"फिर बोलूँगा तो बोलेंगे कि बोलता है...."
.....मैं कोई भाजपाई नहीं हूँ, लेकिन लोगों की छोटी सोच और गिरि हुई मानसिकता देखकर खुद को बोलने से रोक नहीं पा रहा।...कैप्टन अभिमन्यु का घर जल गया और लोगों को उसमें भी स्वार्थ की बु नज़र आ रही है। जो लोग ज़िंदगी भर दो ईंटें नही लगा सके वो भी इस पर राजनीति कर रहे हैं।
...कहते हैं कि इक घर को आग लग गई घर के चिराग से, लेकिन यहाँ तो चिराग भी बाहर से आता दिख रहा है और आग लगाने वाले भी। एक परिवार पांडवों की तरह लाक्षागृह की भेंट चढ़ते दिख रहा है....फिर भी...?????
...... जैसा कभी मैंने अपनी आँखों से देखा था, ये केवल भौतिक पदार्थों से बना मकान मात्र नहीं था, अपितु घर था। एक परिवार के सपनों का घर, एक सन्यासी तुल्य बुजुर्ग "आदरणीय चौधरी मित्रसैन आर्य जी" के सपनों का घर, जिसके कोने कोने में उनकी यादें बसी थी।
..... फिर भी मैं इन छोटी सोच के लोगों से 0.00001% सहमति जता देता हूँ, जो कहते हैं कि कैप्टन अभिमन्यु ने सहानुभूति लेने के लिए अपने घर को आग लगवाई, बस ये अपने घर तो क्या एक तुड़ी वाले कमरे को ही आग लगाकर दिखा दें।
......भाइयो न तो इस आग में सहानुभूति नज़र आती है और न ही जाट आरक्षण की भूख! ये कोई निजी रंजिश हो सकती है या फिर राजनैतिक रंजिश, जलाने वाले भी कोई जरूरी नहीं की जाट आंदोलनकारी ही हों, ये दंगाई और आतंकवादी हैं जिनकी बदौलत जहां एक जाती बदनाम हो रही है वहीं असलियत को उलझाने का प्रयास भी हो रहा है। इसमें अभी जांच जारी है, सो उसका इंतजार करना चाहिए। .... हाँ इतना जरूर है की भाजपा का सरकारी नेतृत्व बहुत कमजोर है, इसे किसी भी हालत में नकारा नहीं जा सकता। वरना एक मंत्री के घर में आग का तांडव होता रहे ओर पुलिस- प्रशासन आँख मूँदे बैठा रहे।
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