Sunday, February 23, 2014

कुवि के निदेशक अनूप लाठर ने रखी थी फोक आरकैस्ट्रा की नींव....

सरस्वती महोत्सव ..............

अपने ध्वजवाहक के सान्ध्यि में फिर जुटा देश का लोक वाद्यवृंद 

2006 के राष्ट्रीय युवा समारोह में कुवि में ही हुई थी पहली प्रतियोगिता

अनुराधा  तुरण,
कुरुक्षेत्र/ 19 फरवरी।
लोक वाद्यवृंद यानि फोक आरकैस्ट्रा आज अपने ध्वजवाहक अनूप लाठर के सानिध्य में आकर गौरवांनवित महसूस कर रहा है।
 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में 29 वें अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय युवा समारोह सरस्वती महोत्सव में देश के कोने कोने से जुटे प्रतिभागी जब अपने अपने प्रदेशों के फोक आरकैस्ट्रा की प्रस्तुतियां दे रहे थे तो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय भी गौरवांनवित महसूस कर रहा था। हो भी क्यों न आज उसी के मंच से उपजी सांस्कृतिक विधा का अनुसरण पूरा देश जो कर रहा है। जी हां माहोत्सव के दूसरे दिन जब आडिटोरियम हाल में यह विधा मंचित हुई तो कुवि व हरियाणा के लिये यह समूचे गौरव की बात थी। गौरतलब है कि 1984 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अपना पद संभालने के बाद अनूप लाठर ने हरियाणवी लोक साजिंदों को इक्टठा करने की मुहिम आरम्भ की और हरियाणवी आरकैस्ट्रा की पहली प्रस्तुति 28 मार्च 1985 को चण्डीगढ़ के टैगोर थियेटर में दी थी। इसके बाद उन्होंने इसे हरियाणा दिवस समारोह रत्नावली के माध्यम से मजबूत किया और फिर अनूप लाठर की अनुशंसा पर हरियाणवी आरकैस्ट्रा को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा समारोहों में प्रतियोगिता के रूप में शामिल कर लिया गया। उन्हीं के प्रयासों से प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों ने भी अपने युवा समारोहों में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का अनुसरण करते हुए हरियाणवी अरकैस्ट्रा को एक प्रतियोगिता के रूप में शामिल किया। लाठर बताते हंै कि सागर विश्वविद्याल में जब एआईयू की बैठक हो रही थी तो उन्होंने प्रस्ताव रखा कि देश की लुप्त हो रही लोक धुनों को सहेजने के लिये फोक आरकैस्ट्रा को  राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शामिल किया जाए। उनकी मांग पर विचार हुआ और इसे राष्ट्रीय युवा समारोह की प्रतियोगिताओं का भाग बना दिया गया। मजेदार बात तो यह है कि कुवि में वर्ष 2006 में आयोजित राष्ट्रीय युवा समारोह में इसी आडिटोरियम के मंच पर इस विधा की पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता हुई थी। आज फिर यह विधा अपने जन्म ध्वज वाहक को यह सुखद आहसास दिलवा रही है कि उनकी खोज को पूरे देश ने अपनाया और आज यह विधा पूर्णतय: स्थापित हो चुकी है। जिस प्रदेश को कभी कल्चर के नाम पर एग्रीकल्चर से पुकारा जाता था आज उसकी विधा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने के लिये अनूप लाठर पर केवल कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को ही नहीं बल्कि पूरे हरियाणा को गर्व करना चाहिये।

विभिन्न कला व सांस्कृतिक विधाओं से रंगीन रहा कुवि का दामन

पूर्वी भारत की लोकधुनों पर जम कर थिरके हरियाणीव व पंजाबी दर्शक

अदिति,
कुरुक्षेत्र/ 19 फरवरी।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहे 29 वें अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय युवा समारोह सरस्वती महोत्सव के दूसरे दिन  विभिन्न मंचों पर अनेकों विधाओं की प्रतियोगिताऐं आयोजित हुई। आडिटोरियम हाल में आयोजित फोक आरकैस्ट्रा प्रतियोगिता में सबसे पहले नागपुर विश्वविद्यालय की टीम ने महाराष्ट्र के सांस्कृतिक जीवन की झांकी खंजरे, शंख व बांसुरी  और ढोल ताशा आदि के सुरों व लोक परिधान के साथ प्रस्तुत की। उसके बाद संत गार्गी बाबा अमारावती विश्वविद्यालय ने  अपनी प्रस्तुति में लोक धुनों से साथ लोक परिधानों में मोहकता बिखेरी। इसके बाद गुहाटी विश्वविद्यालय ने शादियों के समय प्रयोग होने वाले 60 लोक वाद्य यंत्रों को एक सुर में पिरोया। इसके बाद केरल विश्वविद्याल, कश्मीर विश्वविद्यालय, पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला, भारती विद्यापीठ पूने व गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर ने अपनी प्रस्तुतियां दी। पंजाबी लोक धुनों पर पर जमकर दर्शकों ने लुत्फ उठाया। पूर्वी व दक्षिणी जोन की प्रस्तुतियों की रोचकता तो इतनी रही कि उनकी भाषा न समझ आते हुए भी हरियाणवी व पंजाबी दर्शक भी उनकी लोकवाद्य  धुनों पर जम कर थिरके।

राधा कृष्ण सदन में बही रागों की धारा
राधा कृष्ण सदन में आयोजित क्लासिकल वोकल सोलो (हिंदुस्तानी व कर्नाटकी) में विभिन्न रागों की रसधारा बही। सबसे  पहले राजा मान सिंह तोमर म्यूजिक एंड आर्ट विश्वविद्यायल ग्वालिया, उसके  बाद जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी, पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला, मुम्बई विश्वविद्यालय मुम्बई, भारती विद्यापीठ डीम्ड विश्वविद्यालय पूने, यूनिर्वसिटी ऑफ मैसूर, गुरुनानक देव विश्वविद्यालय पंजाब ने अपनी प्रस्तुतियां दी।
    सदन में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने लघु भरत का दृश्य अपनी संगीतमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से पेश किया। सेंट्रल जोन से आई मान सिंह आर्ट एंड म्यूजिक यूनिर्वसिटी ने राग भैरवी पेश किया। वहीं मध्यप्रदेश के जिवाजी विश्वविद्यालय ने राग भटियार पेश किया। इसी मंच से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की टीम ने राग नारायणी प्रस्तुत कर दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।

सीनेट हाल में चली बुद्धि परीक्षा
सीनेट हाल में आयोजित क्वीज प्रतियोगिता के प्री में देश भर से आई विभिन्न टीमों ने भाग लिया। पूर्वी जोन से विद्यासागर विश्वविद्यालय पं. बंगाल व आसाम से तेजपुर विश्वविद्यालय तेजपुर ने भाग लिया। पश्चिमी जोन से मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई व पूणे विश्वविद्याल, पूने ने भाग लिया। वहीं उत्तरी जोन से पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ व लवली प्रौफैसनल यूनिर्वसिटी जालंधर ने भाग लिया। केंद्रीय जोन से माखन लाल चर्तुवेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्याल भोपाल व नागपुर विश्वविद्यालय ने भाग लिया। 

युवा महोत्सव और दैनिक जीवन पर चित्रकारी से डाला प्रकाश
सरस्वती महोत्सव के दौरान जहां सांस्कृतिक कलाओं के माध्यम से अपने अपने प्रदेश की संस्कृति का प्रर्दशन युवा कलाकारों ने किया वहीं फाईन आर्ट विभाग में आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में युवा महोत्सव और दैनिक जीवन पर चित्रकारी के माध्यम से प्रकाश डाला गया। युवा चित्रकारों ने बुढिया से सामान खरीदते लडक़े, श्रृंगार करती महिलाओं का चित्रांकन किया। इसके साथ ही कुत्ते के साथ सैर करते पथिक व भीग मांगते भिखारियों को भी सामान्य जीवन की झांकी में पेश किया। प्रतियोगिता में 9 टीमों ने भागीदारी की। पूर्वी जोन से विश्वभारती विश्वविद्यालय व बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बनारस ने भाग लिया। पश्चिमी जोन से मुम्बई विश्वविद्यालय व बाबा साहेब अम्बेडकर विश्वविद्यालय ने हिस्सा लिया। इसके साथ उत्तरी जोन से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय व लवली प्रोफैशनल यूनिर्वसिटी के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। वहीं दक्षिणी जोन से गुलबर्ग विश्वविद्यालय ने भाग लिया। केंद्रीय जोन से इंदिराग कला संगीत विश्वविद्यालय छत्तीसगढ व राष्ट्रीय संत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय ने हिस्सा लिया। 

धर्मनगरी में आकर खुश हैं देश भर से आए युवा कलाकार
पल्लवी  धीमान,
कुरुक्षेत्र/ 19 फरवरी।
कुवि में जुटे लघु भारत का दोहर प्रभाव देखने को मिल रहा है। जहां दूसरे राज्यों के प्रतिभागियों को देखकर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विद्यार्थी और कर्मचारी तथा अन्य हरियाणवी लोग हैं वहीं उनसे दो गुना खुश दूसरे राज्यों के लोग हरियाणा में आकर हो रहे हैं। जहां उन्हे दूसरे राज्य में आकर अपने राज्य की संस्कृति को दर्शाने का मौका मिला है। वहीं यहां आकर दूसरे राज्यों की भी प्रतिभाओं को भी देखने का मौका भी उन्हें मिल रहा है। महात्मा गांधी युनिवर्सिटी केरल के छात्र अरविंद कृृष्ण ने बताया कि उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लगा। दूसरे राज्यों से आए विद्यार्थियों के साथ उनका काफी मेल मिलाप हो गया है। 
सभी छात्र उनके साथ सहयोग कर रहेे हैं। उन्होंने बताया कि वो अपने ग्रुप के साथ आए है और छ: प्रतियोगिताओं में तबला वादन करेंगें। अरविंद ने बताया कि उनके रहने का प्रबंध बहुत अच्छा किया गया है और यहां के वातावरण व संस्कृृति को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। महाराष्ट्र से आए प्रतिभागी बी देशमुख ने बताया कि वे पहले भी कुरुक्षेत्र आ चुके है। यह वास्तव में दर्शनीय स्थल है। फिर से यहां आकर उन्हे बहुत अच्छा लग रहा है। वह यहां मराठा सम्राट योगीराज शिवाजी के जीवन पर आधारित पात्रों का हुनर लोगों को दिखाने साथ -साथ अपनी संस्कृृति से भी रूबरू करवाएंगें। कहना न होगा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का मंच आज भिन्न भिन्न संस्कृतियों का संगम स्थल बना हुआ है।

खुले मंच पर भड़ास निकाल रहे हैं युवा कलाकार
राष्ट्रीय युवा महोत्सव के दौरान जहां मंचों पर कठिन मुकाबले हो रहे हैं वहीं युवा कलाकार आडिटोरियम हाल व धरोहर संग्रहालय के सामने सजे खुले मंच पर खूब अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। खाली समय में यह मंच हरियाणा की लोक विधाओं के साथ देश के अन्य प्रदेशों की लोकविधाओं का प्रर्दशन स्थल भी बना हुआ है। एक ओर बंचारी की नगाड़ा पार्टी की मस्त धुनों पर युवा थिरकते देखे एक तो दूसरी और अन्य प्रदेशों के कलाकारों ने भी अपनी संस्कृति का प्रतियोगिताओं से हट कर यहां प्रदर्शन किया।

हरियाणवी लोकनाट्य सांग को देख मंत्रमुग्ध हुए गैर हरियाणवी

खुले मंच पर देर सांय तक हुआ अजित सिंह राजबाला सांग का मंचन         

पूजा  रावत,
कुरुक्षेत्र/ 19 फरवरी।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में 29 वें अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय युवा महोत्सव के पहले दिन सांय काल खुले मंच पर हरियाणवी लोक नाट्य सांग की प्रस्तुति व्यावसायिक कलाकारों द्वारा दी गई। हरियाणा के लोक नाट्य को आज भी इतना समृद्ध पाकर गैर हरियाणवी कलाकार भी मंत्र मुग्ध हो गए। कुवि युवा एंव सांस्कृतिक विभाग के निदेश अनूप लाठर के अनुसार सूरज बेदी द्वारा गत सांय अजित सिंह राजबाला सांग की प्रस्तुती दी गई। उन्होंने बताया कि देश के कोने कोने से आए युवा कलाकारों को हरियाणवी लोक नाट्य से परीचित करवाने के लिये यह प्रयास युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र द्वारा किया गया है।

    सांग शुरु करने से पहले सभी कलाकारों ने भजन के माध्यम से सरस्वती मां का गुणगान किया गया। जिसके बाद उन्होंने सांग की शुरूआत की। सांग के मुख्य कलाकार सुरज बेदी सांगी ने बताया कि सांग की यह जो विधा है यह एक लोक नाट्य विधा है। यह विधा सन् 1730 में शुरू की गई थी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के दौरान सांग के बारे में विस्तार से बताया कि एक बार एक राजा नाहर सिंह होते थे, जो युद्व के दौरान मारे गए थे। जिसमें उनका लडक़ा जो अजीत सिंह था वह बच जाता है। राजा के मरने के बाद दुष्मनों ने उनकी गद्दी पर कब्जा कर लिया जिसके कारण राजा का बेटा अजीत सिंह अकेला रह जाता है। अजीत सिंह की सगाई बचपन में ही राजबाला नाम की लडक़ी के साथ कर दी जाती है, लेकिन अजीत सिंह को निर्धन व अकेला समझकर राजबाला का परिवार उसका रिश्ता कहीं ओर करने जा रहा था। जब अजीत को पता चला तो  उन्होंने राजबाला के पिता के पास पत्र लिखा कि राजबाला का रिश्ता मेरे साथ ही किया जाए। फिर राजबाला के पिता ने शर्त रखी कि 20 हजार रूपये जमा करवाओ तभी तुम्हारी  राजबाला से शादी  होगी। अजीत सिंह ने शादी के लिए लाला से कर्ज लिया। जिस लाला से उन्होंने कर्ज लिया था उन्होंने कहा कि जब तक तुम कर्ज अदा करोगे तुम्हारा और राजबाला का रिश्ता भाई-बहन का रहेगा। लाला की शर्त के अनुसार वे अपने धर्म के उपर कायम रहे और पांच साल तक ये रिश्ता निभाया। एक जोधपुर के राजा होते थे रणजीत सिंह जिनकी फौज में अजीत सिंह व राजबाला भर्ती हो गए। एक रोज रानी को पता चला कि वे आपस में बीर-मर्द यानि पत्नी पत्नी हैं और धर्म पर कायम हैं। इस बात पर खुश होकर राजा अजीत सिंह को आधी फौज दे देते है और लाला का 20 हजार कर्जा भी दे देते है और फिर उनका राज घराना छुड़ा लेते है।



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