Sunday, December 4, 2011

गीता जयंती समारोह के दौरान उपेक्षित हैं कुरुक्षेत्र के उद्धारकर्ता गुलजारी लाल नंदा



अंधेरे में नींव पत्थर, इमारत बुलंद

कुरुक्षेत्र, मेघराज मित्तल
जब इमारत बुलंद हो जाती है तो उसके कंगूरे की ईंट को दुनिया निहारती है, लेकिन नींव की ईंट अंधेरे में मौन होकर दम तोड़ती रहती है। कुछ ऐसा ही हाल हो रहा है गीता जयंती समारोह के दौरान कुरुक्षेत्र के उद्धारकर्ता स्व. गुलजारी लाल नंदा का। कुरुक्षेत्र उत्सव गीता जयंती समारोह का भव्य आयोजन गत दो दिसम्बर से कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर पर हो रहा है। इस दौरान ब्रह्मसरोवर, इसके बीच व आस-पास के मंदिर और पुरुषोत्तमपुरा बाग रोशनियों में जगमगाए हुए हैं। दूसरी ओर ब्रह्मसरोवर की पूर्वी परिक्रमा से बाहर स्थापित गुलजारी लाल नंदा स्मारक सदाचार स्थल उपेक्षित भाव से अंधेरे में डूबा है। जिस नंदा ने कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की स्थापना करके कभी कीचड़ से भरी इस झील को आधुनिक ब्रह्मसरोवर का रूप दिया था, उसी नंदा को शायद प्रशासन व सरकार ने भूला दिया है। शनिवार सांय जब पत्रकारों की टीम ने नंदा स्मारक का दौरा किया तो इस स्मारक के द्वार बंद पाए व पहले से लगी लाईटों को छोडक़र कोई विशेष सज्जा का प्रबंध भी नजर नहीं आया। यही नहीं दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि स्मारक के सामने सडक़ के दूसरी ओर नंदा जी का जो बुत लगा है, वह भी पूर्णतया अंधेरे में डूबा नजर आया। कहने को उसके दोनों और लाईटें लगाई गई हैं, लेकिन वह भी बंद पड़ी थी।
ध्यान रहे कि स्व. गुलजारी लाल नंदा वे शख्यिसत थे, जो दो बार देश के कार्यकारी प्रधानमंत्री रहे और कुरुक्षेत्र हल्के का लोकसभा में भी प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने ही 1968 में कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की स्थापना की थी। उन्होंने कुरुक्षेत्र के 48 कोस परिधि के क्षेत्र में अनेकों नवीनीकरण करवाए और ब्रह्मसरोवर को आधुनिक रूप दिया। इसके लिए स्वयं सिर पर टोकरी रखकर उन्होंने कार सेवा भी की।
यही नहीं नंदा जी ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिनकी समाधि कुरुक्षेत्र में बनाई गई। उनके समाधि स्थल को नाम दिया गया सदाचार स्थल का। इसके साथ ही यहां पर गुलजारीलाल नंदा के नाम पर एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया, जिसमें उनके बर्तन, निजी पत्र, भाषण, कपड़े व टेलीफोन आदि अनेकों वस्तुएं रखी गई। लेकिन कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड अपने निर्माणकत्र्ता को ज्यादा दिन नहीं सहेज पाया और इसके रख-रखाव का जिम्मा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को सौंपा गया। नंदा जी के प्रति यूं तो उपेक्षा हर उस कार्यक्रम में झलकती है, जब उनकी याद में स्मारक पर कोई कार्यक्रम होता है, लेकिन गीता जयंती समारोह के दौरान तो उनको पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया। इस समारोह के दौरान नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों का आना-जाना तो बना है, लेकिन नंदा जी के लिए शायद किसी के पास समय नहीं है।
प्रशासन को नहीं जानकारी
नंदा जी के स्मारक व स्मारक के बाहर लगे बुत पर रोशनी की व्यवस्था को लेकर जब एसडीएम अशोक बांसल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि लाइटें बंद होने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, इलैक्ट्रिशियन की डयूटी लगाई गई है, जहां भी लाईट खराब है, वह ठीक करेंगे। नंदा जी से सम्बंधित किसी स्टाल को लेकर उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें नहीं लगता कि मेले के दौरान कहीं नंदा जी को लेकर कोई स्टाल लगा हो। समाधि स्थल व संग्रहालय पर विशेष रोशनी को व्यवस्था को भी लेकर वे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए।


झील के कीचड़ में नहाकर लिया था उदारीकरण का संकल्प
गुलजारीलाल नंदा एक बार अन्य तीर्थ यात्रियों की तरह ही सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में स्नान के लिए आए थे, उस वक्त यहां एक झील में थोड़ा सा पानी था, जिसके कीचड़ व पानी से स्नान के बाद वे लौट गए। इसके बाद उन्होंने कुरुक्षेत्र के उद्धारीकरण का संकल्प ले लिया। अगस्त 1968 में उन्होंने कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिधि के उद्धार हेतु कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की स्थापना की। श्रीकृष्ण संग्रहालय भी उन्हीं की सोच का परिणाम है।

गुलजारी लाल नंदा और राष्ट्रीय राजनीति
स्व.गुलजारी लाल नंदा कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। वे एक साधारण संत राजनेता थे, जिन्होंने नेताओं के लिए आदर्श स्थापित किए। जो कांगे्रस आज प्रदेश व देश में सत्ता संभाल रही है, उसको नंदा जी ने अपने पसीने से सींचा। पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उन्होंने नियोजित विकास की प्रक्रिया में सराहनीय योगदान दिया। नदी-घाटी योजनाओं में विशेष कार्य किया। देश के गृहमंत्री के रूप में उन्होंने कानून व्यवस्था, उच्च स्थानों पर भ्रष्टाचार, पंजाबी सूबे के सृजन पर आंदोलन और तमिलनाडू में हिंदी विरोधी आंदोलन जैसी व्यापक समस्याओं से निपटने के लिए काम किया। 1964 में पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात और 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात उन्हें देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री तक बनाया गया। एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उनका योगदान इतना विशाल है कि उसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। अगर एक वाक्य में कहें तो नंदा मृदुभाषी स्वभाव के संत राजनेता और लोहपुरुष व्यक्ति थे।

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