Thursday, April 18, 2013

कड़वा सच्च..ढोंगी बाबा....-(सुरेंदर पाल वाधवान )




नेताओं -अभिनेताओं के बिना अधूरे हैं आज  के सत्संग

कुछ संतों को है मीडिया का अच्छा खासा चस्का
समागमों पर किए जाते हैं लाखों खर्च,अभिनेता करते हैं गुणगान
सुरेंद्र पाल वधावन (शाहाबाद मारकंडा)
आजकल किसी संत महापुरुष के सत्संग या समारोह का आयोजन हो और उसमें किसी नेता -अभिनेता का आगमन न हो तो समझो सत्संग अधूरा है। नेताओं का सानिध्य पाने वाले इन संतों को नेताओं की तरह ही मीडिया में बने रहने का अच्छा खासा चस्का भी है। कार्यकम को लाईव दिखाने पर ही मोटा रुपया किसी चैनल को दिया जाता है। कुछ एक महापुरुष तो नेताओं के अलावा  फिल्मी हस्तियों को भी अपने समागम में बुलाकर अक्सर अपनी बल्ले-बल्ले करवाते रहते हैं।लोकप्रिय धारावाहिकों  के कई अभिनेता  भी सत्संग कार्यक्रमों में संत-गुणगान करते दिखाई दे जाते हैं।

 वास्तव में समय के बदलाव के साथ-साथ और आधुनिक तकनीक और जीवनशैली ने संत समाज के स्वरुप को बदल दिया है। आज के ज्यादातर संत सादगी से दूर हो रहे हैं और  पूर्णतया भौतिकवादी संस्कृति को आत्मसात कर चुके हैं। यह संत देश विदेश में समागम करते हैं जिन पर श्रद्धालुओं के लाखों रुपए खर्च होते हैं। इसके अलावा स्वंय को प्रचारित करने लिए उक्त श्रेणी के धनाढय संत महंगे  टी.वी चेनलों का सहारा लेते है। आमजन को अंत:मुखी बनने का उपदेश देने वाले यह संत स्वंय भौतिकवाद का बुरी तरह से शिकार हैं।
 किसी भी नगर में प्रवचन कार्यक्रम रखने से पहले संतों के बड़े बड़े कटाउट उसकी प्रमुख सडक़ों और स्थानों पर लगाए जाते हैं। पत्रकार सम्मेलन बुला कर पत्रकारों  से कवरेज की बात की जाती है और एवज में सत्संग के दौरान उन्हे सम्मानित किया जाता है। आयोजकों द्वारा  स्वागत द्वार सजाए जाते हैं और सडक़ों पर बिजली की लडिय़ां और फानूस लगाए-जगाए जातें हैं। बिजली की सप्लाई निर्विघ्र रखने के लिए जनरेटर उपलब्ध किए जाते हैं। जो लोग समागम में नहीं आते उन्हें संत जी की वाणी श्रवण कराने के लिए आयोजकगण हाई वॉटेज के स्पीकरों का इस्तेमाल करते हैं।  संतो के ठहरने की व्यवस्था आजकल किसी $गरीब की झोंपड़ी में नहीं होती और न ही संत कभी-भिक्षाम देह शब्द का उच्चारण करते भिक्षा मांगते हैं। संतो को भोज देने के लिए अमीर श्रद्वालुओं की कतार लगी रहती है। पंद्रह प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। समारोह स्थल के बाहर आर्युवेदिक दवाओं धार्मिक पुस्तकों चित्रों के स्टाल आकर्षण का केंद्र होते हैं। इन स्टालों पर पौरुष शक्ति बढ़़ाने की मूल्यवान दवाएं भी उपलब्घ रहती हैं। समागम में पंडाल के भरने की सूचना मोबाइल पर संत जी के प्रमुख चेले को मिलती है तो संतजी को एक लग्जरी वाहन में  प्रवचन स्थल पर लाया जाता है।











                                                           सुरेंदर  पाल वाधवान
                                                                9416872577

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