-------ये दिल
रो-रो मुहब्बत मांगता था
आर.पी. शो$ख की शायरी में छलकते हैं जीवन के
सबरंग
उर्दू शायरी की
तकनीकी बारीकियों के मर्मज्ञ थे
गालिब का फलसफा हो या फिर मीर-तकी़-मीर
का सोज़-ओ-गुदाज, जीवन के तमाम रंग उनकी शायरी में छलकते-झलकते हैं।
हीरे की कनी जैसी उनकी शायरी
के इन खूबसूरत रंगो को निहारने के लिए किसी को भी आज एक मुद्त दरकार है। यह बात हो
रही है मरहूम शायर प्रौ.आर.पी.शोख की, जो उर्दू के माहिर-ए-फन उस्ताद और बाकमाल शायर थे। इतना
ही नहीं आर.पी. शोख को आज के कई नामवर शायरों के उस्ताद होने का शरफ भी हासिल रहा।
उनके प्रकाशित तीन गज़ल संग्रह हैं जिनके नाम हैं-गम्जा-ब-गम्जा ,मुनक़्कश खण्डर जबीं (उर्दू
में) हरियाणा उर्दू अकादमी द्वारा सम्मानित और जन्दगी के शीशे में । िजन्दगी के शीशे
में ,वास्तव
में उनकी तमाम गजलों का हिन्दी लिपि में रूपांतरण है जो उनके निधन के उपरांत प्रकाशित
हुआ था। सुरेंद्र बांसल द्वारा इसे संग्रहीत
और अनुदित किया गया है। इसमें कुल 230 गज़लें हैं।
आर.पी. शोख का जन्म 13 अप्रैल 1939 को अम्बाला छावनी हरियाणा में हुआ। असल नाम राजेश्वर प्रसाद
था। प्राथमिक शिक्षा अपने पैतृक गांव हंगौली में माता श्रीमती इन्दी देवी जी की देख-रेख
में पूरी की। दसवीं तक की शिक्षा पिता नन्दराम जी की देख-रेख में बी.डी. हाई स्कूल
अम्बाला छावनी में पूरी की। अचानक पढ़ाई में विघ्र पड़ा, रोजगार की चिन्ता पहले नंगल डैम फिर
वापिस अम्बाला तत्पश्चात दिल्ली ले गई। 1966 में दिल्ली कॉलेज इवनिंग,
जिसे जाकिर हुसैन कॉलेज
कहते हैं से उर्दू - फारसी विषयों के साथ बी.ए. किया। 1971 में मेरठ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.
किया। कुछ महीने डी.ए.वी. कॉलेज नकोदर पंजाब में प्राध्यापक रहे। 1972 में शाहाबाद मारकण्डा नैशनल कॉलेज हरियाणा में अंग्रेजी
विषय के प्राध्यापक हुए।18 दिसम्बर 1997 को वे हमारे बीच नहीं रहे। आर.पी. शोख उर्दू शायरी के
मूल सिद्धांतो और तकनीकी बारीकियों के मर्मज्ञ
थे जिसके कारण अक्सर आसपास व दूर-दराज के क्षेत्रों से कवि और शायर उनके पास आकर रचनाओं की नोक-कलम दुरुस्त करवाते थे। प्रो. शोख
दिल्ली दूरदर्शन के बज्म नामक कार्यक्रम में
अक्सर अपना कलाम पेश करते थे। शाहाबाद में दिवंगत शोख साहिब के प्रयासों से अदबी महफिल
नाम से एक साहित्यक मंच का गठन हुआ। ण्ह मंच आज भी उनके नक़्शे कदम पर चलने का प्रयासरत
हे और साहित्यक गतिविधियों को जारी रखे है।
शायर शोख के प्रख्पात शेर र मुलाहिज़ा फरमाएं-
इस लूटमार में मेरी आंखे तो छोड़ दो ।
इतना तो हो कि मुझको अंधेरा दिखाई दे।।
मैं वो बूंद जिसके खूं के बड़े रेगजार प्यासे।
ऐ नदी के बहते पानी मुझे अपने साथ रखना।।
अब हो टूटा हुआ इक गोश्त का टुकड़ा ठहरा ।
जब धडक़ता था तो उस वक्त मेरा दिल तू था।।
जिस्म का घर ही गिरा है तो न जां ठहरेगा।
याद आई थी किसी की तो कहां ठहरेगा।।
उसका बरसों बाद तन्हा जाने मैं कैसा लगा।
मुझको तो वो अजनबी के साथ थी अच्छा लगा।।
खिंचने लगे हैं चारों तरफ काले हाशिये ।
उसको मिलेगी जब ये खबर छप चुकूंगा मैं।।
कर सकेंगे न $जमाने में वफा की तारीफ।
तेरी खातिर तेरी ख़ूबी से मुकट जांएगे
ये पांच साल तक अब मांगने न निकलेंगे।
बहुत अमीर हैं इस दौर के फकीर नए।।
ये जिन के मुंह लगा है अब आदमी का लहू
यहां वो लोग थे, करते थे जो ख़ुदा की तलाश।।
बेगुनाह भी था, निहत्ता भी था मैं ऐ कातिल।
$कत्ल करने के भी मय्यार तो होते होंगे।।
रोजी रोटी के सवालों में घिरा रहता हूं।
दिल मेंं जो शख़्स है अरमां में नहीं रह पाता।।
शहरों में नाचता हुआ जंगल है और मैं।
सदियों के बाद भी वही कातिल है और मैं।।
ये दिल रो-रो मुहब्बत मांगता था।
ये बच्चा दूध बिन ही सो गया है।।
उससे कहिय्यो कि है गिरती हुई सेहत लेकिन।
अभी रूक-रूक के सही नब्ज-ए-वफा चलती है।।
सुरेंद्र पाल वधावन 153/1 हूडा सेक्टर शाहाबाद मारकंडा
विश्वविख्यात सितार
वादक भारत रत्न पंडित रविशंकर जी का निधन
कुरुक्षेत्र/पवन सोंटी
यूएसए
के सेण्टडियागो में विश्वविख्यात सितार वादक भारत रत्न पंडित रविशंकर जी का 92 वर्ष
की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने प्रात: 6 बजे अन्तिम सांस ली । उनके देहावसान के
साथ ही संगीत के एक युग का अंत हो गया । कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संगीत एवं नृत्य
विभाग की अध्यक्षा प्रोफेसर शकुन्तला नागर ने
इस दुखद अवसर पर आयोजित शोक सभा मे
भारत रत्न पंडित रविशंकर के निधन को
भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया । भारत रत्न पंडित रविशंकर ने इस संगीत को पाश्चात्य जगत में
ही नही बल्कि विश्व भर में नयी पहचान दी । प्रोफेसर नागर ने कहा कि भारत रत्न पंडित रविशंकर हमारी यादों में
जीवित रहेंगे । प्रो. नागर ने भारत रत्न पंडित
रविशंकर के प्रति अपनी श्रद्वांजलि कुछ यॅूं
व्यक्त की।
‘ सूरज हू जिन्दगी की रमक़ छोड़ जाऊॅंगा,
मैं डूब भी गया तो शफक़़ छोड़ जाऊॅ
गा,,
शोक सभा में प्रोफेसर सुदेश गोपाल श्रीखण्डे, प्रो.सन्तोष चौहान , प्रो. सुचिस्मिता शर्मा, प्रो. मीरा गौतम, प्रो.एस.एन.शर्मा एवं स्टाफ के अन्य सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित
थे ।
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