सूं बुल़दां की, मैं तन्नै आड़ै ना ल्याता खामखा मैं तेरे गेल्या रोल़ा ना जगाता
जै काल़ी चिड़िया बणकै तू सुबह-सवेरे गाता तो और नहीं तो मुर्गा बण कै लोगाँ नै जगाता तो बणकै बुल़द जमींदार का खेतां मैं कमाता तो और नहीं तो हाथी बण कै सर्कस का खेल दिखता तो
फेर तो चाहे तू डांगर भी होता, तो भी ना घबराता मैं तेरा इलाज करावण ख़ातर, माणसां के हस्पताल़ जाता मैं
तू तो आदमी बणता-बणता रहग्या तू तो मेरे गेल खाम-खा-ए फैह ग्या।
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