वा पागल कोनी थी
‘‘म्हारी जात तो एक थी पर गोत तो एक
कोन्या था, धर्म एक था....पर गाम तो एक कोन्या
था, रिश्ता बी जो घर आलय़ां नै कर दिया वाहे
मंजूर कर्या...। फेर कुणसा कसूर होग्या अक दुनिया नै म्हारे पापड़ पाडऩ मैं कसर ना
राक्खी। जिसकी आस तै दो बरस का बालक़ मेरी गोद मैं था, मेरे ताईं उसी मेरे घर आल़े कै पौंहची बंधवा दी। इब यू दिप्पू अपणे बाबू
नै मामा क्यूकर कह्वैगा? उसके स्कूल मैं
बाबू की जग्हां पै किसका नाम लिखवाया जावैगा...?’’
बिमला सडक़
किनारै पुराणे कुएं की मण पै बेठी अपणे आप तै कुछ न्यूं-ए बात कर री थी। उसके बाल़
सण के उल़झे होए पूंज्जयां जिसे हो रे थे। सिर पै लत्ता ना अर पायां मैं जूत्ती
कोन्या। कपड़्यां मैं बुरी तरियां चीक्कट जम रह्या था। उसका हूलिया चाहे जिसा बी
हो पर वा पागल कोनी थी। समाज के ठेकेदारां नै उसतीं पागल बणा दिया था। इब नौबत या
सै अक 15 दिन तै वा इस कुएं धोरै न्यू-ए घूमती दिखै
सै। जे किते चार पग्गड़ धारी आंदे दिखजैं तो वा घबरा कै न्यू बड़बड़ांदी होई कुएं
धोरै बणी बूड्डे बाबे की कुटिया मैं लुक जांदी, ‘‘पंचाती आ लिये...... पंचाती आ लिये......।’’
चार बरस पैहल्यां बिमला का रिश्ता उसके मामा नै अपणी दूर की
रिश्तेदारी मैं करवाया था। सगाई होई, रिश्ते तै एक बरस
पाच्छै ब्याह की तारीख बी तय होगी। चि_ी गई अर
ब्याह का दिन बी आण पौहंंच्या। पूरे गाम तै ढेड सौ बाराती भूरे (बिमला के बटेऊ) की
बारात मैं गए। खूब दारू के दौर चाल्ले अर नाच गाणा बी होया। सारे बाराती खुशी-खुशी
सांझ नै बहू नै ढोल़ी मैं बिठा कै गाम मैं आगे। बख़त बीतता गया अर जिब होल़ी आई तो
फाग खेलणियां की टोलियां भूरे के घरां आकै उसकी बहू पै रंग गेर कै गई, बिमला नै बी अपणे रिश्ते के द्यौरां की कोरड़े तै खूब तसल्ली
करी।
इसे तरियां उन्हैं खेलदे-खांदे तीन बरस बीतगे। बिमला नै इस
बीच एक फूल से बेटे दिप्पू तीं जन्म दे दिया। इब दिप्पू बी दो बरस का हो लिया था।
एक दिन बेरा ना किस बात पै गाम के सब तै शातिर माणस सोट्टे गेेल भूरे की तू-तू
मैं-मैं होगी। खींच-ताण इतनी बढग़ी के सोट्टे नै भूरे तीं मजा चखाण का मन बणा लिया।
फेर के था, चालगी सोट्टे की शाम-दाम-दण्ड-भेद की
नीति।
भूरे का परिवार तीन पीढ़ी पहल्यां इस गाम मैं जमीन खरीद कै
बसया था। इस परिवा के आण तै उस गाम मैं इस बिरादरी के दो गोत होगे। बिरादरी का
बहुमत था। इस कारण भूरे का परिवार गाम के पहले गोतियां नै पूरे भाई चारे तै
स्वीकार कर लिया। दोनूं परिवारां मैं पूरा मेल-मिलाप अर भाई-चारा बणग्या। तीन
पीढ़ी बीतगी अर अगली पीढिय़ां नै ठीक तै यो बी बेरा ना रह्या अक यू परिवार कदे बाहर
तै आकै बसया था या उरै का-ऐ बसींदा सै। कलापुर पांच हजार बोट का बड़ा गाम था पर
फेर बी कुणब्यां मैं आपसी भाई-चारा खूब था। तू-तू मै-मै तो घरां मैं होंदी-ऐ रहै
पर इस गाम मैं कदे ल_ां की लड़ाई होई हो इसा वाकिया गाम
के किसे बुजुर्ग तक कै बी याद कोनी।
शातिर सोट्टे नै शदियां तै चली आ रही गाम की या शांति घडिय़ां
मैं भंग करदी। उसनै तास्सां की टोल्ली मैं बेठे-बेठे होक्के की घूंट खींच कै बड़ी
दर्द भरी आवाज बणाई अर बोल्या, ‘‘भाई, इब यू गाम कोनी बचै!’’ लाम्बा सा सांस खींच के वो बोल्या, ‘‘गाम नै बेरा बी कोनी अर तीन बरस तै गाम मैं इसा जुल्म हो रह्या सै अक
पुरख्यां की आत्मां बी ओठै सुरग मैं बेठी हमनै कोसदी होंगी। कसूर वार बी हम-ऐ सां,
कदे कुछ जाणन का जतन-ऐ ना कर्या अक पिछले तीन बरस तै गाम
के डांगर-ढोरां अर माणसां मैं सुख क्यूं नी रह रह्या सै। जद गाम के किसे माणस तै
कोए माड़ा काम होज्या तै गाम के बुरे दिन डांगर ढोरां मैं को-ऐ दिखणे शुरू होया
करैं।’’
सोट्टे की धीर-गंभीर
मुद्रा मैं कही इन बातां का ओठै बेठे लोगां पै घण असर होया अर सारे सोच मैं डूबगे
अक इसा कै जुल्म होग्या। हिम्मत कर कै एक अधेड़ माणस नै बूझ्या, ‘‘रै सोट्टे, भाई खोल कै बता
के इसा कुणसा जुल्म होग्या जिसतै गाम के बुरे दिन आण लाग रे सैं अर भरे गाम नै
बेरा बी कोनी?’’
सोट्टा मुंह लटका कै
बोल्या, ‘‘भाई बात कहण नै मुंह बी कोनी पाटदा के तीन
बरस तै अपणी धी नै अपणे गाम मैं बहू बणाऐ बेठे सां।’’
सारे तासियंा के मुंह
खुले के खुले रैहगे। सारे एक सुर मैं बोल्ले, ‘‘ओड बड़ा जुल्म किसनै कर दिया गाम मैं भाई...?’’
सोट्टा तल़े नै सिर करकै बोल्या, ‘‘भूरे नै तो थम सब जाणदे होंगे, गांज्जा
पट्टी, जिसका ब्याह तीन बरस पैहल्यां टिड्डापुर गाम
मैं होया था। उसकी बहुडिय़ा आपणी-ऐ गोतण तो सै।’’
इतने मैं एक गाबरू
छोरा उठ कै बोल्या, ‘‘इसमैं कुणसा जुल्म होग्या? भूरे की तो सारी पट्टी अपणे गोत की ना सै उनका गोत दूसरा सै
अर अपण गोत दूसरा सै। फेर थम सारे बी तो भूरे के बाराती बण कै गए थे, अर जाणैं बी थे अक टिड्डापुर गाम म्हारे गोतियां का सै। उस
बख्त तो काका सोट्टा बी सिर पै दारू की बोतल धर कै नाचण लाग रह्या था। इब तीन बरस पाछै
यू रिऐक्शन क्यूकर होग्या?’’
एक तासडिय़ा अधेड़
माणस उस छोरै नै धमकांदे होए बोल्या, ‘‘अरै डटजा
रै पी.एच.डी., इबे तो कुछ पकणा शुरु होया था अर तू
चुल्हे की आग बुझाण नै चाल्या सै। जा भाग उरे तै, इसी बातां मैं दखल देणा बालकां का काम ना होया करदा।’’
दूसरा बोल्या,
‘‘इस छोरे की बातां की छोड्डो, थम अपणी सोच्चो अक हम इब के करैंगे? कदिम्मी बात चालदी आई सै अक सबतै पहल्यां गोती भाई, फेर सारी असनाई। यू तो कती जुल्म होग्या, इब इसका कुछ हल तो सोच्चो, जे दुनिया नै
बेरा पाटग्या तो इस गाम मैं तो इसा बख्त आजैगा अक रोज जवान छोरे तडक़ै तै घरां के
मुण्डेर्यां पै चढक़ै देख्या करैंगे के कोई रिश्ते आल़ा ना आया। कोए ना तो म्हारे
गाम का रिश्ता लेगा अर ना उरै रिश्ता देगा। अपणी बाहण-बेट्टी नै ब्याहणिये गाम मैं
भला कोण रिश्ता करैगा।’’
फेर के था, सोट्टे की रेल
पूरी तेज चालगी, बात आग की तरियां सारे गाम मैं
फैलगी। गल़ी-चौराहे अर थाईयां मैं याहे चर्चा सुणाई देंदी। इतना राष्ट्रवाद तो गाम
के बुड्डयां मैं अपणी जवानी के टेम भारत-चीन अर भारत-पाकिस्तान की लड़ाईयां मैं बी
कोनी जाग्या होगा जितना गौत्रवाद उनमैं जागग्या। ठाल्ली बेठे पंचातियां नै अपणी
ज्ञान गंगा बहाण का मौका मिलग्या। गिणे दिनां मैं-ऐ भूरा पूरी बिरादरी का खलनायक
बणग्या। सरपंच नै पिप्पा पिटवा दिया अर गाम की बडी थहई मैं पंचायत का ऐलान होग्या।
दिन ढल़े पूरा गाम थाई मैं क_ा होग्या।
सरपंच खड़्या होकै बोल्या, ‘‘भाईयो थम सबनै बेरा सै अक गाम मैं दो दिन तै के चर्चा चाल री सै। बात छोटी
कोनी, कुछ टेम पैहल्यां म्हारी रिश्तेदारी के एक
गाम मैं न्यूं-ऐं गोत-नात की बात पै एक छोरे-छोरी का कत्ल होग्या था। थम नै
टेलीबीजन पै बी देख्या होगा अक उस गाम का के रौल़ा माच्या था। हम नी चाहंदे अक
म्हारे गाम की शांति भंग होवै अर दुनिया मैं म्हारा बी डूडुआ पिटै। हमनै रल़-मिल
कै इसका हल करणा सै ताके गाम अर गोत की इज्जत बची रहै।’’
इतने मैं पी.एच.डी.
उठकै बोल्या, ‘‘गाम मैं कुणसी सी.बी.आई. जांच बैठरी
सै, कल्ले सोट्टे चाचे नै चर्चा छेड़ दी अर गाम
क_ा हो लिया। भूरे नै कुणसा गांम की छोरी भगा
ली सै।’’
इतने मैं एक
पग्गड़धारी रिटायर फौजी उठ कै बोल्या ‘‘अरै डट जा
अंग्रेज, थारे जिस्यां नै तो नाश करण का ठेक्का ले
लिया सै। चार अक्खर पढ़ कै बेरा नी के बणज्यां सै। हम नै दुनिया देखी सै, तू पंचायती बात मैं दखल ना देवै।’’
उस बुड्ढ़े नै अपणी
बात शुरु करी, ‘‘यू मुद्दा न्यूं मिटण आल़ा कोनी। आज
यू चक्सू जाग्या सै कल नै गाम के सारे छोरे जागैंगे अर गल़ी तै गल़ी मैं ब्याह होण
लाग ज्यांगे। हम आज तो आपस मैं भाई हां पर कदे इसा टेम ना आजै अक सिमधी बणे नजर
आवैं। भाईयो इस बात का पंचायती हल करो अर इस बुराई नै उरै-ए खत्म कर द्यो।’’
पंचायत मैं ताड़ी
पिटगी। फेर दूसरा कौम का ठेकेदार उठ्या अर आपणी मूच्छां नै बटा दे कै बोल्या,
या कल्ले गाम की बात कोनी, यू तो टिड्डापुर तै बी जुड़्या मामला सै। आखिर छोरी के बाप नै बी तो
रिश्ता करदे हाण सोचणा चाहिये था अक म्हारे गाम मैं दो गोतां का भाई-चारा सै।’’
आखर मैं पंचायत इस
बात पै उठगी अक चार दिन पाछै इसे थहइ मैं भूरे का पूरा परिवार, उसकी बहू अर उसके सासरे के लोग बी आपणे पंचातियां नै लेकै
आवैंगे।
फेर के था, टिड्डापुर के
पंचातियां नै बी बे_े बिठाऐ थूक बिलोण का काम पाग्या।
चार दिन पाच्छै दोनंू गामां के अर गुहाण्डां तक के पंचायती क_े हो लिये गाम की थहई मैं। मामला घणा तूल पकड़ग्या। गाम की
थहई के बाहर जिप्पां, कारां अर मोटर साईकिलां की भीड़ लाग
गी। थहई मैं पल्लड़ बिछगे, कौम के बड़े-बड़े
ठेकेदार बणनिये कुर्सियां पै अर तमाशबीन लोग पल्लड़ां पै बेठगे। नौजवान तबका थहई
की कांधां पै बेठग्या।
इबकै पंचायत की प्रधानगी बी भूरे के गाम के सरपंच के हाथां
मैं तै जांदी रही। बिना चुनी पंचायत का
स्वयंभू प्रधान अर तुर्रे आला खण्डका भला होर किसे की प्रधानी क्यूकर बर्दाशत करदा।
उसनै बिना टेम गवांऐ खड़े हो कै सबतीं राम-राम बजाई अर फेर मामले मैं अपणी बाणी का
तडक़ा लाया। उसनै थोड़ी देर तक अपणी कथा बांच कै फेर अपणे आप-ए अपणे हम प्याला कौमी
ठेकेदारां की एक कमेटी घड़ दी। किसे की हिम्मत ना होई के उसनै कुछ कह दे। फेर थहई
के अंदरले कमरे मैं बैठ कै उस कमेटी नै भूरे अर उसके घर आल़ी की जिंदगी का फैंसला
बी कर दिया।
बाहर लिकड़ कै उस खंडके आल़े कौमी ठेकेदार नै खंगार कै सबतीं
चुप करवाण का जतन करदे होए बिरादरी पै आपणी दाब का बी अहसास करवाया।
उसनै भारी भरकम फैंसले के बोझ मैं दबण का नाटक करदे होए आपण
भाषण देणा शुरु कर्या, ‘‘भाईयो यू मामला
इतना सीधा कोनी था अक पल मैं निपट जांदा। इसमैं जड़ै दो गोतां के भाई-चारे का
स्वाल था ओड़ै-ए दो गामां की इज्जत अर पंचातियां के मान-सम्मान का बी स्वाल सै। इब
वो बक्खत कोनी रह्या अक दोनुआं नै कत्ल
करण तक का हुकम दे दिया जावै। कानून बी घणे सख्त हो लिये अर सरकार बी। सारे सालसां
नै मिल कै सर्व सम्मत अर दोनूं धिरां के हक का फैंसला त्यार कर्या सै। बोलो भाईयो
सबनै मंजूर हो तो मैं सुणाऊं?’’
भूरे अर उसकी घर आल़ी
नै छोड़ कै जे कोऐ चुप थे तो थहई की दिवार पै खड़े नौजवान, बाकी सब पंचातियां अर तमाशबीनां नै ताड़ी पीट दी। पंचायत के प्रधान का जोश
दूणा होग्या अर चेहरा सूरज की तरियां खिड़ग्या। उसनै अपणा सध्या होया अर घणे
बुद्धिमान पंचातियां का करया होया फैंसला जनता के आगै धर दिया।
फैंसला यू होया अक भूरा आज तै बिमला का भाई सै। इब बिमला भूरे
की बांह पै पौंची बांधैगी अर आपणे बाप के घरां चाल्ली जावैगी। उनके बालक दीपू नै
भूरे धोरै छोड्या जावैगा। भूरे अर बिमला के बाप तीं इस गुनाह की सजा मैं
हुक्का-पाणी बंद करण का हुकम होग्या अर भूरे तीं बी पांच बरस तक गाम तै बाहर रहण
का हुकम होग्या।
आखर बिरादरी की बेटी की जिंदगी का स्वाल था सो बिमला की अगली
जिंदगी का फैंसला करणा बी पंचायत नै अपणा धर्म समझ्या।
प्रधान बोल्या,
‘‘भाई या बिमला बी बिरादरी की बेटी सै, इसनै बी बाप के घरां शोभा कोनी।’’ दरिया दिली
दिखांदे होए इसका जिम्मा उस प्रधान नै खुद
पै ओट्या अर बिमला के खातर आपणे ही दूर के रिश्तेदार की बात बी पंचायत मैं खोल दी।
उसनै बताया ‘‘मेरे साल़े की
रिश्तेदारी मैं एक छोरा सै। माड़ी सी कजी सै टांग मैं बाकी कसर कोऐ ना सै अर जमीन
जायदार का तो घाट्टा-ए कोन्या। दस बरस पैहल्यां उसकी घर आल़ी गुजरगी थी। इब दो
बालक सैं, एक 16 बरस का अर एक 12 बरस का। इसी
जग्हां जाकै बिमला नै इज्जत बी मिलैगी अर इस बिचारी की जिंदगी बी कटज्यागी।’’
पल्लड़ां पै बेठे
तमाशबीनां नै फेर ताड़ी पीट दी। इसा लाग्गै था अक वैं तो शायद पैदा-ए ताड़ी
पिट्टणन नै होए हों।
इतने मैं थहई की दिवार पै खड़े छोर्यां का टोल्ला भडक़ग्या।
बोल्ले ‘‘आ ताऊ, यू तै कुछ बी कोनी होया। इन्हैं आज-ऐ फांसी क्यूं नी तोड़ देंदे। इनकी
जिंदगी नरक बणाण मैं तो थम नै कोऐ कसर छोड्डी-ए सै।’’
फेर वा-ए पी.एच.डी.
पंचायत के बीच मैं आग्या अर भूरे की बाहं पकड़ कै बोल्या, ‘‘भाई इन पंचातियां तै आग्गै बी देश बसै सै। तू घबरावै मतना, हम तेरे गेल हां, तू डरिये
मत ना।’’
कौम के ठेकेदारां पै
या बात जरी कोनी गई। उन छौर्यां नै धमकांदे होऐ आपणे फैंसले नै लागू करण का टेम 10 दिन का धर कै उन्हैं पंचायत उठादी अर अपणी गाड्डियां मैं
स्वार होकै चालदे बणे। भूरे का सुसरा डरदा बिमला नै अपणे घरां लेग्या अर भूरा डरदा
गाम तै लिकड़ग्या। बिमला आपणे बाप के घरां जाकै पागल सी होगी। उस पी.एच.डी. छोरे
नै भूरे का साथ दिया अर अदालत तीं मामला पौंहचग्या। अदालती फैंसला बी भूरे अर
बिमला के हक मैं होग्या अर वैं अपणे घरां बी आगे। पर अदालत गाम के लोगां की
विचार-धारा नै ना बदल सकी। कौम के ठेकेदारां नै बी इसमैं अपणी तौहीन नजर आयी अर
नवे-नवे तरीक्यां तै भूरे अर बिमला की जिंदगी नै नरक बणाण की तैयारी होण लाग्गी।
भूरा बी बिमला नै लेकै किते दूर लिकड़ण की सोच रह्या था पर इब टेम कसूता चाल ग्या।
बिमला दिमाग का संतुलन खो बे_ी अर किसे काबिल
ना रही। वा पागल कोनी थी पर उसनै ठीक बी कोऐ ना कहै था। टिड्डे की चाल अर कौम के
ठेकेदारां नै एक भर्या पूरा घर तो जाड़-ए दिया गेल मैं गाम अर समाज मैं बी जहर भर
दिया था।
...............................................................................................पवन सौन्टी
लेखक जानी मानी न्यूज ऐजेंसी रॉयटर्स
के उपक्रम (रॉयटर्स मार्कीट लाईट) में हरियाणा के लिये चीफ मार्कीट रिपोर्टर के पद
पर कुरुक्षेत्र में कार्यरत हैं। हरियाणवी साहित्य एवं संस्कृति में गहन रूचि के
साथ साथ हिंदी में भी गद्य एवं पद्य लेखन कर रहे हैं।
PAGAL KONI THEE AUR PAGAL KAUN THEE MEIN BAHUT FARAK HAI
ReplyDeleteसर संपादन के कारण कुछ बदलाव है .....ये तो वाही लोग जानें कि किस कारण मूल शब्दों को सम्पादित किया गया है....हाँ मुझे भी कुछ कमी सी लगी थी इसी लिए अपनी मूल रचना को यहाँ साथ में पोस्ट किया है ताकि पाठको की जिज्ञाषा का हल हो सके...बाकि सब आपके सामने है....
Deleteधन्यवाद...