9 अप्रैल को 26वें बलिदान दिवस पर विशेष
25 वर्षों से नगरपालिका में धूल- धूसरित है शहीद खुशदेव की प्रतिमा
कुछ और ही बयां करती है दावों की जमीनी हकीकत
सुरेंद्र पाल वधावन/ शाहाबाद मारकंडा
यूं तो देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले
शहीदों को सम्मान देने के लिए सरकार एंव प्रशासन द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जाते है
लेकिन कभी कभी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। परंतु 9 अप्रैल 1988 को शाहाबाद में आंतकवादियों
से निहत्थे जूझते वीरगति को प्राप्त हुए शहीद खुशदेव सिंह एडवोकेट, शहीद गुरप्रीत कौर और शहीद
गुरदीप सिंह के प्रति हरियाणा सरकार और प्रशासन का उपेक्षापूर्ण रवैया कुछ अलग ही तस्वीर
पेश करता है। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन भाकपा विधायक डा. हरनाम सिंह के निवास पर आंतकवादियों
ने 9 अप्रैल
1988 को हमला
किया था और उस रात्रि को याद कर आज भी शाहाबाद के लोगों के हृदय कांप उठते हैं जिसमें
उनके निहत्थे बेटे खुशदेव ङ्क्षसह, पुत्रवधू गुरप्रीत कौर एवं उनके संबंधी गुरदीप सिंह ने अपनी
जान पर खेलते हुए हथियारों से लैस आंतकवादियों का सामना करते हुए अपने पिता डा. हरनाम
सिंह एवं अपनी माता श्रीमति जसंवत कौर की तो प्राण रक्षा की लेकिन स्वयं शहीद हो गए। इस हमले में स्वंय विधायक, उनकी पत्नी जसवंत कौर और
नजदीकी रिश्तेदार हीरा ङ्क्षसह भी गोलियां लगने पर गंभीर रुप से घायल हो गए थे। इस
निर्मम घटना से पूरा नगर ही नही, अपितु पूरा देश कांप उठा था।
तत्कालीन राष्टरपति आर. वैंकटरमनन ने इस परिवार के अदम्य साहस को देखते हुए देश
में पहली बार एक ही परिवार के 5 सदस्यों को बहादुरी के लिए शौर्य चक्र देकर सम्मानित किया था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल ने भी तुरंत शाहाबाद पहुंचकर शहीद खुशदेव सिंह की
स्मृति में एक स्मारक बनाने और विधायक के निवास वाली गली का नाम गली शहीदां रखने की
घोषणा की थी। उधर प्रशासन द्वारा बराडा-जी.टी.रोड चौंक पर शहीद खुशदेव सिंह के नाम
पर एक पार्क बनाने तथा उसमें शहीद की प्रतिमा स्थापित करने की भी घोषणा की गई थी। तत्कालीन
विधायक डा. हरनाम सिंह ने इस आतंकवादी हमला में अपना सुशिक्षित युवा बेटा खुशदेव सिंह
व पुत्रवधू गुरप्रीत कौर खो दिए थे। उनकी धर्मपत्नी जसवंत कौर गंभीर रूप से घायल होने
के कारण पी.जी.आई. में थी और वह तो अपने बेटे व पुत्रवधू के अंतिम संस्कार में भी शामिल
नहीं हो पाई थी। लेकिन डाक्टर हरनाम सिंह ने कहा था कि मेरे पुत्र व पुत्रवधु ने निॢभकता
पूर्वक आतंकवाद से जूझते हुए राष्ट्रहित में अपनी जानें न्यौछावर की हैं। मुझे उन पर
गर्व है। उनका जीवन सभी के लिए अनुकरणीय व प्रेरणादायक है। धन्य है ऐसे देशभक्त पिता
जिन्होंने इतना कुछ खो देने के उपरांत भी न सिर्फ धैर्य रखा अपितु ऐसे उद्गार व्यक्त
किए। 9 अप्रैल
को इन्हीं तीन बहादुर शहीदों का 26वां बलिदान दिवस है।
तत्कालीन सरकार ने शहीदों की स्मृति में शेरशाहसूरी मार्ग पर शहीद खुशदेव सिह पार्क
स्थापित करने व वहां शहीद खुशदेव सिंह की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की तथा 1,25,000 रुपए शहीद की प्रतिमा के
लिए स्वीकृत कर नगरपालिका शाहाबाद को भेजे थे।
कितना दु:खदाई है कि घटना के 25 वर्ष उपरांत भी शहीद की प्रतिमा स्थापित नही हो सकी
तथा जो प्रतिमा रोहतक के बुत निर्माता से बनवाई गई उससे शहीद का चेहरा मेल नही खाता।
यह मूॢत नगरपालिका कार्यालय में पड़ी धूल चाट रही है। निकट भविष्य में यह बुत स्थापित
होने के कोई आसार नजर नही आते। नगरपालिका निर्धारित स्थान पर यह बुत स्थापित करवा पाने
में विफल रही है। नगरपालिका ने बुत निर्माता जिसने बुत निर्माण के 1 लाख 5 हजार रुपए लेने तय पाए थे
के विरुद्ध क्या कार्रवाई की पालिका ही जानती है।
क्या कहते है डा.
हरनाम सिंह ?
जब इस बारे में पूर्व विधायक डा. हरनाम
सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस घटना को 25 वर्ष पूरे हो गए हैं और इस बार शहीदी
दिवस को बड़े स्तर पर खुशदेव सिंह स्मारक में मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर विभिन्न शहरों से लोग इसमें शामिल होकर
श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि अब तो उस पार्क का वजूद ही खत्म हो गया
है जिसमें प्रशासन ने मूर्तियां स्थापना की बात कही थी। उन्होंने कहा कि शहीद तो शहीद
ही रहेगा लेकिन यदि उनकी याद में कोई स्मारक बनाया जाता है तो उससे आने वाली युवा पीढ़ी
को प्रेरणा मिलेगी।
नगरपालिका प्रधान के
अनुसार खतम हो गई है वो जगह....
जब इस बारे में नगरपालिका प्रधान सुदर्शन
कक्कड़ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर इस मूर्तियां स्थापना का प्रस्ताव
था वह अब सडक़ विस्तारीकरण के चलते खत्म हो गई है। उन्होंने कहा कि शहीदों के कारण ही
हमने आजादी पाई है। उन्होंने कहा कि वह जल्द ही इस मामले की जांच करवाएंगे और शीघ्र
ही बोर्ड की एक बैठक बुलाकर मूर्तियां स्थापना बारे चर्चा करेंगे।
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