Friday, April 5, 2013

रियासी में बंदा बहादुर के डेरा के 300 वर्ष पूरे होने पवर विशेष- सुरेंद्र पाल वधावन ,शाहाबाद मारकंडा



प्रथम खालसा साम्राज्य के संस्थापक थे महान सिख सूरमा बाबा बंदा सिंह बहादुर


शाहाबाद मारकंडा ---सुरेंद्र पाल वधावन
महान सूरमा बाबा बंदा सिंह बहादुर ने अपने शोर्य से ऐसा इतिहास रचित किया जिसकी मिसाल अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी की बंदा बहादुर से भेंट ने, उसकी जीवन धारा को एक नयी दिशा दे कर एक महान लक्ष्य की और प्रवाहित कर दिया। बंदा सिंह बहादुर का प्रचलित नाम माधोदास योगी था। 
नादेड़ में गोदावरी के तट पर स्थित माधोदास योगी के आश्रम में दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जब पहुंचे तो माधोदास वहां उपस्थित नहीं था। आश्रम में पहुंचने पर जब योगी ने अपने आसन पर गुरुजी को विराजमान होते पाया तो वह आपे से बाहर हो गया और आसन को पलटने का प्रयत्न किया किंतु असफल रहा। जाति से राजपूत और कृषक माधोदास का जन्म 16 टक्तूबर 1670 में जम्मू के राजौरी मे हुआ था और उसका वास्तविक नाम लछमण दास था। वह एक निपुण धनुर्धारी था। एक बार उसने एक मादा हिरण पर वाण चलाया तो मादा हिरण जो कि गर्भवती थी उसने  उसकी आंखों के सामने दो बच्चों को जन्म देते दम तोड़ दिया और बच्चे भी साथ ही मर गए। उक्त घटना ने लछमण दास के जीवन की धारा को बदल दिया उसने बैराग धारण कर लिया और वनजारों का सा जीवन व्यतीत करते अंतत: महाराष्ट्र में गोदावरी के तट एक आश्रम बना कर जीवन व्यतीत करने लगा। उसने अपना नाम माधेदास रख लिया और योग साधना के बल पर कई सिद्वियां हासिल कीं। उसके कई अनुयायी थे।
 गुरु गोबिंद सिंह जी की तेजस्विता और अनुकंपा ने माधोदास योगी को उनका प्रिय बंदा बना दिया। गुरुजी से उसकी मुलाकात 3 सितंबर 1708 में नादेड़ साहिब में हुयी थी। गुरुजी ने अमृत छका उसे खालसा का रुप दिया।  गुरु जी ने अपने तरकश के पांच तीर,एक नगाड़ा,सिखों के नाम एक हुकमनामा और केवल 25 सैनिक देकर मुगलसत्ता से टक्कर लेने के लिये और सरहिंद के शासक वजीर खान को सबक सिखाने के लिए पंजाब को रवाना किया। गुरु जी ने अपनी तलवार और पांच प्यारे बाज सिंंह,राम सिंह बिनोद सिंह काहन सिंह और फतेह सिंह जो कि जानेमाने सूरमा और रणनीतिकार थे उन्हे भी बंदा बहादुर के साथ भेज दिया।  गुरु जी ने उसे बहादुर के $िखताब से भी नवा$जा था। इस प्रकार माधोदास बंदा सिंह बहादुर के नाम से विख्यात हुया। गुरु गोबिंद सिंह जी का निधन 7 अक्तूबर 1708 को हो गया जिसका दु:खद समाचार बंदा सिंह बहादुर को अपने अभियान के शुरुआती चरण में मिल गया लेकिन वह विचलित नहीं हुआ और नादेड़ से लगभग 1600 मील का सफ र एक साल में तय करने के बाद हरियाणा में नारनौल में पहुंचा।
बंदा बहादुर ने हरियाणा फतह किया-नारनौल में उसने देखा कि वहां सतनामियों पर कितने जुल्म ढाए गए थे।उसका खून खौल उठा और उसने वहां कई लुटेरों और डाकूओं का वध किया । उसके बाद बंदा बहादुर हिसार पहुंचा जहां अनेक हिंदु व सिख उसके लश्कर में शामिल हो गए। उसके बाद टोहाना पहुंचकर बंदा ने पंजाब के मालवा क्षेत्र के सिखों को एक संदेश भेजा कि सरहिंद के नवाब वजीरखान के खिलाफ धर्मयुद्ध के लिए तैयार हो जाएं। नवंबर 1709 में बंदा बहादुर ने सोनीपत में शाही खजाने को लूट लिया। तत्पश्चात उसने कैथल में भी शाही खजाने को लूटकर सैनिकों को तनख्वाह दी।
गुरुजी के हुकमनामें की बदौलत उसके लश्कर में भारी संख्या में सिख शामिल होने लगे और दिल्ली पार करने के उपरांत उसके लश्कर में 4000 घुड़सवार और 9000 पैदल सैनिक मिल  चुके थे।
 1709-1710 में बंदा बहादुर जब पंजाब पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा तो समाना और ठसका को विजय करने के उपरांत शाहाबाद पहुंचा।समाना में बंदा बहादुर 26 नवंबर 1709 में पहुंचा और वहां खूब कत्लेआम किया गया जिसकी वजह यह थी यह कसबा जल्लाद जलालुदीन के परिवार व रिश्तेदारों से भरा था जिसने सरहिंद में गुरु साहब के दो छोटे साहिबजादों को जीवित दीवार में चिना था। उसके बाद बंदा बहादुर ने शाहाबाद पर धावा बोल दिया।  शाहाबाद का हाकम हमले की सूचना पाते ही $िकलानुमा मुगलसराय में जा छिपा।शाहाबाद में अ$फरात$फरी का माहौल बन गया लेकिन किसी ने सिखों से टक्कर लेने का साहस नहीं किया। बंदा बहादुर ने अपने  लश्कर के साथ कुछ देर के लिये यहां विश्राम किया और फिर साढौरा पर विजय करने के लिये कूच कर दिया। बंदा बहादुर ने यहां जिस स्थान पर विश्राम किया वहां बाद में सिखों ने गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब का निर्माण किया। शाहाबाद के बाद बंदा ने साढोरा पर हमला किया और पीर बुद्धूशाह के हत्यारे उस्मान खान को मार कर बदला लिया। उल्लेखनीय है कि भंगानी के युत्र में पीर बुद्धूशह व उसके पुत्रों ने गुरु गोबिंद सिंह जी की मदद की थी। साढौरा विजय के बाद बंदाबहादुर ने लोहगढ़ को अपना मुख्यकार्यालय बनाया और जीते हुए इलाके में अपनी प्रशासनिक व्यवस्था लागू की। उसका मुख्य लक्ष्य था सरहंद फतेह करना और  नवाब वजीर खान से गुरुजी के साहिबजादों की निर्मम हत्या का बदला लेना। बंदा ने लोहगढ़ में अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि की और सरहंद के नवाब की सैन्य शक्ति के बारे में सूचनाएं एकत्रित की। उधर वजीरखान को दिल्ली के शासक बहादुरशाह से शाहीमदद मिलने की उम्मीद नहीं थी लेकिन उसने जबरदस्त तैयारी की और सैनिकों की तादाद भी 40 हजार से अधिक थी। जबकि बंदा बहादुर के साथ न तो प्रशिक्षित सैनिक थे और न ही हथियार। उसके सैनिकों के पास भाले तलवारें व गंडासियां और तीरकमान आदि थे।
चप्पड़चिड़ी का ऐतिहासिक युद्ध और प्रथम सिख राज्य की स्थापना- लोहगढ़ में बंदा बहादुर ने लगभग तीन माह रुक कर अपनी सैन्य शक्ति को संगठित किया और जीते हुए प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया। फिर सरहंद फतह के लिए अपने लश्कर के साथ निकल पड़ा। बनूड़ में  रात्रि विश्राम के पश्चात वह 12 मई1710 को सरहंद के निकट चप्पड़चिड़ी पहुंचा जहां पर वजीर खान की सेना के साथ उसका घमासान युद्ध हुआ। वजीरखान के पास तोपखाना घुड़सवार और बंदूकधारियों की टुकडिय़ों के अलावा हाथियों पर सवार योद्धाओं के दस्ते भी थे। उसकी सहायता के लिए शेर मुहम्मद खान और मलेरकोटला के नवाब अपनी सेनाओं के साथ पहुंचे थे । इसके अलावा जेहाद की घोषणा किए जाने पर दस हजार गाजी भी उसकी मदद के लिए आ पहुचे थे। युद्ध के पहले चरण में मुगल सेना के तोपखाने और बंदूकचियों ने सिखों को काफी नुक्सान पहुंचाया। बंदा बहादुर अपनी सेना की केंद्रीय कमान संभाले था जबकि बाबा विनोद सिंह  और बाज सिंह बांए और युद्ध कर रहे थे। बाज सिंह को देखते ही वजीर खान ने उस पर भाले का जबरदस्त प्रहार किया लेकिन बाज सिंह  ने खुद को बचाते हुए  भाले  को पकड़ लिया और वजीर खान पर वापिस फैंक दिया। भाला वजीरखान के घोड़े को जा लगा ।  इसी दौरान बाबा विनोद सिंह सहायता के लिए आ पहुंचे । विनोद सिंह ने वजीर खान पर तलवार से जोरदार प्रहार किया जो उसके बाजू को काटता हुआ उसके शरीर को  निचले हिस्से तक चीर गया। इसी दौरान बंदा बहादुर ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। वजीर खान के मरते ही मुगल सेना में भगदड़ मच गई और सिखों ने जोरदार हमले करते हज़ारों की संख्या में सैनिकों को मौत के धाट उतार दिया।  इस भयंकर युद्ध में बंदा सिंह बहादुर के भी 3000 सैनिक मारे गए। विजय से उन्मंत सिखों ने वजीर खान के कटे सिर को एक भाले पर टांग कर घुमाया। सरहिंद शहर में दाखिल हो कर कत्लेआम किया और इसकी ईंट से ईंट बजा दी। सरहिंद की इस जीत की त्रिशती के उपलक्ष्य में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा सरहिंद फतह कार्यक्रम का आयोजन 12 से 14 मई तक किया जा रहा है और एक शोभा यात्रा का आयोजन किया गया है जो देश के विभिन्न प्रांतो से होकर फतहगढ़ साहिब पहुंचेगी।

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