कुरुक्षेत्र/ पवन सोंटी
मकर सक्रांति पर्व सूर्य का धनु राशि छोड़ कर मकर में प्रवेश करना पर मनाया जाता
है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार मकर संक्रांति एक भौगोलिक घटना है। इस दिन सूर्य जब
धनु राशि से मकर राशि में आते हैं तो इन दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति
को जहां एक किसानी का त्यौहार के रूप में मनाया जाता है वहीं भारतीय संस्कृति में एक
शुभ चरण की शुरुआत के रूप में माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार मध्य दिसंबर के
आसपास अशुभ चरण की समाप्ति पर शुभ् चरण की शुरू होती है। दूसरी ओर संक्रांति सर्दियों
के मौसम की समाप्ति और एक नई फसल या बसंत के मौसम की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता
है। यह त्यौहार पूरे भारत देश में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। देश के विभिन्न
भागों में इसे अलग-अलग नामों और अनुष्ठान के साथ मनाया जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दियों संक्रांति के दिन की अवधि के क्रमिक वृद्धि की
शुरुआत होती है। वैज्ञानिक वर्ष के कम से कम दिन 21-22 दिसंबर के आसपास है जिसके बाद दिन
बढऩे शुरू होते हैं। इसलिए वास्तविक शीतकालीन संक्रांति 21 दिसंबर या 22 दिसंबर जब उष्णकटिबंधीय
रवि मकर राशि में प्रवेश करती है पर शुरू होती है। इसलिए वास्तविक उत्तरायण 21 दिसंबर को होता है। यही
मकर सक्रांति की वास्तविक तारीख भी थी। एक हजार साल पहले मकर संक्रांति 31 दिसंबर को मनाया गया था
और अब 14 जनवरी
को है। वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार पांच हजार साल बाद, यह फरवरी के अंत तक हो सकता है,
जबकि 9000 के वर्षों में यह जून में
आ जाएगा।
खैर इन सबके साथ हमें धार्मिक पहलु पर भी चिंतन करना चाहिये क्योंकि विज्ञान की
बजाय आज भी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य ज्यादा चलते हैं। धार्मिक ग्रंथों में
सूर्य को हिंदू धर्म में देवता का दर्जा दिया गया हैं, क्योंकि इसके बिना जीवन की कल्पना
भी नहीं की जा सकती। चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने के
लिए सूर्य की उपासना करना हर मनुष्य के लिए नितांत जरूरी बताया गया है। सूर्य की सभी
संक्रांतियों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मकर संक्रांति का गुणगान इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों
में किया गया है, जिससे आम जनमानस भगवान सूर्य की आराधना करके अपने जीवन का लक्ष्य हासिल कर सके।
इस वर्ष 14 जनवरी की अर्धरात्रि में सूर्य भगवान देवताओं के गुरु बृहस्पति की राशि धनु छोड़
कर शनि की राशि मकर में प्रवेश करेंगे। इसलिए संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को ही माना गया है।
धर्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के आते ही देवताओं की रात समाप्त हो जाती
है, दक्षिणायन
समाप्त होता है और देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं, उत्तरायण शुरू हो जाता हैं। उत्तरायण में सूर्य का गोचर मकर,
कुंभ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में होता
है अर्थात दिन बड़े होते जाते हैं। दक्षिणायन में सूर्य का गोचर कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में
होता है और रात बड़ी होती जाती है। इस दिन
से ही लोग मलमास के कारण रुके हुए अपने शुभ कार्य-गृहनिर्माण, गृहप्रवेश, विवाह आदि भी शुरू कर देते
हैं। मलमास, बृहस्पति की राशियों - धनु और मीन में सूर्य भगवान के प्रवेश करने पर शुरू होता
है। मान्यता है कि तब सूर्य भगवान देवगुरु बृहस्पति के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा
में मग्न रहते हैं। इसीलिए भोग-विलास आदि सांसारिक
कार्यों से दूर होते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि उत्तरायण के 6 माह में मरे हुए योगीजन
ब्रह्म को ही प्राप्त होते हैं और दक्षिणायन में मृत्यु मिलने वाले स्वर्ग में अपने
शुभ कर्मों का फल भोग कर वापस लौट आते हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश जहां उनके
अपने पुत्र शनि के साथ रहने का प्रतीक है, वहीं प्राणों को हरने वाली शीत ऋतु के प्रकोप को कम करने
का संकेत है। जाहिर है, इस मौसम में पिता की सेवा पुत्र या संतान के हाथों होना ईश्वर
कृपा प्राप्त होने का संकेत भी है। इसीलिए इसे सौभाग्य काल की संज्ञा भी दी जाती है।
माना जाता है कि उत्तरायण में देवता मनुष्य द्वारा किए गए हवन, यज्ञ आदि को शीघ्रता से ग्रहण
करते हैं। मकर संक्रांति माघ माह में आती हैै। संस्कृत में मघ शब्द से माघ निकला है।
मघ शब्द का अर्थ होता है-धन, सोना-चांदी, कपड़ा, आभूषण आदि। स्पष्ट है कि इन वस्तुओं के दान आदि के लिए ही माघ
माह उपयुक्त है। इसीलिए इसे माघी संक्रांति भी कहा जाता है।
दक्षिण भारत में दूध और चावल की खीर तैयार कर पोंगल मनाया जाता है तो संक्रांति
के एक दिन पूर्व पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है। लोग घर-घर जाकर लकडिय़ां इक_ा करते हैं और फिर लकडिय़ों
के समूह को आग के हवाले कर मकई की खील, तिल व रवेडिय़ों को अग्न देव को अर्पित कर सबको प्रसाद
के रूप में अर्पित करते हैं। इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है, क्योंकि इन दिनों में खिचड़ी
खाई भी जाती है और दान में भी दी जाती है। देसी घी, खिचड़ी में डाल कर खाने का प्रचलन
उत्तर प्रदेश व बिहार में इसी संक्रांति से शुरू होता है। महाराष्ट्र और गुजरात में
मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घर के सामने रंगोली अवश्य रचते हैं। फिर एक-दूसरे को
तिल-गुड़ खिलाते हैं। साथ ही कहते हैं- तिल और गुड़ खाओ और फिर मीठा-मीठा बोलो। इस
दिन असम में माघ बिहु या भोगाली बिहु के रूप में मनाया जाता है। यहां चावल से बने व्यंजन
प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं। मकर संक्रांति को पतंग पर्व के रूप में भी जाना
जाता है। इस दिन भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों-प्रयाग,हरिद्वार, वाराणसी, कुरुक्षेत्र, गंगासागर आदि में पवित्र
नदियों गंगा, यमुना आदि में करोडों लोग डुबकी लगा कर स्नान करते हैं। अथर्ववेद में इस बात का
स्पष्ट उल्लेख है कि दीर्घायु और स्वस्थ रहने के लिए सूर्योदय से पूर्व ही स्नान शुभ
होता है। ऋग्वेद में ऐसा लिखा है कि-हे देवाधिदेव भास्कर, वात, पित्त और कफ जैसे विकारों से पैदा होने वाले रोगों को समाप्त
करो और व्याधि प्रतिरोधक रश्मियों से इन त्रिदोशों का नाश करो।
पश्चिम बंगाल के गंगासागर तीर्थ में मेले का आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है कि
वरुण देवता इन दिनों में यहां आते हैं। शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि किसी को किसी
कारणवश नदी या समुद्र में स्नान करने का अवसर ना मिले तो इस दिन कुएं के जल या सामान्य
जल में गंगा जल मिला कर सूर्य भगवान को स्मरण करते हुए स्नान कर सूर्य को तांबे के
लोटे में शुद्ध पानी भर कर रोली, अक्षत, फूल, तिल तथा गुड़ मिला कर पूर्व दिशा में गायत्री या सूर्य मंत्र
के साथ अष्र्य देना चाहिए।
बहुत अच्छी पोसट .. आपके इस पोस्ट से हमारी वार्ता समृद्ध हुई है .. आभार !!
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