Saturday, December 3, 2011

भ्रष्टाचार और आंतकवाद को समाप्त करने में सार्थक हैं गीता के शलोक : प्रीतम पाल


लोकायुक्त ने किया दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन, गीता के उपदेश 21वीं सदी में हैं प्रासांगिक
कुरुक्षेत्र/पवन सौंटी

हरियाणा के लोकायुक्त जस्टिस प्रीतम पाल ने कहा कि भ्रष्टाचार और आंतकवाद के साथ-साथ 21वीं सदी की हर समस्या का समाधान करने में श्री भगवत गीता का एक-एक शब्द सार्थक भूमिका निभा सकता है। लोकायुक्त शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान द्वारा गीता का पुन: पाठ 21वीं शताब्दी में संदर्भ में विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। इससे पूर्व लोकायुक्त प्रीतम पाल व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.डी.एस. संधू ने दीप प्रज्जवलित कर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। लोकायुक्त प्रीतम पाल ने कहा कि महान ग्रंथ गीता का हर शलोक किसी भी काल के लिए उपयुक्त है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए थे उन उपदेशों का एक-एक शब्द 21वीं सदी में प्रासांगिक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में आज की युवा पीढी में जो नाकारात्मक सोच पैदा होने के साथ-साथ मोह-माया जैसे द्वंद में फस गई है। उस युवा पीढ़ी को इस महान ग्रंथ के शब्दों का अध्ययन करना जरूरी है। गीता में ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनों योगों को शामिल किया गया है। गीता वैदिक ज्ञान का एक सार है जिससे सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। यह सार मानव जाति को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी दिखाता है। इस ग्रंथ को पढऩे से स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं दुश्मन है। मानव को बिना फल की इच्छा किए ही बिना कर्म करते रहना चाहिए जो मनुष्य कर्म को ही अपनी साधना मानता है वहीं मनुष्य सही रास्ते पर चलकर अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है। उन्होंने कहा कि आज के समय में कर्म का रास्ता बनाकर और अपने चरित्र को साफ-सुथरा रखने की निहायत जरूरत है। गीता वैज्ञानिक दृष्टि से आज विश्व का सबसे महान ग्रंथ माना जाता है।
            संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ. डी.डी.एस. संधू ने कहा कि इस विभाग द्वारा 1990 से विश्व के सबसे महान ग्रंथ गीता को लेकर विचार-विमर्श किया जा रहा है। प्रशासन का प्रयास है कि 21वीं शताब्दी में श्री मद् भागवत गीता के सार्थक परिणामों के जरिए युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाने का प्रयास किया जाएगा क्योंकि इस महान ग्रंथ का एक-एक शब्द आज भी पूर्ण रूप से प्रसांगिक है। इस गं्रथ में ज्ञान और भक्ति का जो भंडार है वह विश्व के किसी भी ग्रंथ में नहीं है। यह ग्रंथ 21वीं सदी में एक औषद्यी का काम कर सकता है। इस महान ग्रंथ को पढने से स्पष्ट हो जाता है कि हजारों साल पहले भारत देश से ही संस्कृति का सबसे महान स्त्रोत था लेकिन आज हमारा भारत मानवीय मूल्यों में पिछडता दिखाई दे रहा है। हम सब के प्रयासों से आज फिर से हमारे देश को सर्वोच्च स्थान पर लाना है।
            संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि गीता का दर्शन व ज्ञान साम्रदायिक ज्ञान से ऊपर है। श्रीमद् भगवत गीता भारत देश तक ही सीमित नहीं है। यह ग्रंथ विश्व के हर देश व शहर के लिए सार्थक है इसलिए इसे पूर्वाग्रह से मुक्त होकर पढऩे की जरूरत है। सम्पूर्ण विश्व की संस्कृति इस महान ग्रंथ में निहित है। इस ग्रंथ के जरिए ही मानवता की कल्पना की जा सकती है इसलिए 21वीं सदी में श्रीमद्भागवत गीता के पुन: पाठ की जरूरत है। इस महान ग्रंथ में भारतीय दर्शन की 12 शाखाओं को देखा जा सकता है। सभी शास्त्रों की गंगोत्री इस महान ग्रंथ ने अपने में समेटी हुई है। गीता का ज्ञान पढऩे मात्र से नहीं होगा बल्कि इस ग्रंथ के एक-एक शब्द को श्रद्धा और भक्ति से मनन करने की जरूरत है। डॉ. राजेन्द्र ङ्क्षसह ने आगुंतकों को स्वागत किया और प्रो. एस.के.शर्मा ने महमानों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर फैकल्टी के डीन प्रो. भीम ङ्क्षसह, डॉ. अरूणा शर्मा, डीआईपीआरओ देवराज सिरोहीवाल, डॉ. ब्रिजेश साहनी, डॉ. विरेन्द्र पूनिया सहित शिक्षक और गणमान्य लोग उपस्थित थे।


No comments:

Post a Comment