Tuesday, May 29, 2012

choudhari charan punyatithi par vishesh.....


चौधरी चरण सिंह (23 दिसम्बर 1902 - 29 मई 1987) भारत के पांचवे प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने यह पद 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक सम्भाला। चौधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया। चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार मे हुआ था।अनके पिता का नाम श्री मीरसिंह और माता का नाम नंत्रकौर था। इनके पिता श्री मीरसिंह जी नूरपुरा व मदौला कस्बों में खती का कार्य करते थे। स्वाधीनता के समय उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। स्वतन्त्रता के पश्चात् वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गए। बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गये थे। यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया। गाँधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया। आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया। परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्तूबर 1941 में मुक्त किये गये। सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था। महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया। अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी। 9 अगस्त, 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गाँवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था। आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया। राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है। जिस व्यक्ति को इस देश की मिट्टी के साथ लगाव है, जो इस देश की जनता की खुशहाली में रूची रखता है और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति आस्थावान है उस सच्चे हितैषी के नाम चौधरी चरणिसंह था। कारण यह था कि कृषक व पिछडे वर्ग के लोगों की आबादी का ८०२ प्रतिशत भग ग्रामीण क्षेत्र में रहता है इसलिए उन्हांने यह नारा दिया था-‘‘देश की सम द्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से हाकर गुजरता है।‘‘ और इस मार्मिक नारे को उन्होंने पूर्णतया सत्य साबिता भी किया था। चौधरी चरणसंह जी ने छात्रजीवन में सबसे अधिक महात्मा गांधी जी के त्याग, बलिदान व उत्कृष्ट देशभक्ति से प्रभावित होकर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के प्रगतिशील धार्मिक विचारों को अपने जीवन में अपनाया था और स्वामी जी की विचारधाराओं से प्रभावित होकर ही उन्होंने देश की स्वतंत्रता के आनदोलन में भग लिया और इस आन्दोलन को सफल बनाने में अपना तन-मन-धन न्यौछावर कर दिया। गरीबों का मसीहा व्यक्ति जाति या धर्म से नहीं गुणों से महान होता है, इन गुणों के कारण ही चौधरी जी गरीबों के मसीहा कहलाएं उन्होंने जितने कार्य किए उनमें प्राथमिकता वाले कार्य जो गरीबों के लिए वरदान सिद्ध हुए है-सर्वप्रथम आपने 1928 में किसान के मुकदमों के फैसले करवाकर उनको आपस में लडने के बजाय आपसी बातचीत द्वारा सूलझाने को साकार प्रयास किया। सन् 1939 में ऋण विमोचक विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की निलामी बचवायी और सरकारी ऋणों से मुक्ति दिलायी। हम आज आरक्षण प्राप्ति पर खुशियां मना रहे। आपने 1939 में ही किसान सन्तान केा सरकारी नौकरियों में 50 फिसदी आरक्षण दिलाने का लेख लिखा था परन्तु तथाकथित राष्ट्रवादी कांग्रेसियों के विरोध के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाई। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वह किसानों के सच्चे हितैषी थे। सन् 1939 में अपाने किसानों को इजाफा-लगान व बेदखली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने हेतु ‘‘भूमि उपयोग बिल‘‘ का मसौदा तैयार करवाया और 1952 में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पास करवाकर एक प्रशंसनीय कार्य किया। आपने किसानों की प्रगति हेतु जो कार्य किए हैं वे एक अनूठी मिशाल है जो आज तक कोई किसान नेता नहीं कर पाया है और भविष्य में ऐसे हितैषी की उम्मीद नहीं के बराबर है। आपने किसानों के साथ-साथ छात्र समाज में अनंशासनहीनता को बिना लाठी गोली के मिटाया सरकारी अधिकारियों से रिश्वतखोरी मिटाने, प्रशासन में कमखर्ची व कुशलता लाने और देश की गरीबी व बेकारी हटाने के लिए अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसी कारण से सन् 1977 में चीनी के भाव 3 रू. किलो होना अनूठी मिशाल हैं इन्हीं सभी बातों से आपका व्यक्तितव, चिंतन की दशा व नीति देश की सेवा करने का अभूतपूर्व प्रयास था। असस्त 1942 में भारत सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत पुनः गिरफ्तार किया गया व नवम्बर 1943 में रिहा किया गयां इसी समय के दौरान 1929 से 1939 तक नगर कांग्रेस समिति, गाजियाबाद के सदस्य एवं 1939 से 1948 तक जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कार्य किया। इसी क्रम मं आप 1937 में उत्तर प्रदेश छपरोली क्षेत्र से विधानसभा सदस्य निवार्चित किए गए और 1946 में श्रीमान् गोविन्द वल्लभ पंथ मंत्री मण्डल से संसदीय सचिव बने। सन् 1952 में डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्री मण्डल में राजस्व व कृषि मंत्री बनाए गए थे। सन् 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व व परिवहन मंत्री बनें सन् १९५९ में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी के द्वारा सहकार्य की नीति की कडी आलोचना करने पर आपने अप्रैल माह में मंत्री मण्डल से इस्तिफा दे दिया। सन् 1960 से 1965 तक दत्तर प्रदेश में कृषि व वन मंत्री के पद पर कार्य किया। सन् 1967 में कांग्रेस मंत्री मण्डल से इस्तिफा देकर विपक्ष से संयुक्त विधायक दल के नेता बने और 3 अप्रैल 1967 को नए मंत्री मण्डल को गठन कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भार संभालां 1967 में भारतीय क्रांतिकारी दल का नेतृत्व किया। सन् 1967 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनावों में 98 सीटों पर विजय प्राप्त करके 1970 में पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 1974 में 29 अगस्त को लोकदल का गठन किया। 1975 में इमरजेंसी के दौरान आपको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। 1977 में जनतापार्टी के गठन में मुख्य भूमिका निभाकर लोकसभा के लिए प्रथम बार निर्वाचित हुए और जनता पार्टी सरकार में आप गृहमंत्री बने। 30 जून 1978 केा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ मतभेद होने के कारण मंत्री मण्डल से त्याग पत्र दे दिया। 23 दिसम्बर 1978 को दिल्ली के वोट क्लब पर आज तक की सबसे विशाल ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया गया। 24 फरवरी 1979 को जनतपार्टी सरकार में उपप्रधानमंत्री व वितमंत्री का कार्य संभालां जुलाई 1979 को अपाने अपने अनुयायी सांसदो सहित पाटी्र से सामूहिक त्यागपत्र दे दिया। इससे देसाई जी की सरकार गिर गई। आप 28 जुलाई 1979 को नौ सदस्यीय प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने और जाट जाति का नाम रोशन करके उसका गौरव बढाया। 20 अगस्त 1979 को कांग्रेस सरकार द्वारा अपना समर्थन वापिस लेने के कारण सरकार गिर गई और लोकसभा भंग कर दी गई। सन् 1980 में आपने एक नई पार्टी दलित मजदूर किसान पार्टी का गठन किया। जिसे 1985 में लोकदल में परिवर्तित कर दिया। 29 नवम्बर 1985 को आप बीमार हो गए और 14 माच्र 1986 को अमेरिका के मैरिलैन्ड राज्य के जॉन होवकिस ईस्टीट्यूट ऑफ मेडिसन में इलाज करवाने केन्द्र सरकार के व्यय पर गए। 29 मई 1987 की रात्रि को 2.25 बजे आप इस संसार से विदा हो गएं आफ निधन से समूचा भारत अन्धकार के गर्त में समा गया और विभिन्न राजनेताओं, कवियों व प्रबुद्धजीवियों के द्वारा आपको सच्चे मन से श्रद्धांजलियां दी गई।

No comments:

Post a Comment