Thursday, November 3, 2011

1997 से रत्नावली का अंग रोहित सरदाना बना चुके हैं इलैक्ट्रोनिक मीडिया में विशेष पहचान


संचलन तो कर लिया लेकिन दर्शकों में बैठ सीटी बजाने का शौक रहा बाकी
1997 से रत्नावली का अंग रोहित सरदाना बना चुके हैं इलैक्ट्रोनिक मीडिया में विशेष पहचान
कुरुक्षेत्र/ पवन सौन्टी

रोहित सरदाना आज इलैक्ट्रोनिक मीडिया में जाना माना नाम हो चुके हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वह रत्नावली के पुराने धुरंधरों मेें से हैं। 3 नवम्बर को रत्नावली के दूसरे दिन सरदाना ने आडिटोरियम हाल में मंच संचालन भी किया व पुरानी यादों को सांझा किया। सरदाना के अनुसार वह रत्नावली से 1997 से लेकर 2000 तक जुड़ रहे। तब इस समारोह का नाम हरियाणा दिवस समारोह होता था। वह तब हरियाणवी एकांकी में भाग लेते थे। उन्हीं दिनों हरियाणवी व्याख्यान प्रतियोगिता भी आरम्भ की गई और अनूप लाठर के निर्देशानुसार उन्होंने इसमें भी भाग लेना आरम्भ कर दिया। उन्होंने बताया कि उन दिनों जिन्हें हरियाणवी बोलनी आती थी वह स्टेज पर आते हुए झिझकते थे और जो लोग स्टेज पर आते थे उनको हरियाणवी बोलनी कम आती थी। रत्नावली के माध्यम से उनकी झिझक को दूर किया गया और आज जो हजारों कलाकार इतने उत्साह से रत्नावली के मंचों पर भूमिका निभा रहे हैं वह अनूप लाठर द्वारा डाली गई उसी नींव का परिणाम है।
            गौरतलब है कि रोहित सरदाना कुरुक्षेत्र से ही संबंध रखते हैं और आजकल जी न्यूज में डिप्टी ऐक्सक्यूटिव प्रोड्यूसर व प्राईम टाईम ऐंकर हैं। उनके पिता जी कुरुक्षेत्र में ही गीता स्कूल में प्रिंसिपल हुआ करते थे। व वहीं से रोहित ने शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने मीडिया मेें शुरुआत अमर उजाला से की। गुरुजंभेश्वर विश्वविद्यालय हिसार से पीजी करने के बाद वह इलैक्ट्रोनिक मीडिया में चले गए। इसमें उन्होंने अपनी शुरुआत हैदराबाद से इटीवी चैनल के डैस्क पर काम करने के साथ की। आज रत्नावली समारोह में पहुंचने पर उन्होंने कहा कि उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई हैं। आज वह पुन: मंच संचलन तो कर रहे हैं, लेकिन दर्शकों के बीच बैठ कर वह सीटी बजाने की कशिश दिल में ही है जो शिक्षार्जन के दौरान हुआ करती थी।

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