लोकायुक्त तक पहुंच चुकी है मेहरा की आवाज
नियमों को ताक पर रखकर परिजनों को बांट डाले प्लाट
आबंटन 2010 में और 2011 में बने अलग राशनकार्ड
कुरुक्षेत्र/मेघराज मित्तल
हरियाणा सरकार द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तिकरण का प्रयास अपने आप में कितना फलीभूत हो रहा है, यह तो सरकार ही जाने, लेकिन पंचायतों के नुमाइंदे कुछ ज्यादा ही सशक्त हो रहे हैं। कुरुक्षेत्र के खंड लाडवा के गांव मेहरा की पंचायत ने तो सशक्तिकरण की हदें ही पार कर दी। गंगापुत्रा टाइम्स ने भ्रष्टाचार की दलदल में धंसे सरपंच की इस कथा को जिस प्रकार खंगाला है, उसका दूसरा भाग आपके सामने हैं।
हरियाणा सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए 100-100 गज के रिहायसी प्लाट देने की योजना जनहित में आरंभ की थी, लेकिन सरपंच यतेंद्र वर्मा ने इसे निजी हित में बदल डाला। गांव वासी सुबे ङ्क्षसह पुत्र रूड़ा राम के अनुसार उन्होंने इस मामले में हरियाणा के लोकायुक्त को 14 मई 2011 को शिकायत नं.241/2011 के तहत शिकायत भेजी थी, जिसे लोकायुक्त की ओर से उपायुक्त कुरुक्षेत्र को जांच के लिए भेज दिया गया है। उपायुक्त ने इसे अतिरिक्त उपायुक्त को भेजा और राजनीतिक दबाव में आकर अतिरिक्त उपायुक्त ने उनकी शिकायत को निराधार कर अपनी जांच रिपोर्ट उपायुक्त को भेज दी।
क्या हैं गांव वासियों के आरोप?
गांव वासियों के अनुसार सरपंच ने अपने सगे चाचा नाथीराम पुत्र हंसराज के लडक़ों रामशरण व रामकरण के नाम 100-100 गज के प्लाट अपै्रल 2010 में काट दिए। उस समय ये दोनों भाई अपने पिता के साथ संयुक्त राशन कार्ड में थे और परिवार के पास संयुक्त रूप से 5-6 एकड़ कृषि भूमि थी। इन लोगों ने 1 मार्च, 2011 को अपने पिता से अलग राशन कार्ड बनवाए, जबकि प्लाट एक साल पहले कट चुके थे। इसी प्रकार सरपंच द्वारा अपने दादा के भाई ब्रह्मानंद व ब्रह्मानंद के पुत्रों राजबीर व हरिचंद के नाम भी 100-100 गज के प्लाट काट दिए, जबकि राजबीर मेहरा में नहीं लाडवा में रहता है। यही नहीं हरिचंद व ब्रह्मानंद संयुक्त परिवार में रहते हैं।
क्या कहती है जांच रिपोर्ट?
अतिरिक्त उपायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन पटवारी द्वारा की गई जांच का हवाला दिया है कि रामशरण पुत्र नाथीराम के नाम 5 कनाल 15 मरले भूमि रिकार्ड में दर्ज है, हरिचंद पुत्र ब्रह्मानंद के पास कोई भूमि नहीं तथा वह गांव में रहता है, रामकरण पुत्र नाथीराम के नाम भी 5 कनाल 15 मरले कृषि भूमि है, राजबीर पुत्र ब्रह्मानंद के पास कोई कृषि योग्य भूमि नहीं है। प्लाटों के आबंटन के दौरान वह गांव में ही रहता था, ब्रह्मानंद पुत्र छज्जूराम के नाम 100 गज का प्लाट दिया गया है, उस समय उसको उसके पुत्रों ने घर से निकाला हुआ था।
क्या है कागजों में छुपी सच्चाई?
उपरोक्त मामले में हरिचंद पुत्र ब्रह्मानंद का बयान कुछ इस प्रकार है कि उसका राशनकार्ड नं.808715, मकान नं.455, गांव मेहरा में ही पड़ता है व राजबीर का बयान है कि उसका राशनकार्ड नं.808714, मकान नं.454 है। इन दोनों का बयान है कि ब्रह्मानंद उनके पिता हैं और वह उनके साथ ही गांव में रहते हैं। जब ब्रह्मानंद के बेटों का बयान है कि ब्रह्मानंद उनके पिता हैं और उनके साथ ही रहते हैं तो एक साथ तीनों सदस्य प्लाटों के हकदार कैसे हो गए। मजेदार बात यह है कि दूसरे आरोप में भी जिन राशनकार्डों की प्रति सबूत के तौर पर लगाई गई है, वह मार्च 2011 में बने हैं, जबकि प्लाट आबंटन अपै्रल 2010 में हो चुका था। अब गौर करने वाली बात तो यह भी है कि तत्कालीन पटवारी अमरनाथ ने किस आधार पर जांच कर अपनी रिपोर्ट अतिरिक्त उपायुक्त को सौंपी है और उसी रिपोर्ट को आधार बनाकर अतिरिक्त उपायुक्त ने सरपंच ने क्लीन चिट देते हुए आरोपों को ही निराधार साबित कर दिया।
यही नहीं पट्टे पर गांव की पंचायती भूमि का आबंटन भी इतना विवादों में घिरा है कि इसकी अलग कहानी अगले अंक में आपके सामने होगी।
क्रमश:
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