Friday, December 30, 2011

तू आदमी बणता-बणता रहग्या- जगबीर राठी की धमाकेदार रचना

हरियाणवी  के जाने माने कवि जगबीर राठी का काव्य व्यंग्य जो सबको पढ़ना चाहिए
तू आदमी बणता-बणता रहग्या


मन्नै डांगराँ के हस्पताल मैं क्यूं ले ग्या
वो बीमार मेरे गैल इस बात पै फैह ग्या

भाई रै, शान्ति कर तू बीमार सै
किसे-किसे रोगां का तू शिकार सै

मैं तन्नै आड़ै एकदम बिल्कुल ठीक ल्याया
आड़े आके राज़ी होगी तेरी या बीमार काया

भूलग्या तू उस दिन एक बात पै अड़या था रै
मेरे गेल्यां छोटी-सी बात पै, कुत्ते की ढाल़ लड़या था रै

उस दिन बेरा पाट्यी थी, मन्नै तेरी औकात
जिस दिन एक गरीब कै तनै, गधे की ज्यूँ मारी थी लात

हर दम तू ठगी चोरी की, कैसी हामी भरे जा सै
कितै फंसज्या हराम का तनै, बकरी की ढ़ाल़ चरे जा सै

उल्लू की ढाल्यां जाग कै, तू मिसकोट करै सै रातां नैं
फणियल तै घणा ज़हर दिख रया, मन्नै तेरी बातां मैं

कितै कोय भले का काम हो, तू घोड़े-सी मारै पछाड़
दूसरों का हक खावै सै तू, खागड़ की ढ़ाल़ तोड़ कै बाड़

पाणी के मैं प्यासी भरमती मछली की ढ़ाल़ लोचता तू
भाईचारे की सड़ती लाश नै करगस की ढ़ाल़ नोचता तू

क्यूँ भेड्डा बण कै किसे भोली़ भेड़ नै, चपर-चपर खाया करै
गादड़ बण क्यू झुठे गीत किसे के, लपर-लपर गाया करै

फेर बता मेरे गेल क्यूँ फहवै सै
आपणे-आप नै आदमी कहवै सै

सूं बुल़दां की, मैं तन्नै आड़ै ना ल्याता
खामखा मैं तेरे गेल्या रोल़ा ना जगाता

जै काल़ी चिड़िया बणकै तू सुबह-सवेरे गाता तो
और नहीं तो मुर्गा बण कै लोगाँ नै जगाता तो
बणकै बुल़द जमींदार का खेतां मैं कमाता तो
और नहीं तो हाथी बण कै सर्कस का खेल दिखता तो

फेर तो चाहे तू डांगर भी होता, तो भी ना घबराता मैं
तेरा इलाज करावण ख़ातर, माणसां के हस्पताल़ जाता मैं

तू तो आदमी बणता-बणता रहग्या
तू तो मेरे गेल खाम-खा-ए फैह ग्या।
.....जगबीर राठी, 
निदेशक, एम् डी यू , रोहतक

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