौच के लिए रात-विरात बसवाड़ी की तरफ जाती थीं |फिर वे घर आकर खेलने लगती थीं |उछल-उछलकर गिरतीं |गालियाँ बकती |बड़े-छोटे का कोई लिहाज ना करतीं |अपने ऊपर ढाएं गए जुल्मों को गिनातीं |बहू होने पर भी लंबे बाल खोलकर नंगे सिर बैठ जातीं |फिर सोखा आता |हट्टे-कट्ठे सोखा की मार से चुडैलें त्राहि-त्राहि करती भाग खड़ी होती |मुझे इस दृश्य से बड़ा डर लगता |सोचती -आखिर औरतों को ही क्यों चुडैलें पकडती हैं ,मर्दों को क्यों नहीं और सोखा मर्द ही क्यों होता है ,औरत क्यों नहीं ?वह तो बहुत बाद में मेरे गुरू ने बताया कि चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होती |दरअसल गाँव की कुछ औरतों की अतृप्त इच्छाएँ व दमित स्वतंत्रता ही चुड़ैल बन जाती हैं |दिन भर सात हाथ के घूँघट में बंधुआ मजदूर बनी औरतें जब सुबह-शाम शौच जाने के बहाने थोड़ी देर के लिए आजाद होतीं हैं ,तो उस समय उनकी दमित इच्छाएँ खुली हवा में सांस लेतीं हैं |वे खुली हवा में उड़ जाना चाहतीं हैं ,पर अपने दमित जीवन की विवशता और बंधनों को सोचकर उदास हो जातीं हैं |वे सोचतीं हैं -आखिर क्यों वे अन्याय-अत्याचार सहकर भी चुप रहने को विवश हैं |अपनी वस्तुस्थिति का ज्ञान उनमें बदले की भावना भर देता है |परिणाम यह होता कि घर पहुँचते-पहुँचते उन्हें चुड़ैल पकड़ चुकी होती है |फिर वे कभी हंसतीं-कभी विलाप करतीं हैं और हाथ पैर पटकतीं हैं |दरअसल वे अपने मनुष्य समझे जाने के लिए चीत्कार करतीं हैं | सामान्य रहने पर वे अपनी व्यथा किसी से नहीं कह सकतीं,तो चुड़ैल के बहाने अपनी भडास निकाल लेती हैं |
पर जिस तरह दमित -गुलाम स्त्रियों की ईजाद चुडैलें होती हैं ,उसी तरह मर्दों की ईजाद 'सोखा 'होता है |मर्द समाज जानता था कि स्त्रियों पर सवार चुडैलें उनके घर की इज्जत का तमाशा बना सकती हैं |घर की भीतरी कालिख सबके सामने उसके मुख पर मल सकती हैं ,आजाद हो सकती हैं |इसलिए उनको नियंत्रण में रखने के लिए सोखा पालता था |स्त्री सोखा को शायद चुड़ैलों से अपनापा हो जाता ,इसलिए मर्द ही सोखा होते |सोखा कोई काम नहीं करता था पर पूरा गाँव अपनी फसल का कुछ हिस्सा सोखा को देता |इस तरह स्त्रियाँ डाल-डाल थीं तो मर्द पात-पात |आज बहुत कुछ बदला है पर कितना ?
-एक नाराज औरत की डायरी
Like · · · May 31 at 8:26pm ·

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