Monday, January 22, 2018

जाट धर्मशाला के समारोह मे बोले दीपेन्द्र हुड्डा: ​किसान वर्ग तभी ऊपर उठ सकता है, जब देश की कृषि मजबूत होगी

कुरुक्षेत्र, 22 जनवरी (विनय चौधरी): जाट धर्मशाला कुरुक्षेत्र का वार्षिकोत्सव एवं दीन बंधु चौधरी छोटू राम जयंती धूम धाम से मनाई गई। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्यातिथि व रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने अपने संबोधन में कहा कि सर छोटूराम ने एक छोटे से किसान परिवार में जन्म लेकर बहुत बडा मुकाम हासिल किया। वे जाति धर्म से उपर उठकर कहते थे कि पेशावर से लेकर पलवल तक खेत में पसीना बहाने वाले हर किसान मेरे वारिश हैं। उन्होने किसानों को उनके अनेक हक दिलवाए। सर छोटूराम जी अक्सर बोलते थे कि किसान वर्ग तभी ऊपर उठ सकता हैजब देश की कृषि मजबूत होगी। तभी खेत में पसीना बहाकर अन्न पैदा करने वाले किसान के बच्चे सुखी जीवन यापन कर सकते हैं। 

हुड्डा ने कहा कि आज फिर से हरियाणा का किसान मुश्कित के दौर से गुजर रहा है। अब हरियाणा के लोगों को सोच समझ कर आगे बढऩे की आवश्यकता है। पिछले तीन वर्षों में प्रदेश की मौजूदा सरकार ने किसान वर्ग को मुश्किल में डालने का काम किया है। कांग्रेस सरकार का जिक्र करते हुए हुड्डा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी पहली कलम से 1600 करोड रूपए के बिजली के बिल माफ करने का काम किया था। उन्होने किसानों की फसल का भाव देने का कार्य किया थालेकिन आज स्थिति उल्ट है।
उन्होने कहा कि कांग्रेस राज में जब चीनी 30 रूपए किलो थी तो गन्ने का भाव 310 रूपए प्रति क्विंटल थालेकिन आज चीनी 40 के पार है तो गन्ने का रेट मात्र 320 रूपए प्रति क्चिंटल है। जबकि चीनी के दाम के हिसाब से गन्ने का रेट 400 रूपए प्रति क्चिंटल होना चाहिए था। कार्यक्रम के दौरान दीपेंद्र हुड्डा ने जाट सभा को 11 लाख रूपए देने की भी घोषणा की। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व मंत्री हरमोहिंद्र सिंह चट्ठा ने कहा कि उसका शौभाग्य है कि उन्हे अपने पिता जी के साथ एक बार सर छोटू राम के कार्यक्रम मे जाकर उन्हे सुनने का मौका मिला था। चट्ठा ने कहा कि आज जिस जमीन के हम मालिक बने बैठे हैंयह सब सर छोटूराम की देन है।  उन्होने किसानों के हित में अनेक कानून बनाए। वे सभी धर्मों व जातियों के लोगों को एक साथ लेकर चलते थे। 
कार्यक्रम के अंत में धर्मशाला के प्रधान राजकुमार ने अतिथियों का धन्यवाद किया। उन्होने बताया कि धर्मशाला के सदस्यों के कोल्जियम को लेकर 15 फरवरी तक का समय दिया गया है जिसे भी आप्ति हो वो जाट धर्मशाला से संपर्क कर सकते हैं। इस अवसर पर पूर्व कृषि मंत्री सरदार हरमोहिंदर सिंह चट्ठा, पूर्व सांसद कैलाशों सैनी, जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष मेवा सिंह, मनदीप सिंह चठ्ठाजाट धर्मशाला के प्रधान राजकुमार, दलबीर डांडा, मास्टर गुरनाम सिंह, रामस्वरूप करोड़ा, बलबीर मास्टर, डाक्टर हवा सिंह, डाक्टर धर्मपाल, रमेश डांडा, पवन सोंटीभले सिंह मैनेजरशमशेर मलिकजिले सिंह हथीराछज्जू राम धनोरीसुरेश नैन, रणधीर हथीरा, महिंदर किरमच, अजमेर सिंहधर्म सिंह सारसा, सुरेन्द्र ढिल्लो, दीवान किरमचशमशेर ढुल, मदन मलिक, पूर्ण सिंह किरमच, लेखराज लाठर, मेहर सिंह आदि सहित भारी संख्या में समाज के गणमान्य लोग उपस्थित थे।

वक्त की तकदीर स्याही से लिखी नहीं जाती: 23 जनवरी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस पर विशेष


लेखक: प्रदीप कुमार आर्य
 भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लेने वाले वीर सेनानियों की जब जब याद आती है तभी उन सभी क्रान्तिकारियों व शहीदों की याद में मस्तक झुक जाता है, जो अपनी चढ़ती जवानी को अपनी मातृभूमि पर न्यौछावर कर गये। 
उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है सुभाष चन्द्र जिनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ नेताजी कहकर लिया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ही एक ऐसे क्रातिंकारी  हैं जो अपने बाहुबल  से अन्य देशों में जाकर आजाद हिन्द सेना की कमान संभाल कर भारत माता की गुलामी की जंजीर काटने में सफल हुए।
नेताजी त्यागी, परम उत्साही महान वीर एवं कट्टर देशभक्त हैं हर मुश्किलों का सामना करने की क्षमता नेताजी में थी। आज भी उस महापुरुष का नाम लेते ही भारत वासियों का सिर श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है।
वीर शिरोमणि सुभाष चन्द्र का जन्म 23 जनवरी 1897 ई में बंगाल के कोड़ोनियानामक गांव में हुआ था। इनके पिता जी श्री जानकी नाथ जी बसु सरकारी वकील थे और सरकार ने उन्हें सम्मान में राय बहादुर की उपाधि दे रखी थी।
नेताजी बचपन से ही उन्नत तेजस्वी एवं कुषाग्र बुद्धि रहे। आप के स्वाभिमानी व्यक्तित्व की झलक विद्यार्थी जीवन में ही प्रकट हो गई थी। जब आप कलकत्ता के प्रेसीडैंसी कालेज में पढ़ते थे। उन दिनों एक ओटननामक अंग्रेज प्रोफैसर ने भारतीयों के लिये कई अपमानजनक बातें कह दी थी। लेकिन यह अपमान वीर सुभाष से सहन नहीं हो सका और खड़े होकर प्रोफैसर को होष में आने को कहा। लेकिन सत्ता में मदहोष प्रोफैसर ने उल्टा कुत्ता बास्टर्ड़ की गाली दी, जो कि भारतीयों का अपमान एवं उपहास थी तथा अंग्रेजों के षासन होने के घमण्ड़ का सूचक थी। यह सुनकर वीर सुभाष चन्द्र का खून खौल उठा और प्रोफैसर का गला पकड़ कर कहा हम कुत्ते हैं इसलिये कि तुम्हारे गुलाम हैं। लुटेरे, गोरे बन्दर यह गाली किस मुहॅ से दी?’ और एक झन्नाटेदार थप्पड़ प्रोफैसर के मुहॅ पर दे मारा। बस यह थप्पड़ क्या था मानों अंग्रेजी सरकार को खुली चुनौती थी। 1857 की आजादी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों के मुहॅ पर भारत का पहला तमाचा था।
पहली बार सुभाष चन्द्र बोस पर तब संकट का बादल मण्ड़राया जब अंग्रेजों ने उन्हें खतरनाक हिन्दुस्तानीघोषित कर कलकत्ता की जेल में ड़ाल दिया और कुछ समय पष्चात अंग्रेज सरकार ने यह भी घोषित कर दिया कि सुभाष चन्द्र की मृत्यु हो गई। पर सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेजों की जेल से वेष बदल कर निकल चुके थे। अंग्रेज सिपाही  भी सुभाष  की खोज में चारों तरफ निकल पड़े, सिपाही ड़ालश्ड़ाल तो सुभाष पातश्पात। कहीं पठान के वेष में, कहीं हिन्दुस्तानी के वेष में, तो कभी विदेषी अंग्रेजी बनकर सुभाष बाबू अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकते हुए बच निकले। अंग्रेज तो तब हैरान रह गये जब वीर सुभाष ने 1939 में अपने जीवित होने की घोषणा की और सिंगापुर में जाकर एक विषाल जनसमुह को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत को आजाद कराने के लिये दो करोड़ ड़ालर की आवष्यकता है। यह अपील सुनते ही कुछ ही क्षणों में मंच पर धन व गहनों का ढ़ेर लग गया। इस से आम जनता की भावना का संकेत मिल चुका था और सुभाष ने नारा दिया तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।यह आहवान सुनकर अनेकों नौजवानों ने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर सर्वस्व न्यौछावर करने का संकल्प लिया। इस तरह सुभाष बाबू ने नौजवानों के दिलों में आजादी के लिये क्रान्ति पैदाकर आजाद हिन्द फौज की कमान संभालते हुए संग्राम का बिगुल बजा दिया।
प्रथम आक्रमण करतेश्हुए अनेक स्थानों पर कब्जा करते हुए सेना आगे बढ़ रही थी लेकिन बीच में ही वर्षा षुरु हो गई जिससे यह लड़ाई बीच में ही रुक गई। जिसके बाद पुनः आजादी की कामना करते हुए अपनी आजाद हिन्द के सेनानियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि साथियो मैं, सुख में-दुख में, दिन में-रात में, हार में-जीत में हर परिस्थितियों में आपके साथ रहॅूंगा, हमारा लक्ष्य दिल्ली है। हमारा आन्दोलन तभी षान्त होगा जब हम लालकिले की चोटी पर तिरंगा फहरायेगें।
इसके बाद आजादी की तमन्ना लिये वीर सुभाष चन्द्र बोस आगे बढ़े, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ साथियों के गद्दारी करने से इस बार भी लक्ष्य तक नहीं पहुँच सके। बारश्बार की असफलता प्राप्त होने पर भी नेताजी ने हिम्मत नहीं हारी, और किसी नई योजना के अनुसार आजादी की खोज में चले गये तथा अदृष्य हो गये।
इस सम्बन्ध में कोई कहता है कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी विमान दुर्घटना में मर गये, कुछ लोगों का कहना है कि वो छिपे हुये हैं। वस्तुतः स्थिति क्या है, इस सम्बन्ध में दृढता़पूर्वक कोई नहीं कह सकता, लेकिन नीचे दिये गये तथ्यों के आधार पर यह अवष्य कहा जा सकता है कि 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई।
1 आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च अधिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सन् 1999 तक राष्ट्र सघ्ां के यु़द्ध अपराधी क्यों घोषित किये गये? यदि 1945 में मर चुके थे तो उसके बाद 1999 तक  युद्ध अपराधी मानना अपने आप में षक पैदा करता है।
2 सन् 1947 के आजादी के समझोते के गुप्त दस्तावेज तथा फाईल नं. 10 पेज नं. 279 को अध्ययन करने से पता चलता है कि 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई।
3 नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कथित मृत्यु की घोषणा के उपरान्त नेहरु जी ने सन् 1956 में षाहनवाज कमेटी तथा इन्दिरा गांधी ने 1970 में खोसला आयोग द्वारा जांच करवाई तथा दोनों रिर्पोटों में नेताजी को मृत घोषित किया गया, लेकिन 1978 में मोरारजी देसाई ने इन रिर्पोटों को रद्द कर दिया। तथा राजग सरकार ने भी मुखर्जी आयोग की स्थापना कर पुनः इस प्रष्न का उत्तर तलाषने का प्रयास किया था। लेकिन मुखर्जी आयोग द्वारा जांच रिपोर्ट को वर्तमान कांग्रेस सरकार ने मानने से ही इंकार कर दिया। इस जांच रिपोर्ट में जापान सरकार द्वारा जापान में 18 अगस्त 1945 को कोई दुर्घटना होने की बात को सिरे से खारिज करना इस सन्देह को सच्चाई में बदलता है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को नहीं हुई।
4 सन् 1948 में विजय लक्ष्मी राजदूत ने रुस से वापिस आकर मुम्बई षान्ताक्रुज़ हवाई अड्ड़े से उतरते ही पत्रकारों के सामने कहा कि मैं भारत की जनता को ऐसा षुभ समाचार देना चाहती हॅॅूं  जो भारत की स्वतन्त्रता से बढ़कर खुषी का समाचार होगा परन्तु नेहरु जी ने इस समाचार को जनता तथा पत्रकारों को देने से इन्कार कर दिया क्योंकि वह समाचार नेताजी से रुस में मुलाकात होने का संदेष था।
5 भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4 अगस्त 1997 को दिये गये निर्णय के अनुसार नेताजी के नाम के साथ मरणोपरान्त षब्द रद्द किया जाता है।क्या यह सिद्ध  नहीं होता कि नेताजी की मृत्यु नहीं हुई ।
6 सेना मुख्याल्य द्वारा आयोजित 1971 की लड़ाई का विजय दिवस का सीधा प्रसारण 16 दिसम्बर 1997 को दिल्ली दूरदर्षन पर सांय 5-47 बजे से लेकर 7-00 बजे तक किया गया जिसमें बताया गया कि 8 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी सेना की कमान एक बाबा संभाले हुये थे। दो दो सेनाओं की कमान सम्भालने वाला आखिर यह बाबा कौन था। सरकार इस बाबा का रहस्योदघाटन करे।
7 28 मई 1964 को प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु पर बनी सरकारी डाक्यूमैन्टरी फिल्म के लास्ट चैप्टर की फिल्म नं. 816 बी जिसमें साधु के वेष में नेता जी दिखाई दे रहे हैं।

8 नेताजी की तथाकथित मृत्यु 18.08.1945 के बाद मंचुरिया रेड़ियो स्टेषन से 19.12.1945, 19.01.1946, 19.02.1946 को नेता जी द्वारा राष्ट्र के नाम दिये गये सन्देष क्या यह साबित नहीं करते हैं कि नेताजी की मृत्यु का समाचार गलत है।
उपरोक्त तथ्यों को देखते हुये तो हम यह ही कह सकते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जो कि रहस्यमयी तरीके से रहे, रहस्यमयी तरीके से अंग्रेजों की जेल से निकले, रहस्यमयी तरीके से लड़ाई लड़ी, और रहस्यमयी तरीके से ही अदृष्य होकर आज भी रहस्य बने हुये हैं।
लेकिन आज बड़ा अफसोस होता है प्रायः जब दूरदर्षन पर कोई कार्यक्रम होता है तो देखने को मिलता है जिन्होंने आजादी का उपयोग किया है उनको ज्यादा महत्व दिया जाता है, जिन्होंने आजादी की बलिवेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर किया उनकी उपेक्षा की जाती है। यह उन षहीदों का निरादर तथा उपहास है। कवि ने ठीक ही लिखा है :-
बदतमीजी कर रहे हैं, आज भंवरे चमन में,
साथियो आंधी उठाने का जमाना आगया है।
वक्त की तकदीर स्याही से लिखी जाती नहीं,
खून में कलम ड़ुबोने का जमाना आ गया है।
आज यदि सुभाष चन्द्र बोस भले ही प्रत्यक्ष रुप से हमारे बीच नहीं हों लेकिन उनका अधुरा स्वपन हमारे बीच में है। अदृष्य होने से पूर्व का वह आहवान कि अखण्ड भारत बनाने के लिए लडा जाने वाला तृतीय विष्वयुद्ध जब चरम पर होगा तब मैं प्रकट होउंगा हमें बार बार उनके प्रकटीकरण की इन्तजार करा रहा है। हम अंग्रेजों से तो मुक्त हो गये हैं लेकिन अंग्रेजियत की जंजीरों में आज भी जकड़े हुये हैं। उनके संपूर्ण आजादी के सपने को पूर्ण करने में प्रत्येक भारतवासी को तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन में योगदान करना चाहिए।   


कल नेता जी का जन्मदिन है हरियाणा सरकार ने आदेश जारी करते हुए सभी जिला स्तर पर नेताजी की जयंती मनाने का निर्णय लिया है। उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देने का आदेश भी सभी अधिकारियों को दिया है, जबकि आज तक भारत सरकार नेता जी की मृत्यु की न तो घोषणा कर पाई है और इतने आयोग बैठने के बाद भी आज तक कोई ठोस सबूत सरकार के पास नहीं है। एक जीवित व्यक्ति को श्रद्धांजलि देना या उनकी जयंती मनाना कहां तक सही है? सरकार को निर्णय लेते समय इन बातों पर गौर करना चाहिए

: लेखक प्रदीप आर्य जन चेतना मंच कुरुक्षेत्र, नेताजी कालोनी, कुरुक्षेत्र के अध्यक्ष हैं।

Friday, January 19, 2018

वित्त मंत्री ने की सब्सिडी पर जैविक बीज उपलब्ध करवाने की मांग

चंडीगढ़, 19 जनवरी- हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने केंद्र सरकार से हरियाणा को खेती के लिए सब्सिडी पर जैविक बीज उपलब्ध करवाने की मांग कि ताकि जैविक खेती को और प्रोत्साहित किया जा सके। उन्होंने केंद्र सरकार के जल प्रबंधन कार्यक्रेम के तहत हरियाणा को विशेष पैकेज देने की भी मांग की ताकि राज्य सरकार अपने हर खेत को पानी के वायदे को पूरा कर सके। 
हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित प्री बजट सलाहकार बैठक में कई अन्य मांगें भी रखीं, जिनमें से ज्यादातर मांगें जनहित और किसानों से जुडी थी। 
कैप्टन अभिमन्यु ने बैठक में कहा कि सामाजिक सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार अभी तक सिर्फ 300 रुपये प्रति व्यक्ति ही देती है जबकि राज्य सरकार 1800 रुपये पेंशन के तौर पर बुजुर्ग, विधवा एवं दिव्यांग जनों को अदा करती है। केंद्र सरकार ने 2012 के बाद इस मद में कोई बढ़ोतरी नहीं की। उन्होंने केंद्र सरकार से इसमें अपना हिस्सा बढ़ाने का आग्रह किया। वित्त मंत्री ने कर्मचारियों के लिए राशि की मांग करते हुए कहा कि राज्य के सरकारी कर्मचारियों को समान वेतन समान कार्य के सिद्धांत पर वेतन तय करने के लिए केंद्र सरकार राज्य का सहयोग करे और राष्टï्रीय स्वास्थ्य मिशन और सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार राज्य सरकार को अधिक राशि दे।
उन्होंने मांग की कि आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स के मानदेय में भी बढ़ौतरी की जानी चाहिए। इस सम्बंध में सुझाव दिया गया कि इस कौशल विकास योजना के तहत या तो 1500 रुपये की सीमा को हटाया जाए और अदा किये गए स्टाइफण्ड की 25 प्रतिशत की दर से प्रतिपूर्ति की जाए या भारत सरकार द्वारा 1500 रुपये प्रति मास की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर कम से कम 2000 रुपये प्रतिमास प्रति अप्रेंटिस समस्त प्रशिक्षण अवधि के लिए किया जाए। यदि ये प्रावधान किये जाते हैं तो निजी प्रतिष्ठान अप्रेंटिस अधिनियम, 1961 के तहत अप्रेंटिस लगाने के लिए उल्लेखनीय रूप से प्रोत्साहित होंगे।