ताऊ देवी लाल जयंति पर विशेष:
पूर्व कुलसचिव कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र
भारत देश की राजनीति में आज सैद्धांतिक उथल पुथल महसूस की जा रही है। राजनैतिक
पार्टियों के नेता सिद्धांतों की राजनीति से परे होते दिखाई दे रहे हैं। इन परिस्थितियों
में देश के सामने सैद्धांतिक राजेता के रूप में मजबूत उदाहरण हैं स्व. चौ. देवी लाल।
चौ. साहब ने ताउम्र सिद्धांतो की राजनीति की। 6 दशक से लम्बे राजनैतिक जीवन में
चौ. देवी लाल ने कभी भी सिद्धांतो से समझौता नहीं किया। आजादी की लड़ाई से शुरु हुआ
उनका संघर्ष आजादी के बाद भी निरंतर चलता रहा। चौ. साहब बेशक सत्ता में कम समय रहे,
लेकिन अपने सिद्धांतों
की बदौलत सत्ता की धूरी सदा बने रहे।
अगर चौ. देवी लाल की राजनैतिक
शुरुआत की बात की जाए तो उन्होंने देश की गुलामी के दौर में अपने संघर्ष को आरम्भ किया।
उन्होंने छोटी उम्र में ही लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया व आजादी की लड़ाई
में अपनी भागीदारी आरम्भ की। यह वो दौर था जब देश एक ओर तो विदेशी ताकतों के चंगुल
में राजनैतिक गुलामी से जूझ रहा था तो दूसरी ओर देश का आम आदमी आर्थिक व सामाजिक आजादी
के लिय झटपटा रहा था। चौ. साहब ने आम आदमी की उस पीड़ा को समझा और राजनैतिक आजादी के
साथ आम आदमी की आर्थिक व सामाजिक आजादी की लड़ाई भी आरम्भ की। वह दौर ऐसा था जब छोटे
जमीदार और मजदूर साहुकारों व बड़े भू स्वामियों के हाथों शोषित हो रहे थे। चौ. साहब
ने उस दौर में अपने खेत पर काम करने वाले मुजारों व मजदूरों को जमीन हिस्सा दिया। उन्होंने
गांवों में प्रभात फेरियां निकाल कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन जागरण आरम्भ किया
तो आम आदमी की लड़ाई भी समानांतर जारी रखी। उनका विश्ववास था कि अंग्रेज इस देश को
तब तक नहीं छोड़ कर जा सकते जब तक आम जनता विरोध में खड़ी नहीं होती। इसी विचारधारा
को लेकर उन्होंने जमीनी स्तर तक जनता को जागरूक किया।
देश को आजादी मिली तो चौ.
देवी लाल का वास्तविक संघर्ष शुरु किया। उन्होंने आजादी के बाद महात्मा गांधी के ग्रामीण
स्वराज के सपने को पूरा करने की मुहिम को आगे बढ़ाया। उनका विश्वास था कि देश की आजादी
तभी सम्पूर्ण मानी जाऐगी जब गांव के आम आदमी तक उसका लाभ पहुंचेगा। समाज के नीचले स्तर
तक के आदमी का जीवन स्तर उपर उठे और उसकी राजनैतिक हिस्सेदारी बढ़े। जब तक उनको अपने
उत्पाद का उचित मूल्य व अपनी मेहनत का उचित मेहनताना न मिले तब तक आजादी अपने आप में
अधूरी मानी जाऐगी। चौ. साहब ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सक्रिय राजनीति के माध्यम
से संघर्ष आरम्भ किया। संयुक्त पंजाब में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीत कर जब वह विधानसभा
पहुंचे तो उन्होंने अपने विचारों को कार्यरूप देना आरम्भ किया। उस समय उन्होंने संयुक्त
पंजाब के दक्षिण- पूर्वी भाग के पिछड़ेपन व गांवों की अपेक्षा शहरों के विकास पर अधिक
ध्यान देने के मुद्दों को मजबूती के साथ विधानसभा में उठाया। उस समय सरकारी बजट का
अधिकतर भाग न तो गावों के विकास पर खर्च किया जा रहा था और न ही पंजाब के इस हिस्से
पर खर्च हो रहा था। इस क्षेत्रवाद के खिलाफ
चौ. देवी लाल ने आवाज को बुलंद किया। उन्होंने इन मुद्दों को लेकर विधानसभा में एक दबाव समूह बनाया व तत्कालीन मुख्यमंत्री
के खिलाफ आवाज बुलंद की। इसका प्रभाव यह हुआ कि प्रताप सिंह कैरों संयुक्त पंजाब के
मुख्यमंत्री बने। चौ. साहब की सोच थी कि कैरों गांव की पृष्ठ भूमि से संबंध रखते हैं
और वह गांवों की ओर विशेष ध्यान देेंगे। कैरों ने चौ. साहब की सोच के अनुरूप ग्रामीण
विकास पर तो ध्यान दिया, लेकिन उन्होंने दक्षिण- पूर्वी पंजाब, जो आज का हरियाणा है,
की अनदेखी आरम्भ कर
दी। इस अनदेखी व ग्रामीण विकास में कोताही को लेकर चौ. साहब ने आवाज बुलंद की जिसका
परिणाम यह रहा कि कैरों को भी गद्दी खोनी पड़ी। चौ. साहब को जब लगा कि कांग्रेस के
इस तंत्र में वह ग्रामीण विकास व आम आदमी के सामाजिक व आर्थिव समानता के कार्य को पूर्ण
नहीं कर सकते तो उन्होंने कांग्रेस को ही अलविदा कह दिया।
इसके साथ ही चौ. देवी लाल
के संघर्षों में और इजा$फा हो गया। अब उनका उदे्श्य था नए सिरे से एक ऐसा संगठन खड़ा
करना जो कि उनके सैद्धांतिक संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर उनका साथ दे सके। इस दौर
में जहां चौ. साहब पंजाब के उपेक्षित भाग को अधिकार दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे थे तो
वहीं समान विचारधारा के लोगों को भी संगठित करते रहे। उनके संघर्षों का प्रतिफल यह
रहा कि 1 नवम्बर
1966 को हरियाणा
एक पृथक राज्य के रूप में देश के नक्शे पर उभर आया। अपने ग्रामीण विकास व आम आदमी को
सामाजिक व आर्थिक विकास के लिये उन्होंने अपनी
लड़ाई को जारी रखा व विभिन्न समयों पर कई राजनैतिक दलों को खड़ा किया। देर सवेर सत्ता
के लालची लोग उनको धोखा देकर साथ छोड़ते रहे, लेकिन चौ. साहब ने कभी अपने सिद्धांतों
से समझौता नहीं किया। उन्होंने संकट की हर घड़ी में नई उर्जा के साथ अपने रास्ते तलाशे।
जब देश मेें संवैधानिक व राजनैतिक संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने अपनी लड़ाई को और बुलंद
किया। परिणाम यह हुआ कि जिस आदमी ने देश की आजादी के लिये अंग्रेजों की जेल काटी उसको
स्वतंत्र भारत की सरकार ने भी आपातकाल के दौरान जेल भेज दिया। तत्कालीन सरकार का यह
प्रयास तो इस लिये था कि चौ. देवी लाल टूट जाऐंगे, लेकिन इस जेल यात्रा ने उनको नई उर्जा
दे दी। जेल प्रवास के दौरान उनका सम्पर्क राष्ट्रीय नेताओं से हुआ व राष्ट्रीय स्तर
पर एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने की रूपरेखा तैयार हो गई।
जब जनता तत्कालीन राजनैतिक
व्यवस्था से तंग आ चुकी थी चौ. देवी लाल ने अपने जेल के साथियों के साथ मिलकर जनता
पार्टी के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई। उसी समय में अपने आदर्शों व सिद्धांतों
पर चलते हुए चौ. देवी लाल पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। जब चौ. देवी लाल ने
सत्ता संभाली तो उन्होंने अपनी विचारधारा व सिद्धांतों को कार्यरूप देना आरम्भ किया।
उस वक्त उन्होंने जो भी नीतियां बनाई उनका रूझान ग्रामीण विकास व आर्थिक और राजनैतिक
समानता पर था। हालांकि चौ. साहब को बहुत कम समय तक यह अवसर मिला, लेकिन उन्होंने इस ढाई साल
के अल्प काल में अपने सिद्धांतों को कार्यरूप देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। उन्होंने
राज की कुंजी आम आदमी के हाथ में देने का भरपूर प्रयास किया। जब सिद्धांतों से टकराव
नजर आया तो उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छोड़ दी। चौ. साहब ने फिर से संघर्ष
आरम्भ किया और समान विचारधारा के साथियों को लेकर नए राजनैतिक दल का निर्माण किया।
लम्बे संघर्ष के बाद 1987 में एक बार फिर से उनको सत्ता के माध्यम से जन सेवा का मौका
मिला। हरियाणा के मुख्यमंत्री का पदभार संभालते ही उन्होंने अपने सिद्धांतों को कार्यरूप
देना आरम्भ किया। चौ. देवी लाल का विश्वास था कि जब तक राजनीति में इमानदारी व पारदर्शिता
नहीं होगी तब तक देश का समुचित विकास नहीं हो सकता। इसी विचारधारा को लेकर उन्होंने
जनता के चुने हुए नुमाईंदों को वापिस बुलाने के अधिकार की वकालत की जिसको लेकर आज भी
योग गुरु बाबा रामदेव, अन्ना हजारे सहित कई राजनैतिक व समाजिक संगठन आवाज उठ रहे हैं।
उनका विचार था कि राजनीति में धन्ना सेठों का पैसा लगता है जिससे सत्ता उनकी गुलाम
होकर रह जाती है। पूंजिपतियों के पैसे से बनी सरकारें आम आदमी का भला नहीं कर सकती।
इसी विचार धारा को लेकर उन्होंने एक वोट एक नोट का नारा भी दिया था। चौ. साहब ने दो
वर्ष तक हरियाणा के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला और ऐसी नीतियां बनाई जोकि किसान व
मजदूर को उनके हक दिलवाऐं। आज का वृद्ध सम्मान व जच्चा बच्चा भत्ता उनके कार्यकाल की
लागू की गई वृद्धावस्था पैंशन का ही आधुनिक रूप है। जब चौ. साहब ने इस योजना को लागू
किया तो आवाज उठी थी कि यह लम्बे समय तक चलने वाली योजना नहीं है, लेकिन हरियाणा की इस पहल
का बाद में अन्य राज्यों ने भी अनुसरण किया। चौ. साहब की सोच थी कि जब तक गरीब आदमी
के बच्चे शिक्षित नहीं होंगे तब तक उनमें अपने शोषण के प्रति जागृति नहीं आऐगी,
इसी सोच को लेकर उन्होंने
घूमंतु कबीलों के बच्चों को शिक्षा से जोडऩे के लिये उस काल में रोजाना स्कूल आओ,
एक रूपया पाओ की योजना
को आरम्भ किया।
1989 में जब केंद्र में सत्ता
परिवर्तन का दौर आया तो चौ. साहब को राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने का मौका मिला।
केंद्र में पहुंचकर उन्होंने भू सुधारों को लागू करवाया। सरकार द्वारा किसानों की जमीन
के अधिग्रहण के लिये मिलने वाले भावों को तय करने के लिये बाजार की परिस्थितियों को
ध्यान में रखने पर जोर दिया व भावों में नियमित वृद्धि के लिये नए नियम बनवाए। महात्मा
गांधी की सोच थी कि भारत गांवों में बसता है। इसी सोच को चौ. देवी लाल ने अपने जीवन
में धारा और ग्रामीण क्षेत्रों के सुधार हेतू सड़ाकों के निमार्ण, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने
व शिक्षा के प्रसार हेतू अधिक से अधिक स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों में खुलवाने के लिये
चौ. साहब ने नीतियां बनवाई। प्रशासनिक स्तर पर जनता का अंकुश लगाने के लिये चौ. साहब
ने कष्ट निवारण समितियों को अनिवार्य किया। उनकी सोच थी कि अफसर साही को निरंकुश होने
से रोकने के लिये यह जरूरी है कि जनता के लोगों की ऐसी कमेटी हो जिसमें अफसर जवाबदेह
हों।
आज देश में चारों ओर भ्रष्टाचार
व चरित्रहीन राजनीति का बोलबाला है। राजनेताओं के लिये पार्टी व देश से उपर निजी हित
हावी हो रहे हैं। अधिकतर राजनेता सत्ता में मात्र अपने आर्थिक हितों के लिये आ रहे
हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रतिदिन राजनैतिक संरक्षण में पनप रहा कोई न कोई
भ्रष्टाचार सामने आ रहा है। इसी कारण प्रशासनिक तंत्र में अफसर साही हावी होती जा रही
है और आम जनता को दफतरों में न्याय मिलना बंद होता जा रहा है। नौबत यह है कि एक बिजली
का कनैक्शन लेने तक को जनता दफतरों की अपेक्षा नेताओं के चक्कर काटने को मजबूर है।
प्रत्येक दल में जमीन से जुड़े लोगों का अभाव होता जा रहा है। राजनैतिक पार्टियों में
आज चेहरा चमकाने वाले लोगों का बोल बाला होता जा रहा है। जो लोग निरंतर मीडिया में
बने रहें उनके लिये जनता के बीच जाना कोई मायने नहीं रखता। अब राजनैतिक दलों के लिये
शायद अच्छे जननेता मानने के पैमाने बदल चुके हैं। जो नेता आर्थिक रूप से मजबूत हो,
वाकपटु हो और अपने
से उपर वाले नेताओं की हाजरी बजाने में माहिर हो उसके लिये जनता में पैठ रखना अब कोई
मायने नहीं रखता। चौ. देवी लाल ने सदा इस प्रकार की राजनीति का विरोध किया। उन्होंने
कभी अपने सिद्धांतो से समझौता नहीं किया। यही उनकी सफलता का राज रहा। उनके संघर्षपूर्ण
जीवन में सत्ता उनके हाथों में बहुत कम रही, लेकिन जब रही तो वह रजदरबारों की
कटपुतली बनने की बजाऐ जनता के लिये रही। उन्होंने आम आदमी तक सत्ता का सम्पूर्ण लाभ
पहुंचाया। आज सत्ता नेताओं की देहली तक सिमटती जा रही है। सिद्धांत विहीन होती इस राजनैतिक
व्यवस्था को सुधारने के लिये जरूरी है कि चौ. देवी लाल की राजनैतिक विचारधारा को समझा
जाऐ व उनके सिद्धांतों को अमल में लाया जाऐ। चौ. देवी लाल का नारा था कि लोक राज लोक
लाज से चलता है। देश में स्वस्थ लोक तंत्र के भविष्य के लिये आज उस लोक लाज की विचार
धारा को जिंदा करने की भारी जरूरत है।
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