Monday, May 23, 2016

दुनिया के कई देशों में यह आम प्रथा है, खासकर मुस्लिमबहुल देशों में. इसलिए जब ताजिकिस्तान ने इस पर रोक लगाने का फैसला लिया तो दुनिया का चौंकना स्वाभाविक था.

http://satyagrah.scroll.in/  से साभार........

 
दुनिया के कई देशों में यह आम प्रथा है, खासकर मुस्लिम बहुल देशों में. इसलिए जब ताजिकिस्तान ने इस पर रोक लगाने का फैसला लिया तो दुनिया का चौंकना स्वाभाविक था.
चीन, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीचों-बीच बसा ताजिकिस्तान मध्य एशिया का सबसे गरीब देश है. ऐसा दुर्लभ ही होता है कि इस देश की कोई घटना सारी दुनिया में चर्चा का विषय बन जाए. लेकिन बीती 13 जनवरी को यहां की संसद का एक फैसला अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियों में शामिल हुआ. यह फैसला था देश में कॉन्सेंग्युनियस विवाह (रक्त संबंधियों से विवाह) पर प्रतिबंध लगाना. दुनिया के कई देशों, विशेषकर मुस्लिम बहुल देशों में कॉन्सेंग्युनियस विवाह बहुत ही आम प्रथा है. इसीलिए जब मुस्लिम बहुल ताजिकिस्तान ने इस प्रथा पर रोक लगाने का प्रगतिशील फैसला लिया तो इसने दुनिया भर के कई लोगों को हैरत में डाल दिया.
ताजिकिस्तान ने यह फैसला लेते हुए माना है कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. यहां के स्वास्थ्य विभाग ने 25 हजार से ज्यादा विकलांग बच्चों का पंजीकरण और उनका अध्ययन करने के बाद बताया है कि इनमें से लगभग 35 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा हुए हैं. कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग होने की संभावनाओं पर लंबे समय से चर्चा होती रही है. लेकिन यह चर्चा कभी भी इतने व्यापक स्तर पर नहीं हुई कि इस तरह के विवाहों पर प्रतिबंध लग सके.
ताजिकिस्तान ने यह फैसला लेते हुए माना है कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.
दुनिया के लगभग एक-चौथाई हिस्से में आज भी कॉन्सेंग्युनियस विवाह आम हैं. इनमें एशिया, उत्तरी अफ्रीका, स्विट्ज़रलैंड, मध्यपूर्व, और चीन, जापान और भारत के कई हिस्से शामिल हैं. इन सभी जगहों पर कॉन्सेंग्युनियस विवाह के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं. मुख्यतः कॉन्सेंग्युनियस विवाह उसे कहा जाता है जब कोई व्यक्ति अपने चचेरे/ममेरे भाई/बहन या उससे भी निकट रक्तसंबंधी से शादी करे. दक्षिण भारत में कई जगह लड़कियों की उनके मामा से शादी होना भी कॉन्सेंग्युनियस विवाह का एक उदाहरण है.
कई देश ऐसे भी हैं जहां कॉन्सेंग्युनियस विवाह पर पूरी तरह प्रतिबंध तो नहीं है लेकिन, यह आंशिक रूप से प्रतिबंधित है. उदाहरण के लिए कई अमरीकी राज्यों में कॉन्सेंग्युनियस विवाह की अनुमति सिर्फ उन्हीं लोगों को दी जाती है जिनकी उम्र 65 वर्ष से अधिक हो या जो बच्चे पैदा करने में असमर्थ हों. इसी तरह कुछ देश ऐसे भी हैं जहां सिर्फ चिकित्सकीय जांच के बाद ही कॉन्सेंग्युनियस विवाह की अनुमति दी जाती है. जानकारों का मानना है कि इन सभी देशों में इस तरह के प्रतिबंध सिर्फ इसीलिए लगाए गए हैं ताकि बच्चों में होने वाले आनुवंशिक रोगों को रोका जा सके.
ब्रिटेन में पैदा होने वाले बच्चों में पाकिस्तानी मूल के कुल तीन प्रतिशत बच्चे होते हैं. लेकिन आनुवंशिक रोग के पीड़ित ब्रिटेन के कुल बच्चों में से 13 प्रतिशत पाकिस्तानी मूल के ही हैं.
ऐसे कई अध्ययन हुए हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि आम बच्चों के मुकाबले कॉन्सेंग्युनियस विवाह से होने वाली संतानों में आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं कई गुना ज्यादा होती हैं. कुछ समय पहले ही ब्रिटेन के ब्रैडफोर्ड में भी ऐसा एक अध्ययन किया गया था. ब्रैडफोर्ड में पाकिस्तानी मूल के लोगों का बड़ा रिहाइशी इलाका है. यहां की कुल आबादी में लगभग 17 प्रतिशत आबादी पाकिस्तानी मुस्लिम लोगों की है. इन लोगों में से 75 प्रतिशत लोग अपने ही समुदाय में चचेरे/ममेरे भाई/बहनों से शादियां करते हैं. अध्ययन में सामने आया था कि यहां रहने वाले बच्चों में से कई आनुवंशिक रोगों का शिकार हैं और इसका मुख्य कारण कॉन्सेंग्युनियस विवाह ही है. एक अन्य अध्ययन के अनुसार ब्रिटेन में पैदा होने वाले बच्चों में पाकिस्तानी मूल के कुल तीन प्रतिशत बच्चे होते हैं. लेकिन आनुवंशिक रोग के पीड़ित ब्रिटेन के कुल बच्चों में से 13 प्रतिशत पाकिस्तानी मूल के ही हैं.
दक्षिण भारत के कई इलाकों में भी कॉन्सेंग्युनियस विवाह का चलन है. यहां भी यह इस प्रथा के चलते बच्चों में कई तरह के रोग देखे जा सकते हैं. आंध्र प्रदेश की रहने वाली बिंदु शॉ इस विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय से रिसर्च कर रही हैं. वे बताती हैं कि भारत में अब तक ऐसे शोध न के बराबर ही हुए हैं जिनमें कॉन्सेंग्युनियस विवाह और उनके कारण होने वाले आनुवंशिक रोगों को साथ में परखा गया हो. कॉन्सेंग्युनियस विवाह के सामाजिक पहलुओं और आनुवंशिक रोगों के चिकित्सकीय पहलुओं पर अलग-अलग तो कई शोध हो चुके हैं लेकिन इन पर साथ में शोध करने वाली बिंदु शायद पहली भारतीय ही हैं.
'मैंने दो सौ ऐसे परिवारों पर अध्ययन किया है जिन्होंने कॉन्सेंग्युनियस विवाह किया था. इनमें से 97 परिवारों के बच्चे आनुवंशिक रोग से पीड़ित थे.'
बिंदु बताती हैं, 'मैंने दो सौ ऐसे परिवारों पर अध्ययन किया है जिन्होंने कॉन्सेंग्युनियस विवाह किया था. इनमें से 97 परिवारों के बच्चे आनुवंशिक रोग से पीड़ित थे. यह भी देखने में आया है कि चचेरे/ममेरे भाई/बहनों से हुई शादी की तुलना में मामा से शादी होने पर बच्चों में इस तरह के विकारों की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.' वे आगे बताती हैं, 'जब भी कोई व्यक्ति अपने रक्तसंबंधियों से शादी करता है तो उनके कई जीन एक समान होते हैं. इस स्थिति में यदि उनके जीन में कोई विकार होता है तो उनके होने वाले बच्चे में ऐसे विकृत जीन की दो प्रतियां पहुंच जाती हैं. यही रोग का कारण बनता है. जबकि समुदाय से बाहर शादी होने पर जीन का दायरा बढ़ जाता है और इसलिए किसी विकृत जीन के बच्चों तक पहुंचने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं.'
रिसर्च के लिए यह विषय चुनने के बारे में बिंदु बताती हैं, 'मैं जब स्कूल में पढ़ती थी तब से ही इस विषय में मेरी रुचि रही है. हमारे समाज में यह प्रथा आम है और मेरे कई रिश्तेदार इसके चलते आनुवंशिक रोगों का शिकार हुए हैं. इसलिए मैं हमेशा से इस विषय पर रिसर्च करना चाहती थी.' कॉन्सेंग्युनियस विवाह के कई दुष्परिणामों को जानने के बाद भी क्या यह प्रथा सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते ही जारी है? इस सवाल के जवाब में बिंदु कहती हैं, 'मुझे लगता है कि धार्मिक मान्यताओं से ज्यादा सामाजिक पहलुओं के चलते लोग आज भी कॉन्सेंग्युनियस विवाह करते हैं. लोग मानते हैं कि अपने ही संबंधियों से शादी होने पर संपत्ति बाहर नहीं जाएगी और उसका बंटवारा नहीं होगा. इसके साथ ही लड़कियों के माता-पिता अपनी बेटी किसी अजनबी को सौंपने से बेहतर अपने किसी रिश्तेदार को सौंपना ही समझते हैं. विशेष तौर से ग्रामीण इलाकों में इस तरह की शादियों को ही ज्यादा वरीयता दी जाती है.'
कॉन्सेंग्युनियस विवाह को सही ठहराने वाले अक्सर यह तर्क देते हैं कि ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग की संभावनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाया जाता है.
कॉन्सेंग्युनियस विवाह जिन समुदायों में प्रचलित है उनमें कई बार प्रेम संबंधों के चलते भी इस तरह के विवाह होते हैं. बिंदु बताती हैं, 'बच्चे बहुत छोटी उम्र से ही अपने चचेरे/ममेरे भाई-बहनों से मिलते हैं, उनके साथ खेलते हैं और साथ ही बड़े होते हैं. ऐसे में उनकी आपसी दोस्ती बहुत अच्छी होती है और जब उन्हें इस संभावना का पता होता है कि उनकी शादी हो सकती है तो यह दोस्ती प्रेम संबंधों में भी बदल जाती है.' इन तमाम पहलुओं के अलावा धार्मिक मान्यताओं को भी कई लोग कॉन्सेंग्युनियस विवाह का एक मुख्य कारण मानते हैं.
कॉन्सेंग्युनियस विवाह को सही ठहराने वाले अक्सर यह तर्क देते हैं कि ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग की संभावनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाया जाता है. ताजिकिस्तान में लिए गए हालिया फैसले का विरोध करने वाले भी यही मांग कर रहे हैं कि इस तथ्य की पुष्टि के लिए ज्यदा आंकड़े प्रस्तुत किये जाएं कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह ही आनुवंशिक रोगों का बड़ा कारण है. इन लोगों का तर्क है कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह से होने वाले बच्चों के बीमार होने की उतनी ही संभावनाएं होती हैं जितनी किसी 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला के माँ बनने पर उसके बच्चे के बीमार होने की होती हैं. ताजिकिस्तान संसद के फैसले का विरोध करते हुए यह लोग सवाल कर रहे हैं कि जब किसी 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला को मां बनने से नहीं रोका जाता तो फिर कॉन्सेंग्युनियस विवाह करने वालों पर रोक क्यों लगाई जानी चाहिए?
लेकिन चिकित्सा विज्ञान को समझने वाले जानकार मानते हैं कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह को धार्मिक या सांस्कृतिक नज़रिए से नहीं बल्कि चिकित्सकीय नज़रिए से परखा जाना जरूरी है और इस लिहाज़ से ताजिकिस्तान के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए.

Wednesday, May 11, 2016

कर्ज ने निगली 3 जिंदगियाँ।

पंजाब के किसानों का दर्द!
पवन सोंटी (11मई) 
पंजाब में गत दिनों एक क्षेत्र के ही 3 किसानों ने आर्थिक तंगी के चलते मौत को गले लगा लिया। पंजाबी समाचार पत्र डेली प्रहरी की रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के विधानसभा हल्का गीदड़बाहा के गाँव हूसनर के 6 लाख रुपए के कर्ज मे डूबे युवा किसान खुशपाल सिंह ने 8 मई को नहर मे छ्लांग लगाकर आत्मह्त्या कर ली। रिपोर्ट के अनुसार उसके बीमार पिता के साथ 3 बहनों की जिम्मेवारी इस युवा किसान के सिर पर थी। उसकी सेम की समस्या से  3 एकड़ जमीन घाटे के अलावा कुछ नही उगल रही थी।
उधर भटिंडा जिला के गाँव कोरेमाना के 1 एकड़ के किसान अमर दास ने ढाई लाख के कर्ज के चलते अपने खेत मे जा कर फांसी का फंदा लगाकर जीवन लीला समाप्त कर ली। वह ठेके-बंटाई पर खेती करता था, लेकिन पिछले दिनों उसकी कपास की फसल को सफ़ेद मक्खी ने नष्ट कर दिया था, जिसका मुआवजा तक उसे अभी नहीं मिला था।
एक अन्य दुखद घटना में भटिंडा जिला के ही गाँव चनराथल के खेत मजदूर मंदर सिंह ने आर्थिक तंगी के चलते अपने घर में ही कीटनाशक दवाई पी कर जान दे दी। उसकी गरीबी देखिये की उसके घर में अंतिम संस्कार के लिए लक्कड़ भी नहीं थी,  आस पड़ोस के लोगों ने ही उसके अंतिम संस्कार का जुगाड़ किया।
इन तीनों घटनाओं में किसानों की आर्थिक तंगी उनकी मौत का कारण बनी है। इसके साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि ये छोटी जोत के (सीमांत अथवा भूमिहीन किसान) थे।  
समाचार पत्रों की रिपोर्टों के अनुसार पंजाब में प्रतिदिन 4 किसानों की मौत का आंकड़ा है जो कि आर्थिक तंगी में जीवन दे रहे हैं। अकेले कोट धरमु में 35 किसान आर्थिक तंगी में जान दे चुके हैं।



Saturday, April 23, 2016

"फिर बोलूँगा तो बोलेंगे कि बोलता है...."Why blaming Captain Abhimanyu for his house on fire?"

"फिर बोलूँगा तो बोलेंगे कि बोलता है...."

.....मैं कोई भाजपाई नहीं हूँ, लेकिन लोगों की छोटी सोच और गिरि हुई मानसिकता देखकर खुद को बोलने से रोक नहीं पा रहा।
...कैप्टन अभिमन्यु का घर जल गया और लोगों को उसमें भी स्वार्थ की बु नज़र आ रही है। जो लोग ज़िंदगी भर दो ईंटें नही लगा सके वो भी इस पर राजनीति कर रहे हैं।

...कहते हैं कि इक घर को आग लग गई घर के चिराग से, लेकिन यहाँ तो चिराग भी बाहर से आता दिख रहा है और आग लगाने वाले भी। एक परिवार पांडवों की तरह लाक्षागृह की भेंट चढ़ते दिख रहा है....फिर भी...?????
...... जैसा कभी मैंने अपनी आँखों से देखा था, ये केवल भौतिक पदार्थों से बना मकान मात्र नहीं था, अपितु घर था। एक परिवार के सपनों का घर, एक सन्यासी तुल्य बुजुर्ग "आदरणीय चौधरी मित्रसैन आर्य जी" के सपनों का घर, जिसके कोने कोने में उनकी यादें बसी थी।

..... फिर भी मैं इन छोटी सोच के लोगों से 0.00001% सहमति जता देता हूँ, जो कहते हैं कि कैप्टन अभिमन्यु ने सहानुभूति लेने के लिए अपने घर को आग लगवाई, बस ये अपने घर तो क्या एक तुड़ी वाले कमरे को ही आग लगाकर दिखा दें।
......भाइयो न तो इस आग में सहानुभूति नज़र आती है और न ही जाट आरक्षण की भूख! ये कोई निजी रंजिश हो सकती है या फिर राजनैतिक रंजिश, जलाने वाले भी कोई जरूरी नहीं की जाट आंदोलनकारी ही हों, ये दंगाई और आतंकवादी हैं जिनकी बदौलत जहां एक जाती बदनाम हो रही है वहीं असलियत को उलझाने का प्रयास भी हो रहा है। इसमें अभी जांच जारी है, सो उसका इंतजार करना चाहिए। .... हाँ इतना जरूर है की भाजपा का सरकारी नेतृत्व बहुत कमजोर है, इसे किसी भी हालत में नकारा नहीं जा सकता। वरना एक मंत्री के घर में आग का तांडव होता रहे ओर पुलिस- प्रशासन आँख मूँदे बैठा रहे।



Monday, April 4, 2016

पेहोवा मे चैत्र चौदस मेले पर लाखों श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए प्रशासन तैयार


मेले के 8 सैक्टरों पर पहरा देंगे 600 पुलिस जवान, प्रशासन ने किए पुख्ता इंतजाम, मेला का आज से आगाज

मेला प्रशासक हवा सिंह व एसडीएम दलबीर सिंह ने लिया अंतिम तैयारियों का जायजा

पिहोवा 4 अप्रैल (धरतीपुत्र टीम)
विश्व प्रसिद्ध चैत्र चौदस मेले में देश विदेश के कोने कोने से आने वाले लाखों श्रद्धालुओं व तीर्थ यात्रियों के स्वागत के लिए प्रशासन ने हर प्रकार के पुख्ता इंतजाम कर लिए है। प्रशासन ने तीर्थ यात्रियों के लिए  मेला क्षेत्र को 8 सैक्टरों में बांट कर सुरक्षा ओर व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम करने के लिए 100 महिला पुलिस कर्मियों सहित 600 पुलिस जवानों को तैनात किया गया है। इस तीर्थ नगरी के ऐतिहासिक सरस्वती तीर्थ के क्षेत्र पर 25 सी.सी. कैमरे अपनी पैनी निगाहें रखेंगे।
 मेले की तैयारियों का जायजा लेने के बाद मेला प्रशासक एवं एस.डी.एम. हवा सिंह व एसडीएम पिहोवा दलबीर सिंह ने कहा कि 5 से 7 अप्रैल 2016 तक लगने वाले चैत्र चौदस मेले में डयूटी मजिस्टे्रट ओर पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गई है। मेला क्षेत्र मेंं एक पुलिस नियंत्रण कक्ष, अस्थाई पुलिस चौकी ओर महिला पुलिस की व्यवस्था की गई है। मेला क्षेत्र मैटल डिटेक्टर का भी प्रयोग किया जाएगा, ताकि अवांछनीय वस्तु का पता लगाया जा सके। पुलिस प्रशासन इस बात पर विशेष ध्यान देगी कि वाहनों के आने व जाने के रास्ते में किसी प्रकार की रुकावट न आए और मेला क्षेत्र में केवल अधिकृत वाहनों को प्रवेश करने दिया जाए। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए पीने के पानी की उचित व्यवस्था ओर शौचालयों की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। मेले के दौरान खाने पीने की वस्तुओं की गुणवता की जांच करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को सख्त आदेश दिए हैं। इतना ही नहीं खाद्य पदार्थों के सैंपल लेने के लिए दिशा निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि यात्रियों की सुविधा के लिए कई विशेष बसें चलाई जाएंगी।  
चेयरमैन भारत भूषण भारती करेंगे मेले का उदघाटन
एसडीएम दलबीर सिंह ने कहा कि चैत्र चौदस मेले 2016 का उदघाटन सुबह 9 बजे हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन भारत भूषण भारती करेंगे। प्रशासन ने अपने स्तर पर उदघाटन समारोह की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। इस दौरान चेयरमैन भारत भूषण भारती विभिन्न विभागों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन करेंगे।
बाल भवन में बनेगा सूचना केंद्र
उपमंडल प्रशासन की तरफ से मेले की पल-पल की सूचना देने के लिए बाल भवन में सूचना केंद्र स्थापित किया जाएगा। इस सूचना केंद्र के माध्यम से हर प्रकार की जानकारी श्रद्धालुओं को मुहैया करवाई जाएगी। 
पुलिस प्रशासन ने अंबाला रोड पर भट्टमाजरा टी. प्वांट, गुहला पिहोवा रोड पर सरस्वती डे्रन, कैथल रोड पर पुराना राईस सैलर के पास, गलेडवा रोड पर के.डी. पार्क के पास तथा कुरुक्षेत्र रोड पर जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय के पास चैक पोस्ट बनाई गई है। 
कहां कहां होगा पार्किंग स्थल
चैत्र चौदस मेले के लिए प्राइवेट वाहनों के लिए कुरुक्षेत्र रोड पर टिब्बा फार्म, नगरपालिका कार्यालय के पास, गुहला रोड पर हुड्डा ग्राऊंड पर, अंबाला रोड पर सरस्वती डे्रन से गुहला बाइपास से आते हुए हुड्डा ग्राऊंड, कैथल रोड पर शंकर राईस मिल, गलेडवा रोड पर दीवान कालोनी के पास तथा डी.ए.वी.कालेज मेंं रिर्जव पार्किंग स्थल बनाया गया है। 
125 अस्थाई शौचालयों की होगी विशेष व्यवस्था 
जनस्वास्थ्य विभाग की तरफ से पीने के पानी लिए अस्थाई नल, बोर होल शौचालयों व पेशाब घरों का प्रबंध किया जाएगा। मेले के दौरान 125 अस्थाई शौचालय, 50 पेशाब घर ओर 2 मोबाइल शौचालयों का निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा 4 सुलभ शौचालयों का भी प्रबंध किया गया है। 
8 फस्र्ट एड पोस्ट व 9 एंबुलैंस करेगी सेवा 
स्वास्थ्य विभाग की तरफ से किसी भी अप्रिया घटना से निपटने ओर अचानक बीमार यात्रियों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के लिए 8 फस्र्ट एड पोस्ट, 2 आयुर्वेदिक पोस्ट, 9 एंबुलैंस का प्रबंध किया जाएगा। मेले से पहले पूरे शहर में दवाईयों का छिडक़ाव भी किया जाएगा। 
आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहेगा अग्निशमन विभाग  
मेले के दौरान आग आदि आपातकालीन स्थिति से निटपने के लिए फायर ब्रिगेड की 5 गाडिय़ों की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा सरस्वती घाट के दोनों तरफ गहरे पानी से बचाव करने के लिए 2 किश्तियां, लाइफ जैकेट व चप्पू का प्रबंध किया जाएगा। इसके अलावा सरस्वती तट पर चेतावनी सूचना पट भी लगाए जाएंगे।
मेला ग्राऊंड में बनेगा मनोरंजन स्थल    
गुहला रोड पर हुड्डा की खाली जमीन पर मेला ग्राऊंड बनाया गया है। इस ग्रांऊड में ही सर्कस, झूला व अन्य स्टाल लगाने की व्यवस्था की गई है ताकि लोग एक ही स्थान पर मनोरंजन के साधनों का फायदा उठा सके। 
130 अतिरिक्त सफाई क र्मचारियों की लगेगी डयूटी 
शहर में सफाई व्यवस्था का पूर्ण प्रबंध नगर पालिका द्वारा किया जाएगा। मेला को लेकर सफाई व्यवस्था को दुरूस्त रखने के लिए 130 अतिरिक्त सफाई कर्मचारी नियुक्त किए जाएंगे। इसके अलावा स्थाई कर्मचारी भी अपनी डयूटी का निर्वाह करेंगे।

Wednesday, March 30, 2016

The journey of Rupees v/s US Dollar from 1947 to 2016.....कैसे 1 से गिरकर 68 पर आ गया भारतीय रुपया?

भारतीय रुपए ने वक़्त के साथ की प्रकार अपनी चमक खोई उसे आज के दौर मे जानना बहुत जरूरी है। देश की आजादी के वक़्त जो रुपया अमेरिकन डालर के बराबर होता था आज 68 गुना नीचे तक कैसे फिसल गया ये चिंतन का विषय जरूर होना चाहिए।

आइये इन आंकड़ों की जुबानी देखते हैं रुपए के अवमूल्यन की कहानी:-

Year
Exchange rate
(INR per USD)
1948
3.30
1949
3.67
1950 - 1966
4.76[16]
1966
7.50[16]
1975
8.39[16]
1980
7.86[17]
1985
12.38[17]
1990
17.01[17]
1995
32.427
2000
43.50[17]
2005 (Jan)
43.47[17]
2006 (Jan)
45.19[17]
2007 (Jan)
39.42[17]
2008 (October)
48.88
2009 (October)
46.37
2010 (22 January)
46.21
2011 (April)
44.17
2011 (21 September)
48.24
2011 (17 November)
55.3950
2012 (22 June)
57.15[18]
2013 (15 May)
54.73[19]
2013 (12 Sep)
62.92[20]
2014 (15 May)
59.44[21]
2014 (12 Sep)
60.95[22]
2015 (15 Apr)
62.30[23]
2015 (15 May)
64.22
2015 (19 sep)
65.87
2015(30 nov)
66.79
2016(20 Jan)
68.01
2016(25 Jan)
67.63
2016(25 Feb)
68.82
इसके बाद देखते हैं इस अवमूल्यन मे क्या क्या कारण रहे होंगे;-
  1. 1. The journey of India rupee since 1947 and Forecast 2015: Dollar vs. Indian Rupee conversion In 1947 i.e., when India accomplished its independence, there were no outside borrowings on the balance sheet of India thus the value of Indian rupee was at parity with the US dollar. But Indian rupee went through two phase of devaluation in August 2013 India economy was hit to bottommost level. As a result of which India rupee fall below 68.75 per US dollar mark which means Indian rupee had chronicled a record low of 69 times against the past 68 years since independence in 1947. In this article, we will see through the history of different factors resulted in the two time devaluation of Indian rupee since Independence, current Dollar vs. Indian rupee conversion and forecast of Dollar vs. Indian rupee conversion for 2015. Journey of Indian rupee since independence in 1947 Though at the time independence i.e., on 15th August 1947 the exchange rate between Indian rupee and US Dollar was equal to one (i.e., I US Dollar = 1 Indian Rupee). As there was no outside borrowing/ loans on the balance sheet of India. But when British left India, Indian economy was in a paralyzed and begging state thus under the resilient leadership of
  2. 2. then Prime Minister of India Pandit Jawahar Lal Nehru, the path of overall development of India was developed and formulated in the form of five year plan to address below problems: 1. Poverty 2. Foreign Trade 3. Necessity of fast industrialization 4. Increase in population 5. Growth and improvement of natural resources 6. Capital insufficiency and market limitations Thus, the first five year plan (1951 – 1956) was introduced to revitalize Indian economy and improve the standard of living of Indian people by prudent usage of natural resources and thus the overall development of Indian and its people by who suffered during British régime. For the rejuvenation of Indian economy and its people under the path of five year plan, from 1950 Indian government continuously borrowed foreignmoney in the form of outside borrowing/ loan which increased to the utmost magnitude in 1960s. Additionally, Indian government was facing budget deficit and was in a state that it could not borrow more additional loan from outside due to negative rate of savings. Thus, resulted in the devaluation of Indian rupee. Up till now 1 US Dollar is equal to 4 Indian Rupee. But this drift was worsened in 1966 by two factors: Firstly, two wars faced by India i.e., Indo-China war in 1962 and Indo-Pakistan war of 1965; and Secondly, major drought faced by India between 1965/66 which resulted in severe rise in prices and a drastic increase in inflation. Thus, it became mandatory for Indian government to devalue Indian rupee majorly for the first time in 1966 to import weapons i.e., precursor of a path of liberalization and thus opening of Indian economy for foreign trade. And, as a result of which Indian Rupee was devalued to 1 USD = 7 INR in 1966 under the leadership of then Prime Minister of India Mrs. Indira Gandhi. From 1970s till 1980s, US Dollar continued to grow stronger against Indian Rupee due to many reasons. Firstly, inability of Indian politics to inject a catalyst of robust growth in the Indian economydue to incompetency in stabilizing cordial business relationwith US which was coupled with robust and sturdy economic development of US. As up till now India was dependent majorly on Soviet Union for exports. Thus, when Soviet Union was divided into 15 small nations in 1991 then India’s exports were down considerably. In addition to that, India was dependent on West Asia for oil imports, South Africa for gold, US for technology and South-east Asia for vegetable oil etc. And, to buy these items global trade currency was US dollar and the only solution of earning dollars is by exporting adequate amount of good in the world market. Till 1970s, the exchange rate was 1 US Dollar = 7.47 INR which went up by 1 USD = 8.41 INR in 1975, after the political instability due to assassination of then Prime Minister Mrs. Indira Gandhi in 1984. Secondly, after the
  3. 3. assassination of Mrs. Indira Gandhi, Rajiv Gandhi was then elected as the Prime Minister of India. But Rajiv Gandhi was failed to introduce necessary steps for the robust development of Indian economy as well as was caught to be involved in couple of scams (i.e., Bofors, IPKF misadventure, Shah Bano case etc). All this trouble resulted in sinking value of Indian Rupee which recorded a new low of 1 USD = 12.34 INR in 1985 and in the 1990 it increased to 1 USD = 17.50 INR. In 1991 when P.V Narsimha rao was elected as the Prime Minister of India, Indian economy was in a state of gross negative. Therefore, he initiated the process of reforms in the form of more open Indian economy (i.e., market driven economy, allowing private sector to play major including FIIs and FDIs and reorganizing the role to be played by the government) to accelerate the trend of economic growth & development and suppress poverty. Thus, again Indian rupee was devalued in 1991to 1 USD = 22.72 INR to eradicate the problem of fiscal deficit and balance of payment (BOP) as well as to accelerate the process of liberalization. Therefore, though India has encountered two major economic crisis since independence which resulted in two times devaluation of Indian rupee i.e., in 1966 and in 1991. But this trend continues and Indian rupee is losing its value due to many external and internal factors. And now in 2015 the exchange rate is 1 USD = 63.093 as on 15th March 2015 from xe.com. Below is the Table showing Historical Indian Rupee Rate (INR USD) Historical Indian Rupee Rate (INR USD) Year INR/USD Year INR/USD Year INR/USD Year INR/USD 1947 1952 1966 1973 1974 1975 1976 1977 1978 1979 1980 1 4.75 7.10 7.66 8.03 8.41 8.97 8.77 8.20 8.16 7.89 1981 1982 1983 1984 1985 1986 1987 1988 1989 1990 1991 8.68 9.48 10.11 11.36 12.34 12.60 12.95 13.91 16.21 17.50 22.72 1992 1993 1994 1995 1996 1997 1998 1999 2000 2001 2002 22.72 28.14 31.39 32.43 35.52 36.36 41.33 43.12 45.00 47.23 48.62 2003 2004 2005 2006 2007 2008 2009 2010 2011 2012 2013 2014 46.60 45.28 44.01 45.17 41.20 43.41 48.32 45.65 46.61 53.34 58.53 61.00 Average annual currency exchange rate for the Indian Rupee (Rupees per U.S. Dollar) is shown in this table: 1973 to present. Source: http://www.forecast-chart.com/usd-indian-rupee.html Forecast 2015: Dollar vs. Indian Rupee conversion
  4. 4. According to industry experts AV Rajwade, “Indian rupee has been the second strongest currency in the international market sitting right next to US Dollar. Even though the Chinese currency i.e., Yuan has devalued to some extent against US Dollar, but till the last few days, Indian rupee was lying exactly at the exchange rate when it was in during early 2014.” In the same manner, according to the Economic Times some other industry expert is saying that it is important to understand that the value of Indian rupee has not depreciated but in fact that the value of Dollar has appreciated due to expectations against US that US Federal might increase the interest rates. And, this would be first hike in interest rate by US fed since 2006 as in 2014 the employment rate in US recorded a 15-year high and in February 2015 the unemployment rate was 5.5% which is down from 10% recorded in 2009. Many experts says that US fed will wait until June-July of this year or early next year to announce hike in interest rate as US fed worries about flattening recovery if there is early announcement of hike in interest rates. On the other hand, RBI is well alert about the fact that the Indian economy would not be able to grow without having stable Indian rupee i.e., FIIs inflows would not stable and as per the need of India’s current development projects. Therefore, RBI is taking all the measures in aligning with the government to give momentum to the stable growth of the Indian economy. The Indian economy is steadily improving with a forecast to grow at 8.5% in the next financial year which is fastest among emerging countries, said by Raghuram Rajan, RBI Governor. And, it has been predicted that RBI will further cut the benchmark rate by additional 50 points to give boost to the investor’s moral, stabilization of Indian rupee to accelerate growth and to target inflation. Rajan also stated that he is very positive about budget of FY 2015 -16 and said that the many medium term steps proposed by the government in the budget of FY 2015 – 16 will undoubtedly work as a catalyst in the path of India becoming center of the world’s financial activity. Therefore, based on above information’s about ongoing financial market trend it is predicted that the exchange rate in 2015 would 1 USD = 62 – 63.50 INR.