Friday, February 22, 2013
स्त्री-पुरुष संबंधों पर अनूप लाठर का विशेष आलेख .........
स्त्री-पुरुष संबंध, कहां उचित और कहां अनुचित?
अनूप लाठर
निदेशक, युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग,
कुरुक्षेत्र विश्वविधालय
पिछले काफी समय से एक बहस जन्म ले रही है कि प्रेम विवाह कहां उचित हैं और कहां अनुचित? यह बहस खास तौर पर हरियाणा में ज्यादा बलवती होती जा रही है। विशेष तौर पर इसमें अनभिज्ञता वश खापों को भी घसीटने का प्रयास यदा कदा किया जाता रहा है। इस बहस में पडऩे से पहले मेरे ख्याल से यह जानना अति आवश्यक है कि समाज मेंं स्त्री पुरुष के संबंध किस रूप में और कहां तक उचित हैं। विभिन्न संबंधों व परिस्थितियों के अनुरूप इनकी परिभाषा बदलती रहती है।
माता व बहन आदि के सम्मानीय संबंधों को एक तरफ रख कर अगर हम-उम्र के मामलों में इस पर विवेचन किया जाए तो स्त्री पुरुष का वस्तविक सम्बंध संभोग का संबंध है। वो संबंध कब जायज है और कब नाजायज है, इसके बारे में में पूरे विश्व में भिन्न जातियां भिन्न भिन्न समय पर भिन्न भिन्न काल में नियम बनाती हैं और वही नियम समाज कबूल करता है। एक समय था जब एक स्त्री के साथ 5 पुरुषों का संभोग जायज था जैसे महाभारत में। एक समय वो भी था जब पुत्र की उत्पत्ती नहीं हुई तो उधार में सम्भोग कर लेना जायज था। एक समय हमारे समाज ऐसा भी था कि चार या दो भाईयों द्वारा एक स्त्री को पत्नी मान कर उससे उनका सम्भोग जायज था। पती के मरने के बाद पती के छोटे भाई के साथ संभोग लत्ता (चादर उढाने की परम्परा) उठाने के बाद जायज माना जाता है। पत्नी के मरने के बाद पत्नी की छोटी बहन से शादी करके संभोग भी जायज था, लेकिन पूरे विश्व में दो संभोग के नियम हैं। एक सम्भोग परिवार के सबसे नजदीक संबंध से और एक संभोग परिवार के सबसे दूर के संबंध से जितने भी दूर जितने संबंध हो सकते हैं उनसे भी परे। सबसे नजदीक का संबंध का उदाहरण है इजिपशियन फैरोहाज़ में जहां एक स्त्री पुरुष दोनों सगे बहन भाई के बीच सम्भोग होता था जो जायज था। उनके सम्भोग से उत्पन्न बेटा और बेटी के बीच भी सम्भोग के संबंध जायज थे। इन संबंधों से उत्पन्न संतानों को वो अपने परिवार का विशुद्ध रक्त मानते थे। दूसरी ओर ब्रिटेन में आज से सिर्फ 200 साल पहले एक आदमी की पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो और वह उसकी बहन से शादी करना चाहता है तो सारे समाज में शोर शराबा मच जाता है कि यह गलत है जबकि दूसरे समाज में इसको जायज माना जाता है।
हर युग के अपने अनुसार अपने अपने नियम होते हैं। हमारे यहां जो समस्या है वह यह है कि अपना गोत्र, गांव का गोत्र, मां का गोत्र, व सीमा लगते पास के गांव (गवांड) में शादि वर्जित मानी जाती है। इसके साथ ही गांव में अगर दूसरे किसी गोत्र से आपसी भाईचारा है तो वहां पर भी शादी वर्जित मानी जाती है। इसके पीछे यह भी तर्क माना जाता है कि जितने दूर के रिश्ते हों उतना अगर उनका मिलन होगा तो एक अच्छी संतान होगी। अच्छी संतान उत्पत्ती के लिये हमारे समाज के एक भाग में एक प्रथा यह भी थी कि एक व्यक्ति जो शक्ति शाली होता था उसको सांड की तरह गांव में छोड़ दिया जाता था। वह जिस भी घर में जाता था स्त्री से सम्भोग कर सकता था। उसके घर में होने की निशानी होती थी उसके जूते घर से बाहर उतरे होना। यह सब अच्छी संतान प्राप्ति के लिये उचित माना जाता था। जब उस व्यक्ति की शक्ति कमजोर हो जाती थी तो उसको जमीन में जिंदा गाड दिया जाता था। बाद में ऐसा समय आया कि ऐसा व्यक्ति शक्ति कमजोर होने पर मौत के डर से भाग जाया करता था। नतीजन यह परम्परा धीरे धीरे खत्म हो गई।
हमारे यहां दूर के रिश्ते में शादी करना आरम्भ क्यों हुआ इसके बारे में भी तथ्य हैं। 1881 में एक अंग्रेज लेखक डेंजियल इबिटसन ने अपने शोध दी पंजाब कास्टस में लिखा भी है कि आर्यों में शादियां स्त्री के अपहरण और चोरी व कब्जे आदि से होती थी। जब हमारा समाज पशुपालन में खानाबदोश की तरह था और पशु चराते आगे से आगे निकलते जाते थे, तब तक शादियों का यही तरीका चलता रहा। जब जीवन शैली में परिवर्तन आया और चलायमान की बजाय हमारे पूर्वजों ने स्थाई बस्तियां बना कर रहना शुरु किया तो शादियों के नियमों में भी परिवर्तन आया। नियम बदलने लगे और सामाजिक गठबंधन बनने लगे। इस दौर में जो नियम बने उनमें अपने गौत्र तथा गांव आदि को शादि के लिये वर्जित किया गया। फिर आस पास के गांवों में शादि वर्जित की गई और फिर गोत्र के भाई चारे में शादियां सामाजिक व्यवस्था के अनुसार वर्जित की गई।
ऐसा क्यों हुआ, इसके पीछे भी कुछ कारण रहे हैं। किसी भी सामाजिक नियम के तय होने के पीछे कुछ कारण होते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह नियम बना की अपने गोत्र व मां के गोत्र की लडक़ी नहीं उठाई जाऐगी न ही गोत्र के भाईचारे की बेटी उठाई जाऐगी क्योंकि उससे आपसी सुरक्षा चक्र टूट जाऐगा। धीरे धीरे करते करते हुए यही नियम तय हो गए। आज विवाह के जो रीतिरिवाज हैं उनके बनने के पीछे ऐसे ही कुछ कारण हैं।
अतीत में जो घटनाऐं हुई होती हैं वह नियमों को निर्धारित करने की जमीन तय करती हैं। आज समाज में घुड़ चढ़ी की प्रथा है वह इस का प्रमाण है कि लडक़ी उठाने के लिये बाहुबल की जरुरत होती थी। उसके बाद परम्परा अनुसार बारात दोपहर बाद या शाम को पहुंचती थी। इसके पीछे कारण था कि गांव के बाहर जाकर सेंध मारने के लिये गांव की सीमा से बाहर बैठ जाओं और ज्यों ही अंधेरा पड़े तो गांव में घुस जाओ। उसके बाद ज्यों ही घर में दुल्हा या बाराती आते हैं तो उनको रोकने की रस्म बार द्वारी है। यह भी लुटेरों को रोकने की प्रथा का प्रचल्लित रूपांतरण है। उसके बाद फेरे देर रात होने के पीछे भी यही कारण था कि चोरी से कार्य होता था। उसके बाद वधु पक्ष की महिलाओं द्वारा सीठणियां देने का प्रचल्लन भी यही साबित करता है कि लडक़ी उठाने वालों को विरोध स्वरूप गालियां देकर अपने गुस्से का इजहार करना। उसके बाद लड़कियों का विदाई के समय रोना भी इसी का प्रतीक है कि उस वक्त ल_ की लड़ाई में उसके परिजनों की मौतें होती थी या चोटें लगती थी। वह उन्हीं के लिये रोती थी। उसके बाद की प्रथा यह थी कि लडक़ी का पिता अपनी लडक़ी की ससुराल नहीं जाता था। इसके पीछे भी यही कारण था कि वर पक्ष उसके दुश्मन होते थे। लडक़ा शादी के लम्बे समय बाद जब अपनी ससुराल जाता था तो पूछ कर जाता था, इसके पीछे भी यही कारण था कि यह देख लिया जाऐ कि क्या वधु पक्ष का गुस्सा शांत हो गया है? गुस्से का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कन्या पक्ष से जुड़े जितने भी संबंध हैं सभी गालियों में प्रयोग होते हैं जैसे साला, ससुरा, साली आदि।
अगर सामाजिक संबंधों की परम्परा का शास्त्रीय पक्ष देखा जाए तो मानव के संबंधों के आधार पर नियम बांधे जाते हैं। गुरु शिष्य का संबंध, वैवाहिक संबंध आदि। विवाहों को शास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार से बांटा गया है। ब्राह्मण विवाह, गांधर्व विवाह, प्रजापत विवाह, राक्षस विवाह, पैशाच विवाह आदि। ब्राहमण विवाह वह है जैसा आम तौर पर करते हैं। प्रेम विवाह को गांधर्व विवाह कहते हैं। राक्षसी विवाह वह है जब युद्ध के द्वारा कन्या का वर्ण किया जाऐ। इस प्रकार संबंधों के लिये अलग अलग नियम तय होते हैं और हमारे समाज में खाप पंचायतों ने इन नियमों को लागू करने में अहम भूमिका निभाई है। मैं इनका समर्थन भी करता हूँ, लेकिन खाप द्वारा कत्ल का कभी समर्थन नहीं करता। खापों के सराहनीय फैसलों का सदा सम्मान होता है। खापों ने कभी अंतर्जातीय विवाहों का विरोध नहीं किया और न ही अंतर धार्मिक विवाहों का विरोध किया। जो प्रेमी जोड़ों को मारने के फरमान होते हैं वह उनके गावों के लोगों के फैसले होते हैं, खापें कभी तालीबानी नहीं होती। खाप का फैसला तो होता ही नहीं, खाप तो समाज द्वारा लिया गया फैसला सुनाती है। समस्याओं को सुन कर विचार करके बहुमत के विचार व सोच के फैसले की खाप उद्घोषणा करती है। खाप की कोई सरंचना नहीं होती बल्कि खाप का स्वरूप परिस्थितियों से बनता है। जैसी समस्या होती है वैसी ही खाप बनती है जैसे सर्व खाप पंचायत आदि।
खाप का महत्व कब बना इसके पीछे है पंचायतों का गठन। जब संविधान लागू हुआ उससे पहले पंचायतों को कोई संवैधानिक अधिकार नहीं थे। वह गांव के समाज के लिये जो भी उचित या उत्तम कार्य होता था वह चाहे सामाजिक हो या आर्थिक अथवा धार्मिक या कोई आपदा हो उन सभी चीजों के लिये पंचायत यानि के गांव के बुजुर्गों की एक समिति गांव की उस समस्या को लेकर अपनी सोच और समझदारी से सुलझाती थी। उसके पश्चात जब संविधान लागु हुआ तो पंचायतों को भी संवैधानिक अधिकार प्रदान किये गए और ग्रामीण विकास या उत्थान के लिये सरकार की ओर से उनको धन उपलब्ध करवाया जाने लगा। धीरे धीरे पंचायतें सिर्फ सरकारी अनुदान व सरकारी तंत्र तक ही सिमट कर रह गई और सामजिक दायित्व उनसे पीछे छूट गया। इन परिस्थितियों में धीरे धीरे खाप पंचायतों का महत्व सामाजिक दायरों को लेकर महत्वपूर्ण होता चला गया। सिर्फ पंचायत ही नहीं बल्कि सराकरी स्तर पर भी सामाजिक समस्याओं के दायित्व को संभालने में जिम्मेवारी नहीं निभाई गई। पिछले कुछ दशक से आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक परिवर्तनों के कारण समाज व समाज की सोच में भी परिवर्तन आए हैं। यह दौर सामाजिक सोच के संक्रमण का दौर है। इसलिये सामाजिक व परिवारिक समस्याऐं दिन पर दिन अलग अलग तरीके से प्रकट हो रही हैं। अगर इन्हीं सामाजिक समस्याओं को सरकार अपने दायरे में समेट ले तो शायद खापों के हस्तक्षेप के बिना भी इसका हल संभव है। दूसरे हमारी एक सोच ऐसी बन गई है कि इस प्रकार के विषयों पर आम चर्चा नहीं होती जिस कारण यह समस्याऐं और विकराल होती जाती हैं। सराकरी व संवैधानिक स्तर की संस्थओं को मिल कर इन गैर संवैधानिक संस्थाओं द्वारा उजागर की गई समस्याओं को गंभीर चिंतन एवं चर्चा के साथ समझ लेना बहुत जरूरी है। जो आर्थिक व राजनैतिक परिवर्तन आया है उसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन आना भी जरूरी है। ऐसे में जो सामाजिक व परिवारिक संबंधों में परिवर्तन आने की अपेक्षा की जाती है उसके उपर चिंतन की गम्भीर आवश्यक्ता है। सामाजिक परिवर्तन को एक दिन में ही नहीं अपनाया जा सकता और न ही उसे तुरंत कानूनी दायरे में लाया जा सकता है। आज का युवा इस मीडिया ऐक्सपोजर और भूमंडलीकरण के दौर में भिन्न भिन्न सोच और रहन सहन व खान पान से परीचित हो रहा है। उसकी सोच में परिवर्तन बड़ी उम्र के लोगों से तेजी के साथ आने की ज्यादा संभावना है। इसी लिये समस्या और विकराल हो रही है।
अब बच्चियों में यौन शोषण के मामलों पर अगर गौर करें तो सामने आए मामलों में से 80 फिसदी ऐसे मामले होते हैं जिनमें यौन शोषण में उनके परिजनों या बहुत ही नजदीकियों को संलिप्त पाया जाता है। ऐसे में इस तरीके का मामला अगर सामने आता भी है तो उसे परिवारिक स्तर पर दबाने का प्रयास किया जाता है। उसके बारे में कहीं बाहर चर्चा तक नहीं होती। इन मुद्दों को उजागर करने की अपेक्षा ढंकने की कोशिश की जाती है। ऐसे में कई बार तो दोषी व्यक्ति वर्षों तक भी शोषण करता रहता है। बच्चियां इन मामलों में मुंह खोलने की हिम्मत ही नहीं कर पाती। यह सब तब है जबकि परिवार में और हमारे समाज में इस तरह के संबंध सिर्फ न ही प्रतिबंधित हैं, बल्कि वो प्रतिबंध पाप की शैली में माने जाते हैं।
इसके पीछे कारण यह है कि अनुवांसिकता से हम पशु हैं, लेकिन सामाजिक रूप से हम पशु नहीं हैं। पशुओं की कोई रिश्तेदारी नहीं होती और न ही उनके मसले होते हैं तथा न ही वो घरों में रहते हैं । इन्सान सदा ही आकाश और आकाश में स्थित विभिन्न शक्तियों व खगोलिय पिण्डों तथा घटनाओं से सदा ही सम्मोहित रहा है। इसी लिये आकाश में उडान भरने वाले परींदों से भी इन्सान ने प्रेरणा ली। उनसे इन प्राणियों से जहां हौंसले का पाठ सीखा वहीं घरौंदे बनाने की भी सीख ली। उनसे परिवारवाद का पाठ पढ़ा कि किस प्रकार एक पक्षी अण्डे देता है और फिर उसका जोड़ीदार उसके साथ मिल कर अण्डों से बच्चे निकालते हैं और सामूहिक रूप से उन बच्चों का पालन पोषण करते हैं। पक्षी घर बनाते हैं लेकिन पशु घर नहीं बनाते। पक्षी जोड़ों में रहते हैं जबकि पशु जोड़ों में नहीं रहते। हमने पक्षियों से बहुत कुछ सीखा है, लेकिन कहीं न कहीं कभी कभी हमारे उपर पशुता हावी हो जाती है। यह अनुवांशिक कारणों से ही है। तभी तो कहते हैं कि जानवर का जानवर रहा। पक्षी सीमाऐं नहीं बनाते जबकि पशु सीमाऐं तय करते हैं और अपने क्षेत्रों को चिन्हित करते हैं। और जब हमारी सीमाओं की पिपासा बढ़ती है तो हम पशुता की ओर हावी होते हैं। इसी यात्रा में हमने जब भगवान बनाऐ तो उनको चिन्ह दिये। जो भगवान बल से जुड़े हैं उनको हमने पशुओं के चिन्ह दिये। शक्ति की प्रतीक दुर्गा को शेर दिया। जब सरस्वती शिक्षा की देवी को चिन्ह दिया तो हंस दिया। गणेश को हमने चूहा दिया जो सीमा की पिपासा को दर्शाता है, लेकिन कार्तिके जो इमानदारी से निकल पड़ा उसको सबसे सुंदर पक्षी मोर उसकी सवारी के रूप में बनाया। समाज हर समय प्रकृति के अनुसार अपने मुताबिक नियम बनाता रहा है। नियम व परिवर्तन की आवश्यकता भी है। इसका एक फायदा भी है कि एक गांव के गांव आपस में दायरे बनाऐ रखें। नहीं तो गांवों में मर्यादाऐं समाप्त हो जाऐंगी।
Thursday, February 14, 2013
patrkar pawan ashri kee patni kee sadak hadse me dardnaak moot......
सडक़ हादसे में ब्यूरोचीफ पवन आश्री की पत्नी की मौत
कुरुक्षेत्र, पवन सोंटी
सडक़ हादसे में बुधवार के दिन ब्यूरोचीफ हरिभूमि पवन
आश्री की पत्नी ममता आश्री (39) की
दर्दनाक मौत हो गई और हादसे में पवन आश्री गंभीर रूप से घायल हो गए। बुधवार दोपहर
के करीब 1 बजे पवन
आश्री व उनकी पत्नी अपनी स्कूटी पर सवार होकर पुलिस लाइन कुुरुक्षेत्र में
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए जा रहे थे। पुलिस लाइन के सामने तेजगति से आ रहे
एक ट्रक चालक ने पीछे से उनकी स्कूटी को टक्कर दे मारी। ट्रक चालक की लापरवाही के
कारण स्कूटी में टक्कर लगने के बाद पवन आश्री दूसरी ओर जा गिरे और उनकी पत्नी सडक़
पर जा गिरी। ट्रक का पिछला पहिया पवन आश्री की पत्नी ममता आश्री के ऊपर से होकर
गुजर गया, जिससे
उनकी दर्दनाक मौत हो गई।
पुलिस ने ट्रक को कब्जे में लेकर कार्यवाही शुरू कर दी
है। ममता आश्री की मौत की खबर जैसे ही नगरवासियों को लगी तो लोगों की भीड़ सिविल
अस्पताल पोस्टमार्टम रूम के बाहर लग गई। सूचना मिलते ही उपायुक्त मनदीप ङ्क्षसह
बराड़, कुरुक्षेत्र
विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ.सुरेंद्र सिंह देशवाल, एसडीएम अशोक बांसल, पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष सुभाष सुधा, हरियाणा पत्रकार कल्याण मंच के
संरक्षक आरडी गोयल व विनोद जिंदल,
कुवि कार्मस विभाग के चयेरमैन डॉ.हवा सिंह, धरोहर क्यूरेटर डॉ.महासिंह पूनिया, एपीआरओ नरेंद्र सिंह, बाबूराम तुषार, राकेश शर्मा, राकेश नरूला, कुवि जनसंपर्क अधिकारी दविंदर
सचदेवा, पुलिस
प्रवक्ता सुरेश कुमार, डीआईपीआरओ
रणधीर सिंह, पार्षद
नरेंद्र निंदी, पार्षद
गौरव शर्मा, पार्षद, सुरेंद्र छिंदा, जसबीर दुग्गल, पवन सौंटी, शैलेंद्र चौधरी, नरेश वधवा, जितेंद्र चुघ गोल्डी, विनोद शर्मा सहित सामाजिक व
धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने मौके पर पहुंचकर शोक व्यक्त किया और ढांढस
बंधाया।
ममता आश्री की दर्दनाक मौत अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई
है। उनकी मौत ने शहरवासियों की जड़ हो चुकी संवेदनाओं के भाव को सामने लाकर खड़ा
कर दिया है। ममता आश्री सडक़ के बीचोंबीच खून से लथपथ पड़ी हुई थी और राहगीर उन्हें
देखकर आगे निकल रहे थे। किसी भी सभ्य समाज के प्राणी ने रूककर उन्हें अस्पताल तक
पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई। इतना ही नहीं उनके पति पवन आश्री व उनके पुत्र
टिंवक्ल बिलखते हुए राहगीरों से हाथ जोडक़र रूकने की फरियाद कर रहे थे परंतु सभ्य
समाज के किसी भी व्यक्ति का इस मंजर को दिल नहीं पसीजा। ममता आश्री जिंदगी और मौत
के बीच सडक़ पर पड़ी हुई तड़प रही थी,
उसकी खुली आंखें लोगों के इस संवदेनहीन व्यवहार को देख रही
थी। उनके पति पत्रकार पवन आश्री ने रोते हुए बताया कि यदि कोई व्यक्ति समय पर उनकी
पत्नी को अस्पताल पहुंचा देता तो शायद आज की उनकी पत्नी उनके साथ होती।
Monday, February 4, 2013
एक साथी के फेसबुक से ....महात्मा गान्धी- कुछ अनकहे कटु तथ्य
महात्मा गान्धी- कुछ अनकहे कटु तथ्य
by डॉ. जयप्रकाश गुप्त on Friday, October 1, 2010 at 5:58pm ·
१.
अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
२. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
३. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
४.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दु मारे गए व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
५.१९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
६.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
७.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
८. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
८. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (१९३१)ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
९. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
१०. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
११. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
१२. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
१३. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनातह् मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
१४. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
१५. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
२ अक्तूबर (गान्धी जयन्ती) पर यह विषय विशेष रूप से विचारणीय है, जिससे कि हम भारत के भविष्य का मार्ग निर्धारित कर सकें।
कुछ और प्रश्न
-अपने इस बाप के बचपन के चित्र नदारद हैं क्यों? केवल एक १० वर्ष के लगभग की आयु का चित्र है।
--इस बापू के अफ़्रीका जाने के पूर्व के चित्र कहाँ है? कहीं प्रदर्शनी में भी नहीं दीखते!
---यह न कह देना कि बापू निर्धन परिवार से था चित्र कहाँ से बनवाता? स्मरण रहे ये विदेश गया था पढ़ने को।
----गान्धी की अपनी आत्मकथा में इस उल्लेख का क्या अर्थ है- "करमचन्द के देहावसान के पश्चात् जब माँ पुतलीबाई घर का दरवाजा पीट रही थी तो मैंने यह कहकर दरवाजा नहीं खोला कि मैं इस अवस्था में नहीं कि बाहर आऊँ।"
-----क्या मोहनदास का बेटा इसलिए मुसलमान नहीं हो गया था कि उसे पता चल गया था कि वह एक मुसलमान जमालुद्दीन शैख का बेटा है......?
------पाकिस्तान बनने पर वहाँ मन्दिरों के टूटने पर मोहनदास ने यह क्यों कहा कि यहाँ कोई मस्जिद नहीं टूटनी चाहिए? पाकिस्तान से हिन्दुओं के कट कर आता देख बापू ने कहा यहाँ एक भी मुस्लिम नहीं कटना चाहिए।
इस बापू के कुकृत्यों की सूची लम्बी है। अभी इतना ही।वन्देमातरम्!
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
२. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
३. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
४.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दु मारे गए व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
५.१९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
६.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
७.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
८. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
८. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (१९३१)ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
९. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
१०. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
११. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
१२. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
१३. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनातह् मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
१४. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
१५. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
२ अक्तूबर (गान्धी जयन्ती) पर यह विषय विशेष रूप से विचारणीय है, जिससे कि हम भारत के भविष्य का मार्ग निर्धारित कर सकें।
कुछ और प्रश्न
-अपने इस बाप के बचपन के चित्र नदारद हैं क्यों? केवल एक १० वर्ष के लगभग की आयु का चित्र है।
--इस बापू के अफ़्रीका जाने के पूर्व के चित्र कहाँ है? कहीं प्रदर्शनी में भी नहीं दीखते!
---यह न कह देना कि बापू निर्धन परिवार से था चित्र कहाँ से बनवाता? स्मरण रहे ये विदेश गया था पढ़ने को।
----गान्धी की अपनी आत्मकथा में इस उल्लेख का क्या अर्थ है- "करमचन्द के देहावसान के पश्चात् जब माँ पुतलीबाई घर का दरवाजा पीट रही थी तो मैंने यह कहकर दरवाजा नहीं खोला कि मैं इस अवस्था में नहीं कि बाहर आऊँ।"
-----क्या मोहनदास का बेटा इसलिए मुसलमान नहीं हो गया था कि उसे पता चल गया था कि वह एक मुसलमान जमालुद्दीन शैख का बेटा है......?
------पाकिस्तान बनने पर वहाँ मन्दिरों के टूटने पर मोहनदास ने यह क्यों कहा कि यहाँ कोई मस्जिद नहीं टूटनी चाहिए? पाकिस्तान से हिन्दुओं के कट कर आता देख बापू ने कहा यहाँ एक भी मुस्लिम नहीं कटना चाहिए।
इस बापू के कुकृत्यों की सूची लम्बी है। अभी इतना ही।वन्देमातरम्!
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
- 11 people like this.
- Rudra Sekhar He is called the Baap of the Congresis coz even Nehrus are too scared to ask who their Father was?? Or were they products of an interracial Orgy...Lol!
- Rajay Agarwal India needs a lot of research work in every sector like history, freedom struggle, economy, the uncaptured opportunities and their cost, Nehru policies, Corruption in High places etc.
- डा. अनिल पांडेय Gupt ji aapne to baha di gandhi ki aandhi
i m agree with u
aaj tak Late Nathu Ramt k court me diye gaye bayan ko sarvjanik kyun nahi kiya - Jogendra Singh Siwayach ► जय प्रकाश गुप्त जी ... आपके आख्यान ने आँखों में नमी ला दी ... अब जा चुके गाँधी को यह भी तो नहीं कह सकते कि शर्म करो ... और उस शर्म की विरासत को अब कोई उठाने वाला भी नहीं ... सो बचपन से अब तक इसे बापू कहने की शर्मिंदगी तो हमीं को ही उठानी होगी ...
- Jogendra Singh Siwayach ► अनिल , किस तरह उस भूल का सुधार करें जो खुद हमने करी भी नहीं है ... अब नोट पर से एक बिना बालों की शक्ल हटाना न तो तुम्हारे बस का है और न ही मेरे ... फिर और कौनसा तरीका है ... तुम ही बताओ दोस्त ... :?:
- Jogendra Singh Siwayach ► जयप्रकाश गुप्त जी , क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आपके नाम की ही तरह से गुप्त नाथूराम के बयान की कॉपी भी मिल जाये ... ???
- Jogendra Singh Siwayach लेकिन दोस्त पहले बयान देख लिया जाये तो बेहतर ... गाँधी पसंद नहीं है यह अलग बात है मगर एक के बदले दूसरे को विपरीत बताना वो भी सिर्फ इसलिए कि दोनों शत्रुओं की तरह से इतिहास में दर्ज हैं ... ? अनिल ज़रा सा ईमानदार भी होना चाहिए हमें ...
- Patanjali Mishra क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।...See More - Sucheta Singhal डॉ. गुप्त क्या आपका यह नोट अंग्रेजी मैं भी मिल सकेगा? मुझे कुछ मित्रो ने आग्रह किया है. नयी पीढ़ी तथा औरों तक पहुँचने के लिए हमें जो तरीका हो सके अपनाना होगा.
- Sushma K K Agrawal गुप्त जी, गाँधी ने उस समय कैंसर के जो सेल छोड़ दिए थे उसने धीरे-धीरे उग्र रूप धारण कर लिया है और जो एक दिन हमारे समूचे देश को निगल जायेगा. उस की एक गलती का खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं. आज लोग गाँधी को नहीं बल्कि गोडसे को इज्जत की नजरों से देखते हैं . गाँधी को पकिस्तान का और गोडसे को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाना चाहिए.गुप्त जी आपको बधाई कि आज आप ने गाँधी का कच्चा चिटठा बता कर सबकी आँखे खोल दीं.
- Sucheta Singhal Islam received a new life in India because angrez found another 'useful idiot' in Gandhi.
- Sucheta Singhal From a chat with a friend -
1. 'gandhi was not an evil person like Nehru, but he was prisoner of his own naked ambition...and had larger than life ego that he kept hidden under his saintly image
2. there is no doubt that he was propped up by the Bri...See More - Nitin Kishore Johari कृपया ध्यान दे !
उपर लिखी हुयी सारी बातें अगर सही भी है तो आप सभी ज्ञानी लोग जो कमेंट्स कर के लिखने वाले का उत्साह बड़ा रहे हैं वो बहूत बड़ी गलती कर रहे है !
अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड - ऐसा नहीं की गाँधी जी जनरल डायर के दोस्त थे ! वो नह...See More - Sucheta Singhal नितिन please grow up.. you need to do some serious reading of your own history for a change.
So far we Hindus have only been reading what 'they' want us to read. I am not going to write anything beyond this to you. - Nitin Kishore Johari sucheta ji main bhi ye he bol raha hoon please grow up..... in sab bakwaso se ab kya ho sakta hai ..... har desh main logo se galtiya hoti hai ....koi bhi desh perfact nahi hota ... bana padta hai ... agar mahatma gandhi ne ye sab kiya hai .... to kuch...See More
- Sucheta Singhal If you are only told the fraction of the truth and not told the whole truth .. you can never judge a case justly. Can you ?
... and that is only my point. - Nitin Kishore Johari same hear sucheta ji .... if you only told the fraction of the truth and not told the whole truth about gandhi .... you never ecer judge the great man Mohan Das Karamchand Ghandi ......
- Manoj Sharma @Nitin Johari आपके नाम से वह गौरव झलकता है कि आप पारखी हैं. सच और झूठ को परखने की काबिलियत पैदा करो मेरे भाई. सच वह नहीं जो आपको आज तक पढ़ाया गया है, सच वह है हो अंग्रेजों के जमाने से आज तक बड़ी कुटिलता से छुपाया गया है. आज भी आंध्रप्रदेश और कई अन्य स्थानों पर पाठ्यपुस्तकों में यह पढाया जा रहा है कि भगतसिंह, गुरुगोविंद सिंह, शिवाजी जैसे देशभक्त आतंकवादी थे. नई पीढ़ी को गुमराह करने की साजिश अभी जारी है.
- Nitin Kishore Johari @Manoj Sharma Ji ... pahle to main ye bata do ... mere naam main Johari lag jane se main parkhi nahi hoon ek aam insaan hoon ... aur U.P. ka rahane wala hoon ... bachpan ki padai main christian school main ki ... fir aage ki padai .. Aligarh Muslim Un...See More
- Manoj Sharma @nitin johari वहाँ का शिक्षा विभाग अनपढ़ नहीं है, कुछ तो लोग आप जैसे पढ़े-लिखे हैं, जिन्होंने मैकाले के स्कूलों में शिक्षा पायी है, शेष सब जानकार भी एक साजिश के तहत ऐसा कर रहे हैं. देश में एक 'शिक्षा बचाओ समिति' बनी हुई है. उसने पाठ्य पुस्तकों से इन आपत...See More
- Nitin Kishore Johari @ manoj sharma ji ..... bade sharam ki baat hai ... ki aajadi ke 64 saal baad bhi ... Andhra Pradesh ki jannta itni jagruk nahi ho paye... jo un pustako ko khatam karwa de .... Lakin main aap se ek baat jaana chahata hoon ... agar wahan ki pustako main...See More
- Manoj Sharma @Nitin Johari आंध्रप्रदेश की जनता में भी तो आप और हम जैसे ही लोग हैं. स्कूल में पढ़ने वाले अबोध बच्चों को सच्चाई क्या मालूम, कुछ भी पढ़वा दो. वैसे, इसके पीछे गाँधी का ही हाथ है. गाँधी के सेकुलर चेले गाँधी के विकृत दर्शन से ही प्रेरणा लेते हैं. गाँधी स्वय...See More
- Nitin Kishore Johari @Manoj Sharma Ji..... Aap ki is baat ka mere pass bahoot accha answer .... kiu ki main pahle se jaan ta tha ki aap ye he jawab doge...lakin ... apna answer dene se pahle .... mere kuch sawal hai aap se .... 1. Aap ki nazar main ... Hindustan ko Aazad k...See More
- Manoj Sharma Nitin Johari मेरे भाई! इतने नाराज क्यों होते हो. मैं भी पहले आपकी तरह ही सोचता था. ये सारी जानकारी लेकर मैं पैदा नहीं हुआ हूँ, मैंने भी वही पुस्तकें पढ़ीं, जो सबने पढ़ीं. पहले मुझे भी गाँधी-नेहरु को बुरा कहने वालों पर गुस्सा आता था. गाँधी मेरे लिए बापू थ...See More
- Nitin Kishore Johari Manoj Sharma ji .... Main Naraz nahi huaa hoon ... ho sakta hai mere likh ne ki tone thodi sahee na ho ... to us k liye maaf kar na .... Ye Ghandi Ji ke bare main jo kuch bhi likha ... ye main pahle bhi pad chuka hoon ... aur main ne bhi kafi research ...See More
- Nitin Kishore Johari haan ji manoj ji ...... i m back .....
aap k diye huyee sare he answer meri nazar main sab galat hai ... hindustan ko aazadi ... sirf hindustan ki janta ne dilayee thi ....na Ghandhi ji ne, na bhagat singh ji ne aur na he ... Bose ji ne .... aur aaj h...See More - Nitin Kishore Johari to fir unhone ..... musalmano ko hindustan ... main he rahne k... uppchar diya ... accha kaam kar te kar wo ... mahan insaan ek bura kaam kar gaya ... aur is tarha ki raajniti aaj bhi hindustan main hai ..... har CM apni kursi bachane k liye ..... anpe...See More
- Nitin Kishore Johari Aur sir galtiya har insaan se hoti .... agar insaan galtiya nahi kar ta to fir wo bhagwaan hota ...... to kuch galtiya ... Ghandhi ji se bhi huyee ..... wo bhi insaan he thay .....Magar unhone apne zeevan jo kcuh kiya shayad wo sare kaam is page ko banane wale ne kabhi nahi kiye honge ..... to plzz meri request ye he hai ki .... logo ko misguide mat karo... aadha such pure jhoot se bhi bura hota hai ......
- Nitin Kishore Johari ab aap ek baat bataaooo.. kya hum ab hindustan se MUSILM, CHRISTIAN in main se kisi ko nikal sakte hai .......... nahi bulkul bhi nahi .... aur kabhi bhi nahi .... to is tarha k page ... sirf dharam k beech ke gap ko aur bada te hai ....na ki kam kar t...See More
- Nitin Kishore Johari JO GUZAR GAYA WO KAL THA......... Kab tak hum saanp ki lakeer ko peet te rangange .... kuch nahi sir ye sirf .... rajniti chale hai .... Ghandhi ko bura bol k... desh ko sach nahi sirf UPA sarkar ko nicha dikha ne ki baatain hai ... itni he desh bhakth...See More
- Nitin Kishore Johari abhi itna he likhne k liye bahot kuch hai ..... shayad ye page bhar jayee..... par kisi ki samjh main kuch nahi aayee ga ....belive karo sir ... aaj aap likh do ki ... Anna hazare pagal hai .... kharbo ki aawadi wale is desh main 4 -5 pagal log mil he jayenge .. aap k page like kar ne liye .....Jay Hind aur Jay Bharat
- Manoj Sharma नितिन जी, आपको बहुत सारी सच्चाई मालूम है. क्या आपने कभी सोचा कि इतिहास वर्तमान को प्रभावित करता है और इतिहास सीखने के लिए होता है और इतिहास अपने आप को दोहराता भी है. गाँधी ने तुष्टिकरण किया तो देश का बँटवारा हुआ. आज भी गाँधी के चेले उसी तुष्टिकरण को पक...See More
- Manoj Sharma जो गुजर गया वो कल था, पर आज भी हम उन्हीं परिस्थितियों में जी रहे हैं. हम तब तक आधे-अधूरे दर्शन और तुष्टिकरण के साँप की लकीर पीटते रहेंगे, जब तक हमें यह अंदेशा रहेगा कि वही साँप हमें फिर काट खायेगा. आप मेरे ब्लॉग पर जाएँ और वहाँ गाँधी पर कुछ लेख पढ़ें, फिर बात करेंगे.
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