Thursday, May 24, 2012

भारत की अमूल्य धरोहर है गुरु अर्जुनदेव की वाणी........


शहीदी पर्व पर विशेष
राग-रागणियों के मर्मी कलावंत थे पंचम पातशाह ,सुखमणि है आपकी सर्वोत्कृष्ट रचना
2218 सबदों के रचयिता हैं पंचम पातशाह ,पंजाबी को एक संत भाषा में ढाल दिया

सुरेंद्रपाल वधावन शाहाबाद मारकंडा
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के संकलनकर्ता पांचवें गुरु अर्जुनदेव की वाणी भारत की एक ऐसी अमूल्य धरोवर है जो हमारी संस्कृति,वैश्विक चेतना तथा जीव मात्र के प्रति हमारी प्रीति और सदाशयता की साक्षी है। सुकरात की भांति सच्चाई पर प्राण न्यौछावर करने वाले तथा संगीत को संत भाषा देने वाले गुरु अर्जुनदेव का स्थान दस सिक्ख गुरुओं में अपने ढंग का एक अलग स्थान है। पंचम पातशाह गुरु अर्जुनदेव जी का गुरुगद्दी काल 1581-1606 तक रहा। आप गुरु राम दास जी और बीबी भाणी जी के छोटे पुत्र थे। गुरु  अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 में गोइंदवाल साहिब में हुआ था।गुरु जी बाल्यकाल से ही अत्यंत तेजस्वी थे। 4 वर्ष की आयु में आपने रागों पर आधारित गुरुबाणी का गायन आरंभ कर दिया था। 11 वर्ष की आयु में आप अनेक भाषाओं और  राग-रागणियों के मर्मी कलावंत बन चुके थे। 1579 में आपका विवाह जालंधर के माउ गांव के कृष्ण चंद की सपुत्री माता गंगा जी के साथ हुआ।  आपके गायन में एक आलौकिक कशिश थी। 1579 में आपका विवाह जालंधर के माउ गांव के कृष्ण चंद की सपुत्री माता गंगा जी के साथ हुआ। गुरु अर्जुन देव जी के नाना तीसरे गुरु अमरदास जी गुरुजी की विद्वत्ता के इतने कायल थे कि उन्हें वाणी का बोहिथ यानी के वाणी का जहाज मानते थे।
 गुरु अर्जुन देव जी ने केवल 43श्वर्ष की आयु पाई थी लेकिन आपके कार्यों को वक्त की चौखट में रख कर देखा जाये तो आश्चर्य होता है। कुल 15 वर्षों ने आपने इतने कार्य किए जिनके लिए कई पीढिय़ां लग जाएं तो भी काम पूरा न हो। गुरु अर्जुन देव की वाणी कई भाषाओं में लहलहाई है। सुखमणि आपकी सर्वोत्कृष्ट रचना है जिसके उपर ब्रजभाषा का गहरा रंग है । कुछ रचनाओं में संस्कृत और प्राकृत  का गहरी पुट है तो अन्य में $फारसी और लेंहदी का प्रभाव देखने को मिलता है। गुरुजी की रचनाओं का एक बड़ा भाग पंजाबी के रंग में रंगा है लेकिन यह पंजाबी ऐसी है कि जो पंजाब क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इसमें अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को उदारतापूर्वक शामिल किया गया हे।वास्तव में उन्होंने पंजाबी को एक संत भाषा में ढाल देने का कार्य किया है।आपने श्री आदिग्रंथ की रचना की। आपने पहले के चार गुरुओं तथा समकालीन संतों की वाणी का प्रामाणिक पाठ पूछ-पूछ कर तैयार किया जिनमें लगभग 15हज़ार से अधिक बंद और 3 हज़ार के लगभग सबद शामिल हैं। इन रचनाओं को संग्रहीत और संकलित कर आपने श्री आदिग्रंथ की रचना की।  श्री आदि ग्रंथ में पांच गुरु साहिबान की वाणी के साथ-साथ 30 भगतों,भटों व सिखों की वाणी संग्रहीत की गई। इसमें बाद में दशम गुरु गोबिंद सिंह जी ने नौंवे गुरु ते$गबहादूर की वाणी भी शामिल की। श्री आदि ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शबद हैं जिनमें से 2218शबदों के रचयिता स्वयं पंचम पातशाह हँ। गुरु ग्रंथ साहिब जी में 305 अष्टपदियां,145 छंद,22 वारें,471 पउड़ी संग्रहीत हैं।  समस्त वाणी गायन के लिये है जिसे 31 रागों में गायन करने का विधान है। इसमें प्रमुख विशेषता यह कि शबद का गायन किस रा$ग में किया जाये उस का उल्लेख भी साथ किया गया है। इस महान ग्रंथ में पृष्ठ संख्या 1430 है। इस पवित्र ग्रंथ का संपादन करने में गुरु अर्जुन देव जी को तीन वर्ष का समय लगा।गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश श्री हरिमंदिर साहिब में 16 अगस्त 1604 में किया गया था।
पंचम पातशाह ने 3 अक्तूबर 1588 में मुस्लिम पीर साईं मियां मीरजी से श्री हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास करवाया। आपने 1590 में तरनतारन के सरोवर का निर्माण, 1594 में करतारपुर में थम्मसाहिब गुरुद्वारा ,1596 में तरनतारन,1597 में छेहरटा साहिब,1597 में ही श्री हरगोबिंदपुरा,1599 में लाहौर में बाऊली साहिब,और 1602-03 में अमृतसर में अनेक निर्माण कार्य संपन्न कराये। मुगल सम्राट जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ते  प्रभाव और लोकप्रियता के कारण उनसे द्वेष भाव रखने लगा था। कश्मीर जाते समय उसने गुरुजी को लाहौर में मिलने को कहा और यह $फरमान दिया कि गुरु जी श्री आदि ग्रंथ में इस्लाम धर्म के प्रवत्र्तक मोहम्मद साहिब की स्तुति में लिखें और इस्लाम धर्म अपना लें। गुरुजी के इंकार करने पर का$जी ने फतवा दिया कि गुरुजी को कष्टदायक मृत्यु की स$जा दी जाये। पांच दिन तक गुरु साहिब को खेोलते हुये पानी के  बड़े कड़ाहे में रख कर उपर से गर्म रेत डाली जाती रही लेकिन गुरुजी सहज और शांतिपूर्वक सब यातनाएं झेलते रहे पांच दिन के पश्चात राग रागणियों के मर्मी कलावंत और वाणी के बोहिथ इस महान गुरु ने अविचल भाव से - तेरा मीठा-मीठना लागे। हरिनाम पदार्थ नानक मांगे।।  गाते हुए प्राण त्याग दिए।----



1 comment:

  1. THIS HAS BEEN WRITTEN FROM THE CORE OF MY HEART--SURINDER PAL SINGH WADHAWAN

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