Friday, December 30, 2011

दलगत राजनीति के हाथों, हारा लोकपाल कानून- वीसिं. चौहान

दलगत राजनीति के हाथों, हारा लोकपाल कानून
उधर हमें खतरे में दीखे,आन्दोलन से जगा जुनून

सभी दलों ने जीभर खेला राजनीति का रोचक खेल
यदुवंशी लालू का नाटक, राम-वाम का अद्भुत मेल

सब ने सबको चोर बताया, केवल अपना आपा छोड़
खुद को पाक साफ कहने की लगी हुई थी अंधी होड़

नारायण या सीताराम,सुषमा,अरुण,कपिल,अभ
िषेक
लोकपाल को माथा टेक,दिखा गये निज बुद्धि-विवेक

इक्का दुक्का के स्वर छोड़,सब ने मांगे नियम कठोर
बनी जलेबी लोकपाल की ,ओर मिला न जिसका छोर

छोड़ अधूरी-आधी बात, सदन सो गया आधी रात
जैसे अर्थहीन हों बिलकुल जनमन के सारे जज्बात

अब अन्ना पर रहे निगाह,क्या होगी आगे की राह
देख सियासी नौटंकी को,ये मन बोले वाह जी वाह

- वीसिं. चौहान
 

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