24 मई 2012
निमिष कुमार, सरकार, आप सरकार हैं। लेकिन ये ना भूलें कि साढ़े सात हम आम जनता के लिए बहुत अशुभ माना जाता है, क्योंकि साढ़े सात सुनकर तो हम सब को शनि की साढ़े साती याद आ जाती है। सरकार, हमारे देश में लोग गुस्से में भी दुश्मन को शनि की साढ़े साती का शाप नहीं देते, क्योंकि सभी का मानना है कि शनि की साढ़े साती से बुरा कुछ नहीं होता। तो क्या हम ये मान लें माननीय मनमोहनजी, सोनियाजी, प्रणब मुखर्जी जी ने सारे देश के आम लोगों को साढ़े सात का वही उपहार दिया है। क्योंकि आपके इस साढ़े सात के उपहार का वही असर हम आम लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा, जो शनि की साढ़े साती का पड़ता है। घर का बजट गड़बड़ा जाएगा। हर महीने का पेट्रोल का खर्चा बढ़ जाएगा। अब हर हफ्ते बीवी-बच्चों को एक बार कार में बाजार ले जाने का अपना रुटीन छोड़ना होगा, जिसका सीधा-सीधा मतलब होगा, बीवी-बच्चों के यदा-कदा ताने। आपको भी आपके बीवी-बच्चे शायद कभी-कभी देते होंगे। तो आप समझ सकते हैं।
साढ़े सात रुपये पेट्रोल पर बढ़ाने का मतलब होगा, पड़ोस के शर्माजी या वर्माजी की एक आवाज पर अपनी गाड़ी निकालना और उनके काम के लिए कहीं भी चल देने का शौक अब बंद करना होगा। अब सब अपने दाम बढ़ाना शुरू कर देंगे। बहाना होगा- क्या करें साहबजी, सरकार ने पेट्रोल महंगा कर दिया है ना। धोबी हर जोड़ी कपड़े प्रेस करने में एक या दो रुपये बढ़ा देगा। सब्जीवाले तरकारी महंगी कर देंगे, महंगाई के नाम पर। प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, हर कोई सेवादाता अब अपनी सेवाओं के दाम बढ़ाता जाएगा। पूछेंगे तो यही कहेगा- सरजी, आप तो जानते हैं ना, कितनी महंगाई हो गई है। अब पेट्रोल ही देखो। और देश का आम आदमी बस देखते रह जाएगा। देखते ही रह जाएगा कि कैसे हर महीने उसकी जेब पहले की तुलना में तेजी से साफ हो रही है।
वैसे इसमें आप लोगों का दोष भी नहीं है। मनमोहन सिंह ने शायद ही दिल्ली स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स की प्रोफेसरी के बाद, सोनिया गांधी ने इटली छोड़ इंग्लैंड में कोई पढ़ाई करने के बाद या प्रणब मुखर्जी ने राजनीति में आने के बाद, शायद ही कभी शक्कर खरीदी हो। और इतना तो देश का आम आदमी दावे के साथ कह सकता है कि हाल-फिलहाल के दिनों में तो नहीं खरीदी होगी। वरना सरकार जानती कि चार लीटर पेट्रोल में सरकार ने साढ़े सात गुणा चार मतलब 30 रुपये बढ़ा दिए हैं, और इतने में एक किलो शक्कर आती है जिसे चार-पांच लोगों का परिवार कम से कम एक हफ्ते तो चला ही लेता है। सरकार, हैदराबाद जाए तो साढ़े सात रुपये में एक नारियल मिल जाता है जो आपको शानदार पौष्टिक नारियल पानी और नारियल की मलाई देता है। सात रुपये में तो मुंबई लोकल ट्रेन के किसी भी प्लेटफार्म पर आप अपने जूतों को क्रीम पॉलिश से चमचमा सकते हैं। इंदौर-भोपाल में इतने रुपये में आप एक प्लेट पोहा या जलेबी खा सकते हैं। पटना में इतने में सिंगल लिट्टी-चोखा खा सकते हैं। देहरादून या पहाड़ के इलाकों में साढ़े सात रुपये में ताजे फल खा सकते हैं। अहमदाबाद-बड़ौदा या गुजरात के किसी शहर में एक प्लेट फाफड़ा, सेव या कोई नमकीन से पेट पूजा कर सकते हैं। बनारस के गंगा घाट के बाहर एक प्लेट पकौड़ियां, वो भी हरी चटनी डाल के खा सकते हैं। कोलकाता में केसी दास के यहां साढ़े सात रुपये में आप बंगाली मिठाई चख सकते हैं। बेंगलूरु हो या तिरुवंतपुरम, चैन्नई हो या विशाखापत्तनम, साढ़े सात रुपये में आप इडली-सांभर तो खा ही सकते हैं एक आम आदमी की तरह। लेकिन सरकार, आपको ये सब कैसे पता होगा, आप तो सरकार हैं। हमारे टैक्स के पैसों पर मौज मारने वाले, दिल्ली में बड़े-बड़े सरकारी बंगलों, सरकारी कारों, सरकारी एयर कंडीशनरों, सरकारी पर्दों, सरकारी कालीन और सरकारी भत्तों का लुत्फ उठाते हैं। सरकार, भला आप कैसे जानेंगे कि साढ़े सात रुपये का आम आदमी के लिए क्या मतलब होता है।
बढ़ाइए, खूब बढ़ाइए, लेकिन बेतुके तर्कों से महंगाई से जले आम आदमी के दिल पर नमक तो ना छिड़किए। देश के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी बुधवार रात याने पेट्रोल के दामों में साढ़े सात रुपये बढ़ाने के एलान के बाद, न्यूज चैनलों के कैमरे के सामने आए। बड़े ही तल्ख तेवरों में कहा- पेट्रोल कीमतों को बढ़ाने का फैसला तेल कंपनियों का है। और पेट्रोल को पहले ही सरकार नियंत्रण मुक्त कर चुकी है। बस इतना-सा बोल देश के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पलटे और कैमरों को, आम आदमी को पीठ दिखाते हुए रात के अंधेरे में नॉर्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक के गलियारों में गुम हो गए। आम आदमी बौखलाया। गुरुवार, 24 मई को देश भर में आम आदमी सड़कों पर था। नारे लगा रहा था। पुतले फूंक रहा था। रैलियां निकाल रहा था, लेकिन सरकार चुप थी। मई महीने की चिलचिलाती धूप में, तवे-सी तपती डामर की सड़कों पर, चिल्लाते आम आदमी का अपने सरकारी बंगले में, सरकारी एसी की ठंडी हवा में बैठकर तमाशा देख रही थी। सोचा होगा, ये साले आम आदमी तो चिल्लाते रहते है। कुछ देर, कुछ दिन चिल्लाएंगे फिर चुप हो जाएंगे। शायद इसीलिए गुरुवार 24 मई की दोपहर, देश के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी एक बार फिर न्यूज चैनलों के जरिए देश से मुखातिब हुए और बड़े ही तल्ख स्वरों में वही दोहराया, जो पिछली रात कहा था। पेट्रोल के दाम तेल कंपनियों ने बढा़ए। और पेट्रोल अब नियंत्रण मुक्त है।
सरकारी की इस बेशर्म रुखाई के बाद सरकार के ही कुछ नुमाइंदे, दबी-छुपी जुबान में ये कहते दिखे कि तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है। दुनिया में वित्तीय हालात बेकाबू हो रहे हैं। कच्चे तेल के दामों को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। लेकिन ना तो कच्चे तेल के दाम ना ही दुनिया के वित्तीय हालात ऐसे थे कि भारत के आम आदमी को साढ़े सात का झटका दिया जाए। तेल कंपनियां हजारों करोड़ रुपये का मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन लगातार घाटे का रोना रो रही है। सरकार, क्यों नहीं तेल कंपनियों में कर्मचारियों को मिलने वाले अनाप-शनाप वेतन पर नजर डालती। इन तेल कंपनियां का एक अदना-सा कर्मचारी हजारों रुपये हर महीने का वेतन पाता है। भत्ते इतने की आप भी कहें-बाप रे बाप। और काम- इतना कि आम आदमी कहे, वाहजी आपके तो मजे हैं। अदना-सा सरकारी बाबू करोड़ों रुपये की काली कमाई छाप रहा है। नेताओं के नाम अब कुछ सौ नहीं हजारों, लाखों-करोड़ रुपये के घोटालों में आ रहे हैं। ऐसे में आम आदमी का दर्द वो कैसे जान सकते हैं, कि साढ़े सात का मतलब क्या होता है।
सरकार, एक सलाह है। सड़क पर मत निकलिएगा। वरना देश का ये आम आदमी शनि की तरह आपके राजनैतिक भविष्य पर साढ़े साती की तरह मंडराएगा। ऐसा फेंकेगा कि क्या शनि महाराज साढ़े साती में फेंकते हैं। नहीं तो लालूजी से पूछिएगा। जो टीवी पर तेल कंपनियों के प्रवक्ता बन ज्ञान दे रहे थे। कैसे बिहार का आदमी बलबलाया और ऐसा फेंका कि साढ़े सात साल हो गए, सत्ता का मुंह देखे हुए। सरकार, आप को भी अब सत्ता में साढ़े सात से ज्यादा समय हो गया है ना। ऐसा ना हो कि अच्छे वक्त की साढ़े साती गई और अब आपके बुरे वक्त की साढ़े साती आम आदमी की दिल से निकली आह के रूप में सामने आए। शायद आप ये सब समझें। काश आप जानते कि आम आदमी के लिए साढ़े सात का मतलब क्या होता है।
ई दिल्ली। पेट्रोल की कीमतों में बुधवार को अप्रत्याशित रूप से सात रुपये प्रति लीटर तक वृद्धि की घोषणा की गई। पेट्रोल की बढ़ी दर मध्यरात्रि से लागू हो जाएगी। केंद्र सरकार की सबसे बड़ी सहयोगी तृणमूल कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने इस वृद्धि का कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस के भीतर भी इसे लेकर विरोध के स्वर सामने आने लगे हैं। यह मूल्यवृद्धि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस चेतावनी के ठीक अगले दिन की गई है कि राजस्व उगाही के लिए 'कठोर फैसले' लिए जाएं। सरकार नियंत्रित तेल शोधक कम्पनियों ने ईंधन की कीमत में 6.28 प्रति लीटर की वृद्धि कर दी। इस वृद्धि के अलावा कर अलग से देने होंगे।
दिल्ली में पेट्रोल की कीमत विभिन्न करों के साथ अब 73.14 रुपये होगी, जो इस वक्त 65.64 प्रति लीटर है। मुम्बई में पेट्रोल 78.16 रुपये प्रति लीटर और कोलकाता तथा चेन्नई में 77.53 रुपये प्रति लीटर बिकेगा।
हिन्दी इन डॉट कॉम से साभार
निमिष कुमार, सरकार, आप सरकार हैं। लेकिन ये ना भूलें कि साढ़े सात हम आम जनता के लिए बहुत अशुभ माना जाता है, क्योंकि साढ़े सात सुनकर तो हम सब को शनि की साढ़े साती याद आ जाती है। सरकार, हमारे देश में लोग गुस्से में भी दुश्मन को शनि की साढ़े साती का शाप नहीं देते, क्योंकि सभी का मानना है कि शनि की साढ़े साती से बुरा कुछ नहीं होता। तो क्या हम ये मान लें माननीय मनमोहनजी, सोनियाजी, प्रणब मुखर्जी जी ने सारे देश के आम लोगों को साढ़े सात का वही उपहार दिया है। क्योंकि आपके इस साढ़े सात के उपहार का वही असर हम आम लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा, जो शनि की साढ़े साती का पड़ता है। घर का बजट गड़बड़ा जाएगा। हर महीने का पेट्रोल का खर्चा बढ़ जाएगा। अब हर हफ्ते बीवी-बच्चों को एक बार कार में बाजार ले जाने का अपना रुटीन छोड़ना होगा, जिसका सीधा-सीधा मतलब होगा, बीवी-बच्चों के यदा-कदा ताने। आपको भी आपके बीवी-बच्चे शायद कभी-कभी देते होंगे। तो आप समझ सकते हैं।
साढ़े सात रुपये पेट्रोल पर बढ़ाने का मतलब होगा, पड़ोस के शर्माजी या वर्माजी की एक आवाज पर अपनी गाड़ी निकालना और उनके काम के लिए कहीं भी चल देने का शौक अब बंद करना होगा। अब सब अपने दाम बढ़ाना शुरू कर देंगे। बहाना होगा- क्या करें साहबजी, सरकार ने पेट्रोल महंगा कर दिया है ना। धोबी हर जोड़ी कपड़े प्रेस करने में एक या दो रुपये बढ़ा देगा। सब्जीवाले तरकारी महंगी कर देंगे, महंगाई के नाम पर। प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, हर कोई सेवादाता अब अपनी सेवाओं के दाम बढ़ाता जाएगा। पूछेंगे तो यही कहेगा- सरजी, आप तो जानते हैं ना, कितनी महंगाई हो गई है। अब पेट्रोल ही देखो। और देश का आम आदमी बस देखते रह जाएगा। देखते ही रह जाएगा कि कैसे हर महीने उसकी जेब पहले की तुलना में तेजी से साफ हो रही है।
वैसे इसमें आप लोगों का दोष भी नहीं है। मनमोहन सिंह ने शायद ही दिल्ली स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स की प्रोफेसरी के बाद, सोनिया गांधी ने इटली छोड़ इंग्लैंड में कोई पढ़ाई करने के बाद या प्रणब मुखर्जी ने राजनीति में आने के बाद, शायद ही कभी शक्कर खरीदी हो। और इतना तो देश का आम आदमी दावे के साथ कह सकता है कि हाल-फिलहाल के दिनों में तो नहीं खरीदी होगी। वरना सरकार जानती कि चार लीटर पेट्रोल में सरकार ने साढ़े सात गुणा चार मतलब 30 रुपये बढ़ा दिए हैं, और इतने में एक किलो शक्कर आती है जिसे चार-पांच लोगों का परिवार कम से कम एक हफ्ते तो चला ही लेता है। सरकार, हैदराबाद जाए तो साढ़े सात रुपये में एक नारियल मिल जाता है जो आपको शानदार पौष्टिक नारियल पानी और नारियल की मलाई देता है। सात रुपये में तो मुंबई लोकल ट्रेन के किसी भी प्लेटफार्म पर आप अपने जूतों को क्रीम पॉलिश से चमचमा सकते हैं। इंदौर-भोपाल में इतने रुपये में आप एक प्लेट पोहा या जलेबी खा सकते हैं। पटना में इतने में सिंगल लिट्टी-चोखा खा सकते हैं। देहरादून या पहाड़ के इलाकों में साढ़े सात रुपये में ताजे फल खा सकते हैं। अहमदाबाद-बड़ौदा या गुजरात के किसी शहर में एक प्लेट फाफड़ा, सेव या कोई नमकीन से पेट पूजा कर सकते हैं। बनारस के गंगा घाट के बाहर एक प्लेट पकौड़ियां, वो भी हरी चटनी डाल के खा सकते हैं। कोलकाता में केसी दास के यहां साढ़े सात रुपये में आप बंगाली मिठाई चख सकते हैं। बेंगलूरु हो या तिरुवंतपुरम, चैन्नई हो या विशाखापत्तनम, साढ़े सात रुपये में आप इडली-सांभर तो खा ही सकते हैं एक आम आदमी की तरह। लेकिन सरकार, आपको ये सब कैसे पता होगा, आप तो सरकार हैं। हमारे टैक्स के पैसों पर मौज मारने वाले, दिल्ली में बड़े-बड़े सरकारी बंगलों, सरकारी कारों, सरकारी एयर कंडीशनरों, सरकारी पर्दों, सरकारी कालीन और सरकारी भत्तों का लुत्फ उठाते हैं। सरकार, भला आप कैसे जानेंगे कि साढ़े सात रुपये का आम आदमी के लिए क्या मतलब होता है।
बढ़ाइए, खूब बढ़ाइए, लेकिन बेतुके तर्कों से महंगाई से जले आम आदमी के दिल पर नमक तो ना छिड़किए। देश के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी बुधवार रात याने पेट्रोल के दामों में साढ़े सात रुपये बढ़ाने के एलान के बाद, न्यूज चैनलों के कैमरे के सामने आए। बड़े ही तल्ख तेवरों में कहा- पेट्रोल कीमतों को बढ़ाने का फैसला तेल कंपनियों का है। और पेट्रोल को पहले ही सरकार नियंत्रण मुक्त कर चुकी है। बस इतना-सा बोल देश के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पलटे और कैमरों को, आम आदमी को पीठ दिखाते हुए रात के अंधेरे में नॉर्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक के गलियारों में गुम हो गए। आम आदमी बौखलाया। गुरुवार, 24 मई को देश भर में आम आदमी सड़कों पर था। नारे लगा रहा था। पुतले फूंक रहा था। रैलियां निकाल रहा था, लेकिन सरकार चुप थी। मई महीने की चिलचिलाती धूप में, तवे-सी तपती डामर की सड़कों पर, चिल्लाते आम आदमी का अपने सरकारी बंगले में, सरकारी एसी की ठंडी हवा में बैठकर तमाशा देख रही थी। सोचा होगा, ये साले आम आदमी तो चिल्लाते रहते है। कुछ देर, कुछ दिन चिल्लाएंगे फिर चुप हो जाएंगे। शायद इसीलिए गुरुवार 24 मई की दोपहर, देश के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी एक बार फिर न्यूज चैनलों के जरिए देश से मुखातिब हुए और बड़े ही तल्ख स्वरों में वही दोहराया, जो पिछली रात कहा था। पेट्रोल के दाम तेल कंपनियों ने बढा़ए। और पेट्रोल अब नियंत्रण मुक्त है।
सरकारी की इस बेशर्म रुखाई के बाद सरकार के ही कुछ नुमाइंदे, दबी-छुपी जुबान में ये कहते दिखे कि तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है। दुनिया में वित्तीय हालात बेकाबू हो रहे हैं। कच्चे तेल के दामों को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। लेकिन ना तो कच्चे तेल के दाम ना ही दुनिया के वित्तीय हालात ऐसे थे कि भारत के आम आदमी को साढ़े सात का झटका दिया जाए। तेल कंपनियां हजारों करोड़ रुपये का मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन लगातार घाटे का रोना रो रही है। सरकार, क्यों नहीं तेल कंपनियों में कर्मचारियों को मिलने वाले अनाप-शनाप वेतन पर नजर डालती। इन तेल कंपनियां का एक अदना-सा कर्मचारी हजारों रुपये हर महीने का वेतन पाता है। भत्ते इतने की आप भी कहें-बाप रे बाप। और काम- इतना कि आम आदमी कहे, वाहजी आपके तो मजे हैं। अदना-सा सरकारी बाबू करोड़ों रुपये की काली कमाई छाप रहा है। नेताओं के नाम अब कुछ सौ नहीं हजारों, लाखों-करोड़ रुपये के घोटालों में आ रहे हैं। ऐसे में आम आदमी का दर्द वो कैसे जान सकते हैं, कि साढ़े सात का मतलब क्या होता है।
सरकार, एक सलाह है। सड़क पर मत निकलिएगा। वरना देश का ये आम आदमी शनि की तरह आपके राजनैतिक भविष्य पर साढ़े साती की तरह मंडराएगा। ऐसा फेंकेगा कि क्या शनि महाराज साढ़े साती में फेंकते हैं। नहीं तो लालूजी से पूछिएगा। जो टीवी पर तेल कंपनियों के प्रवक्ता बन ज्ञान दे रहे थे। कैसे बिहार का आदमी बलबलाया और ऐसा फेंका कि साढ़े सात साल हो गए, सत्ता का मुंह देखे हुए। सरकार, आप को भी अब सत्ता में साढ़े सात से ज्यादा समय हो गया है ना। ऐसा ना हो कि अच्छे वक्त की साढ़े साती गई और अब आपके बुरे वक्त की साढ़े साती आम आदमी की दिल से निकली आह के रूप में सामने आए। शायद आप ये सब समझें। काश आप जानते कि आम आदमी के लिए साढ़े सात का मतलब क्या होता है।
ई दिल्ली। पेट्रोल की कीमतों में बुधवार को अप्रत्याशित रूप से सात रुपये प्रति लीटर तक वृद्धि की घोषणा की गई। पेट्रोल की बढ़ी दर मध्यरात्रि से लागू हो जाएगी। केंद्र सरकार की सबसे बड़ी सहयोगी तृणमूल कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने इस वृद्धि का कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस के भीतर भी इसे लेकर विरोध के स्वर सामने आने लगे हैं। यह मूल्यवृद्धि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस चेतावनी के ठीक अगले दिन की गई है कि राजस्व उगाही के लिए 'कठोर फैसले' लिए जाएं। सरकार नियंत्रित तेल शोधक कम्पनियों ने ईंधन की कीमत में 6.28 प्रति लीटर की वृद्धि कर दी। इस वृद्धि के अलावा कर अलग से देने होंगे।
दिल्ली में पेट्रोल की कीमत विभिन्न करों के साथ अब 73.14 रुपये होगी, जो इस वक्त 65.64 प्रति लीटर है। मुम्बई में पेट्रोल 78.16 रुपये प्रति लीटर और कोलकाता तथा चेन्नई में 77.53 रुपये प्रति लीटर बिकेगा।
हिन्दी इन डॉट कॉम से साभार
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