पवन सोंटी/ कुरुक्षेत्र
1. हरियाणवी संस्कृति
हरियाणा आज सांस्कृतिक समृद्धि के शिखर पर है। स्वतंत्र भारत के नक्शे पर 1966 में उदय हुए इस छोटे से प्रदेश ने वह समय भी देखा जब इसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान ही नहीं रही थी, और एक आज का दौर है जब यह प्रांंत सांस्कृतिक रूप से प्रौढ़ नजर आता है। एक प्रांत का अपनी लुप्त हो चुकी सांस्कृृतिक पहचान को पुन: उभारना व उसे निखार कर दुनिया को अचंभित कर देना कोई छोटी बात नहीं। इसके पीछे कारण तलाशने पर पता चालता है कि कोई न कोई हस्ति है जो इसके पीछे खुद को होम करके प्रदेश को सांस्कृतिक पहचान दिलवाने के लिये जीवन लगा चुकी है।
जैसे राजनैतिक उत्थान के लिये बलिदान की जरूरत होती है, उसी प्रकार सांस्कृतिक उत्थान व उसके बचाव के लिये भी बलिदान आवश्यक है। बलिदान का अर्थ यह नहीं कि शरीर त्याग कर ही आदमी उस मान को प्राप्त करे। बलिदान तो इच्छाओं, पद, पहचान, धन व लोभ-मोह का भी हो सकता है। सांस्कृतिक सैनिकों के लिये शारीरिक बलिदानों की अपेक्षा त्याग अधिक मायने रखता है, तभी वह संस्कृति को बचाने व उसके बढ़ाने में ध्वज वाहक का कार्य कर सकते हैं। अगर हरियाणवी संस्कृति पर दृष्टि पात करें तो हल्के से अवलोकन से ही ज्ञात हो जाता है कि यह कोई थोपी या अपनाई गई संस्कृति नहीं बल्कि इतिहास में दफन होने के बाद पुन: प्रतिष्ठित संस्कृति है, जोकि आज अपने प्राचीन गौरवमयी रूप को और निखार कर सामने आई है। समय के साथ इसने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। उत्तर भारत पर होने वाले बाहरी आक्रमणों व दिल्ली के नजदीक होने के कारण इसे अनेक बलित परिवर्तनों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद इसका अपने रूप को पुन: प्राप्त कर लेना अपने आप में किसी घोर आश्चर्य से कम नहीं है। इस सांस्कृतिक उत्थान के पीछे अगर गहराई से नजर दौड़ाई जाए तो मालूम होता है कि कोई खुद को जलाकर इसे रोशन कर रहा है जिसके बल पर आज हरियाणवी संस्कृति के गौरववत् प्रत्येक हरियाणवी दुनिया में अपना भाल ऊंचा रखता है।
अनूप लाठर एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके बलिदान, त्याग व सेवा स्वरूप आज हरियाणवी संस्कृति इस मुकाम पर है। इस शख्स की सांस्कृतिक साधना का ही परिणाम है कि आज देश के कोने-कोने से लेकर पाकिस्तान सहित दुनिया के दर्जनों देशों में हरियाणवी के दिवाने गर्व महसूस करते हैं। पिछले 30 वर्ष के उनके अनथक प्रयास की बदौलत आज हरियाणा के कितने ही युवक व युवतियां देश की भिन्न-भिन्न संस्कृतिक विधाओं में अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं। कला क्षेत्र से हट कर भी मीडिया जगत में उनके अनुयायी हर ओर देखने को मिलते हैं। अखबारों के डैस्क से लेकर समाचार चैनलों के ऐंकर और न्यूज हैड तक उनके मंजे हुए कलाकारों की बदौलत दुनिया के सामने हरियाणवी का प्रस्तुतिकरण किसी न किसी रूप में बखूबी हो रहा है।
अगर फिल्म जगत की बात की जाए तो माया नगरी मुम्बई की दहलीज़ पर भी आज हरियाणवी अपनी संस्कृति के साथ दस्त$ख दे चुकी हैं। आज अनूप लाठर की बदौलत एक ऐसी सांस्कृतिक सैनिकों की फौज तैयार हो चुकी है जिसे संगठित करके आज के फिल्म निर्माता व निदेशक हरियाणवी में उच्च दर्जे की कलात्मक हरियाणवी प्रस्तुतियां सामने ला सकते हैं। अब सही वक्त आ गया है कि हरियाणा का फिल्म निर्माता जागे और अपने प्रदेश के कलाकारों के बल पर अपनी संस्कृति को चलचित्र व छोटे पर्दे पर गौरव के साथ प्रस्तुत करे ताकि वर्षों के प्रयास से जिन्दा हुई यह गौरवमयी संस्कृति अपनी पहचान कायम रख सके।
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