युकां चुनाव-जीत किसकी?
ग्रामीण कमेटियों में अन्य दलों के युवाओं का बोल बाला
कुरुक्षेत्र/ पवन सौन्टी
युवा कांग्रेस चुनावों को लेकर प्रदेश भर में भारी राजनैतिक तनाव व्याप्त है। बूथ
कमेटियों के चुनावा समपन्न हो चुके हैं और अब विधानसभा, लोकसभा व प्रदेश स्तरीय कमेटी के
चुनावों की तैयारी है। आम चुनावों की भांति युवा नेता दिन रात मंहगे भाव का पैट्रोल
व डीजल फूंक कर अपनी जीत को पुख्ता करने में जुटे हैं।
युकां का कथित रूप से लोकतांत्रिक
विधि से ये दूसरा चुनाव है। पहले चुनाव में जहां प्रदेशाध्यक्ष की कमान हरियाणा के
कदावर नेता अजय यादव के पुत्र चिरंजीव राव के हाथ में गई थी तो इस बार इस अनार के लिये
सौ बिमार तैयार हैं। मजेदार बात तो यह है कि इस चुनाव में अनेक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता
भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अपने दांव खेल रहे हैं। इस भारी गहमागहमी के बीच यह समझ
नहीं आ रहा कि इस चुनाव में जीत किसकी हो रही है? ग्रामीण स्तर पर आलम यह है कि बूथ स्तर पर फार्म भरने का काम
जारी था तो ग्रामीण नेताओं ने अपने डेलीगेट तैयार करने के लिये गैर कांग्रेसी दलों
के युवाओं से भी फार्म भरवा लिये। हालांकि यह सब प्रत्यक्ष तो नजर नहीं आता,
लेकिन जब बूथ कमेटियों
के डेलीगेट के चुनाव चल रहे थे तो वोट डालने आने वाले अनेक युवाओं की मोटरसाईकिलों
व अन्य वाहनों तक पर आईएनएलडी लिखा देखा गया। यही नहीं कई जगह तो डेलीगेट भी इनैलो
से जुड़े परिवारों से जीत कर आए। अधिकतर ग्रामीण युवाओं को तो मात्र यही जनून था कि
प्रधानी का मामला है और अपने साथी को जिताने के लिये फार्म भरवाने हैं। ऐसे में उनके
लिये दल कोई मायने नहीं रखते थे। अब देखना यह है कि युवा कांग्रेस की भावी पौध किस
प्रकार अन्य दलों के इन युवाओं को अपने साथ जोड़ती है या फिर उपरी स्तर पर गठित कमेटियों
के अलावा डेलीगेट स्तर व सदस्यता स्तर पर तैयार हुई यह फौज अपने मूल दलों के लिये ही
काम करती है।
कांग्रेसी ही बंटते जा रहे धड़ों में
युकां चुनाव में प्रधानी की मारा मारी इस कदर हावी है कि कल तक जो युवा नेता आपस
में दोस्त थे आज वही एक दूसरे के खिलाफ कमर कसे तैयार नजर आ रहे हैं। विधानसभा स्तर
तक प्र्रधानी के कई कई दावेदार होने के कारण उनकी आपसी सहमती भी बनती नजर नहीं आ रही।
वहीं लोकसभा स्तर की कमेटी के लिये भाग दौड़ कर रहे युवाओं की मजबूरी यह है कि वह चाह
कर भी अपने उस पुराने साथी का साथ नहीं दे पा रहे जिसके पास डेलीगेट कम नजर आ रहे हैं।
धन की बर्बादी कहां तक उचित?
युकां चुनाव एक दल विशेष के संगठन का है यह न तो कोई सरकारी लाभ का पद है और न
ही आमदनी का जरिया। इसके बावजूद युवाओं द्वारा बे हिसाब धन की बरबादी इस पर हो रही
है। प्रदेश में पिछले दो माह से भी अधिक समय से इस प्रक्रिया पर खर्चा जारी है। युवा
नेता अपनी कारों का तेल फूंकते हुए दिन रात
एक करके जीत सुनिश्चित करने में जुटे हैं। इस प्रकार मां बाप अथवा अपने हाथों की गाढ़ी
कमाई का अंधाधुंध खर्च आम युवा के लिये कहां तक उचित है? यही नहीं अधिकतर लोगों का तो यह भी
कहना है कि गरीब आदमी के लिये तो इस प्रक्रिया से संगठन में स्थान पाना भी मुश्किल हो जाऐगा।
राहुल गांधी के कारण बढ़ रहा युवाओं का क्रेज
युकां संगठनों में पद पाने की यह भाग दौड़ यूं ही नहीं है। गत विधानसभा चुनाव में
कई स्थानों पर युवा उम्मीद्वारों को टिकटें मिली थी। हालांकि उत्तर हरियाणा में केवल
शाहबाद से अनिल धंतोड़ी ही विजयी हुए, लेकिन युवाओं में यह क्रेज जरूर बढ़ गया कि युवा नेताओं
को भी टिकट मिल सकती है। राहुल गांधी द्वारा युकां संगठन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया
से पदाधिकारीयों का चयन युवा नेताओं में यह लालच पैदा कर रहा है कि आने वाले विधानसभा
चुनावों में भी युकां को प्रयाप्त संख्या में टिकटें मिल सकती हैं।
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