शाहाबाद को रुहानियत से नवाज़ा है सूफी संतों
ने
पीर भीखन शाह ने की थी दशम गुरु के अवतरण की भविष्यवाणी
शाहाबाद मारकंडा (सुरेंद्रपाल
वधावन)
प्राचीन कसबा शाहाबाद अपने आप में एक गौरवमयी इतिहास समेटे है। मघ्यकाल के कई सूफी
संतों ने इस नगरी को रुहानियत से नवाजा है। इन सूफी पीर-फकीरों में शेख अब्दुल कद्दूस
साहिब को एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल है वह मुहम्मद चिश्ती साबिर के शिष्य थे। अब्दुल
कद्दूस साहिब और संत खैरुशाह ने शाहाबाद में सूफी़ मत का प्रचार किया ।
इतिहासकारों का मानना है कि 1491से 1525 ई. तक शेख़् अब्दुल शाहाबाद में रहे। शेख अब्दुल साहिब
फारसी के विद्वान होने के साथ-साथ हिंदी में भी अच्छी काव्य रचना कर लेते थे। हिंदी
में उनका एक काव्य अलखवाणी भी प्रकाशित हुआ। शेख अब्दुल हालांकि मूल रुप में नारनौल
के निवासी थे लेकिन 34 वर्ष तक शाहाबाद में रहे थे। इसी नगर में एक सूफी संत खैरुशाह भी रहते थे जिनका
निधन 1616 ई.
में हुआ था।यहीं के सूफी संत शेख मुआली का शुमार मध्य युग के प्रमुख संतो में किया
जाता है।
शाहाबाद के निकट ठसका गांव में पीर भीखन शाह नामक एक सूफी संत रहते थे । वह सय्यद
थे और अचानक एक दिन पूर्व दिशा में जब लोगों ने उन्हें सजदा करते देखा तो इसका कारण
पूछा। यह बात जि़क्र योग्य है कि मुस्लिम सदा पश्चिम की और सजदा करते हैं जिस दिशा
में मक्का मदीना हैं। तब पीर भीखनशाह ने रहस्योद्घाटन
किया के पूर्व दिशा में स्थित पटना में एक युग पुरुष ने अवतार लिया है। तदोपरांत पीर
भीखनशाह अपने शिष्यों सहित पटना की और रवाना हुए जहां दशम गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म
हुआ था। पीरजी ने आशीर्वाद दिया और भविष्यवाणी की कि यह अवतारी बालक
हिंदू और मुस्लमान दोनों समुदायों को समदृष्टि से देखेगा और इसका यश और कीर्ति युगों
युगांतरों तक कायम रहेगा।
पीर भीखन शाह ने हिंदी में दोहों की रचना
की थी। आज उन्हीं के नाम से ही ठसका गांव को ठसकामीराजी के नाम से पुकारा जाता जाता
है। साहित्यकार डा.नरेश ने पाकिस्तान में जा
कर सूफी संत मीरा भीखजी की रचनाओं को ढूंढने का प्रयास किया है।
सूफी संतों की कर्मस्थली और मुस्लिम बाहुल्य
क्षेत्र होने के कारण यहां 52 मस्जिदें थीं जिनका समय समय पर निर्माण किया गया था । पंजाब
वक्फ बोर्ड के रेकार्ड में 20 मस्जिदों का जक्र मिलता है ।
नोगजा पीर इब्र्राहीम साहिब का मज़ार:- शाहाबाद से
6 किलोमीटर
दूर नोगजा पीर इब्र्राहीम साहिब का मज़ार सर्वधर्म सद्भाव व श्रद्धा का केंद्र है।
पीर साहिब के बारे में कहा जाता हे कि वह रुहानियत
से सराबोर होने के साथ साथ वक्त के भी बड़े पाबंद थे। उनके मज़ार पर घडिय़ां चढ़ाने
की अनूठी परंपरा है। वाहन चालक यहां से गुजरते
वक्त अकीदत के तौर पर यहां घडिय़ां नजराने के तौर पर भेंट करते हैं। जिसके पीछे यह अवधारणा
रहती है कि वाहत चालक सकुशल अपनी मंजिल तय करने के बाद समय पर अपने घरों में पहुंच
जाएं। पीर साहिब की मज़ार की आमदनी शाहाबाद के ग्रामीण आंचल के विकास कार्यो में लगाई
जाती है। समाजसेवी संस्थाओं को समारोहों में स्मृति
चिन्ह प्रदान करने हेतु यह घडिय़ां खंड विकास कार्यालय द्वारा नि:शुल्क प्रदान की जाती
हैं।
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पवन सोंटी "पूनिया" कुरुक्षेत्र
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